Sep 1, 2009

मेरे गुरु ...4

प्रो0 के0 कुमार



-अजय मलिक


गोरा-चिट्टा रंग,छरहरा बदन, चांदी की झलक वाली बहुत हल्की-हल्की मूँछें , हर वक्त चेहरे पर मुस्कान, आवाज़ में ऐसी जिंदादिली की मुर्दे भी उठ खड़े हों। वे पढ़ाते थे समायोजन का मनोविज्ञान (साइकोलोजी ऑफ़ एडजस्टमेंट) । एक हिंदी वाला मनोविज्ञान पढ़ने कैसे गया ? इस प्रश्न का यहाँ कोई औचित्य नहीं है । डिप्लोमा इन एड्यूकेशनल एंड वोकेशनल गाइडेंस के दस माह के पाठ्यक्रम में उनके केवल पाँच या छः व्याख्यान होते थे। कभी उन्होंने हाज़री रजिस्टर नहीं रखा, हमेशा उनका व्याख्यान दिसम्बर या जनवरी में सुबह साढ़े नौ बजे से शुरू होता था। यह एक रिकार्ड था कि कभी कोई उनकी कक्षा में अनुपस्थित नहीं हुआ. सब जानते हैं कि दिसम्बर में दिल्ली में कैसी कड़ाके की ठंड पड़ती है। सुबह-सुबह ठंडे-ठंडे पानी से नहाना और भाग-दौड़ कर नए गाजियाबाद रेलवे स्टेशन से रेलगाड़ी पकड़ कर किसी भी कीमत पर साढ़े नौ बजे तक एन सी ई आर टी पहुँचना।
हम सब लगभग तीस-पैंतीस छात्र थे। एक बात जिसमें सब निर्विवाद एकमत होते वह थी प्रो0 कुमार के व्याख्यान के लिए तरसना। सब चाहते कि और दो व्याख्यान हो जाते तो अच्छा होता । मगर... चाहते हुए भी प्रोफेसर साहब वक्त न निकाल पाते ... महीने में तीस दिन उन्हें दौरे पर रहना पड़ता। आतंरिक मूल्यांकन के लिए वे भी टेस्ट लेते । टेस्ट से दो दिन पूर्व वे तीन-चार प्रश्न बाकायदा बोर्ड पर लिख देते और उन्हीं में से दो या तीन प्रश्न वे टेस्ट में पूछते... परन्तु उन प्रश्नों के उत्तर तलाशने में हमारी रातें पुस्तकालय में गुजरतीं । उनके हरेक प्रश्न में वह सारा पाठ्यक्रम, जो वे पढ़ाते - समाया होता। बहुत मुश्किल था उन प्रश्नों के उत्तर लिख पाना। उन्होंने कभी किसी को साठ प्रतिशत से कम अंक नहीं दिए । जिन्हें साठ प्रतिशत मिलते वे पास होने लायक ही नहीं होते थे। अधिकाँश को शत-प्रतिशत अंक मिलते । हम सब जानते थे कि समायोजन का मनोविज्ञान सकारात्मक सोच से शुरू होकर सृजनशीलता पर जाकर ठहरता है। मैंने उनसे अपने छात्रों को शत-प्रतिशत अंक देना सीखा बशर्ते कि वे कक्षाओं में उपस्थित रहे हों। प्रोफेसर केo कुमार साहब के प्रति श्रृद्धा में सदैव बढोतरी ही होती रही । ये अलग बात है कि नकारात्मक सोच से ओत -प्रोत समाज में समायोजित होने में सर्वाधिक कठिनाई सकारात्मक सोच के कारण ही हुई क्योंकि लोग तो ढर्रे पर चलना और चलाना पसंद करते है ...केकड़ों की कहानी तो आपने जरूर सुनी होगी।
काश कि संसार के सभी शिक्षक प्रोफेसर कुमार हो पाते..

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