Sep 2, 2009

मेरे गुरु-मेरे शिष्य

स्वर्गीय श्री चन्द्रशेखर मेरे गुरु -मेरे शिष्य ...
-प्रतिभा मलिक
बहुत कुछ सोचकर बैठी थी कि आज कुछ लिखना है , बहुत याद आ रही थी उन दिनों की जब आई आई टी, मद्रास में मैंने कंप्यूटर से हिंदी का प्रशिक्षण देना शुरू किया। कंप्यूटर क्लास का पहला दिन और अधिकारियों की कक्षा...कंप्यूटर की जानकारी भी कम थी या यह कहूं कि बिल्कुल थी ही नहीं।
पहला दिन उदघाटन वगैरह में बीत गया। घर में कंप्यूटर पेंटियम-1 था। "लीला" उस में चलता नहीं था। एकांतर दिवसीय क्लास... बीच में गैप मिला तो बड़ी तसल्ली हुई । घर में इनसे कुछ-कुछ जानकारी ली। फिर कक्षा का दूसरा दिन आया। तनाव के कारण रात भर सोई नहीं। कक्षा अढ़ाई बजे थी । भूख-प्यास सब गायब। अंदर ही अंदर डरी हुई थी कि कैसे हो पाएगा । मगर बाहर भनक तक किसी को न होने दी . पाठ्य पुस्तक का एक-एक कोना पता था। मगर कंप्यूटर और ऑन-लाइन प्रशिक्षण का अभ्यास कतई नहीं था ।
धड़ल्ले से कक्षा शुरू की। ऑन-लाइन भी साथ-साथ शुरू कर दिया । चाय का समय हुआ तो थोडा सा आराम मिला। चाय टाइम में एक दूसरे से परिचय का मौका मिला। प्रशिक्षार्थियों में श्री चंद्रशेखर जी भी थे। वे कंप्यूटर के एक्सपर्ट थे और आई आई टी के वरिष्ट फेकल्टी मेंबर। इसी वज़ह से मुझे कपकपी छूट रही थी......... मगर उन्होंने मुझे कंप्यूटर की छोटी-छोटी बातें समझाकर मेरे अंदर का डर भगा दिया। वास्तव में वे मेरे कंप्यूटर गुरु थे ।
हिंदी कक्षा के बाद वे उसी कक्ष में जेनेटिक्स की कक्षा लेते थे ... आर्ट ऑफ़ लिविंग की भी कक्षा लेते थे। कक्षा में सब इंतजार करते थे। बहुत कुछ सीखा मैंने उनसे पॉँच महीने में उन्हें हिंदी सिखाते हुए। परीक्षा के बाद एक माह के लिए कक्षा बंद हो गयी थी। कुछ दिन बाद एक अन्य प्रशिक्षार्थी का फोन आया। -पता चला की वे चल बसे । उस दिन भी वे अपनी साइकिल से जा रहे थे, अचानक दिल का दौरा पड़ा और बस अलविदा। वे राजपालयम के महाराजा परिवार से थे। वास्तव में वे महाराजा ही थे । तीन-चार साल गुजर गए । आज भी आई आई टी कैम्पस में घुसते वक्त हमेशा उनकी स्मृति ताज़ा हो जाती है।

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