Sep 18, 2009

"एक था मेरा भी गाँव" -एक अधूरी कविता


-अजय मलिक

एक था मेरा भी गाँव
जहाँ धूप में जलते किसान
रोपते थे धान ।

एक था मेरा भी घेर
वह एक छोटे से ओसारे की
टपकती छान ।

चार थे मेरे भी खेत
चकबंदी से बने जब एक
तो बाकी रहा बस रेत ।

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