मेरे गुरु की 7 वीं कड़ी काफी बड़ी होनी थी मगर होनी को कुछ और ही मंजूर था। रात जब रूटीन की वनवास के दौर की , एक सौ साठ किमी की स्कूटर यात्रा से लौटा और कुछ खा-पीकर एक अंगुली की टाइपिंग शुरू की तो बिजली जी चली गईं । फ़िर उन्होंने लाख मिन्नतों के बावजूद भी आने से मना कर दिया और मैं अपने गुरुजनों को सही से प्रणाम करने से वंचित रह गया।
अब सभी गुरुजनों को इसी रूप में प्रणाम करते हुए क्षमा प्रार्थना के साथ विदा लेता हूँ । इस आशा के साथ कि शाम या देर रात तक मैं अपनी सातवीं कड़ी देने में शायद सफल हो पाऊँगा।
-अजय मलिक
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