Aug 22, 2009

वो नदी ही बेताब थी

-अजय मलिक

कब समंदर ने कहा
-आकर गले मिल

कब पहाड़ों ने कहा
-जा, तोड़ के दिल


इश्क की गफ़लत घिरी
घर-बार खोकर

कितने पठारों के
तन-मुंह-हाथ धोकर


जंगल के सीनों पर
दिन-रात सोकर


कभी तनकर,
कभी सजकर-संवरकर

कई बस्ती-गाँव-नर
नगरों को निगलकर

खुद को मिटाने को
वो नदी ही बेताब थी


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