Sep 22, 2012

गीत संगीत के साथ सीखिए- हिन्दी स्वर एवं व्यंजन

देवनागरी स्वर और व्यंजन गीत संगीत के साथ भी सीखे और सिखाए जा सकते हैं। इस कथन को आजमाना है तो नीचे दिए लिंक्स को क्लिक करने का साहस दिखाएँ-




(यू ट्यूब से साभार )

Sep 21, 2012

आइए, जरा हिन्दी के साथ जोहांसबर्ग चलें...

यह विचित्र सी ही बात है कि उत्तर-प्रदेश का निवासी होते हुए भी मैं सबसे ज्यादा अपरिचित उत्तर-प्रदेश और उत्तर भारत से ही हूँ। इसी बात से अनुमान लगाया जा सकता गाँव के इस ठेठ देहाती की अनभिज्ञता और फूहड़पन का। शायद यही वजह है कि मैं सही मायनों में "आरआई" भी नहीं हूँ, "एनआरआई" होना तो बड़ी दूर की बात है बशर्ते कि सिलीगुड़ी के पास नेपाल की सीमा से गुजरने या एक घंटे के लिए पानी की टंकी के पास से नेपाल में घूम आने को इसमें शामिल न किया जाए। मेरे कई परिचित आज एनआरआई हो गए हैं। वे हिंदी के साथ दक्षिण अफ्रीका में जोहांसबर्ग गए हैं और अढ़ाई दिन बाद लौट आएंगे। कुछ मित्र ऐसे भी हैं जिन्हें जोहांसबर्ग हिंदी को ले जाने का अवसर बस मिलते-मिलते रह गया। मैं एक घंटे वाला नेपाल रिटर्न इंडियन हिंदी के नाम पर चेन्नई में पड़ा हूँ। मैं हिंदी को ढोने योग्य भी नहीं बचा हूँ, अब शायद हिंदी ही मुझे ढो या धो रही है। बहुत सारे लोग हैं जिन्हें हिंदी ढो रही है। मैं भी ढुलाई वाले ट्रक या गाड़ी में लदा हूँ और ढोए जाने के अजीब से चक्र का हिस्सा बना हुआ हूँ। जो थोड़ी-बहुत हिंदी जानता था वह अङ्ग्रेज़ी की भेट चढ़वा दी गई और अँग्रेजी इस भारतीय को न तो अंग्रेज़ बना पाई और न ही हिंदी वाला रहने दिया। एक अजीब सा कुछ-कुछ दलिया जैसा बनकर रह गया हूँ। यदि खिचड़ी भी बन गया होता तो भी कुछ संतोष होता। 

Sep 20, 2012

दो जुबान चाहिए

आज के दा हिंदू अखबार के चेन्नई संस्करण में प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष और जाने-माने विधिवेत्ता श्री मार्कन्डेय काटजू का एक आलेख प्रकाशित हुआ है जिसमें हर भारतीय के लिए अँग्रेजी और हिंदी  दो भाषाओं के सीखने की जरूरत बताई गई है । हिंदी दिवस से जुड़े उनके अनुभवों से  परिचित कराते आलेख का लिंक नीचे दिया जा रहा है-


(The Hindu से साभार )

Sep 19, 2012

सभी को गणेश चतुर्थी की शुभकामनाएँ


हिंदी दिवस समारोह, 2012 के अवसर पर भारत के महामहिम राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी का अभिभाषण




(www.rajbhasha.gov.in के सौजन्य से )

Sep 17, 2012

हिंदी में प्रार्थना पत्र, सिफारिशी पत्र तैयार करें

यहाँ एक ही वेबसाइट के तीन लिंक दिए जा रहे हैं जिनसे आप हिंदी (अँग्रेजी सहित यानी द्विभाषी) में कुछ सीधे-सादे आवेदन-पत्र, सिफारिशी पत्र तैयार करना सीख सकते हैं। इसी के साथ hi.bab.la  की इस वेबसाइट पर ऑनलाइन प्यारा सा/ से शब्दकोश भी उपलब्ध है/ हैं। एक-एक कर आजमाइएगा जरूर -




(http://hi.bab.la से साभार )


अमेरिका में हिन्दी शिक्षण की लहर : डॉ सुरेन्द्र गंभीर ( अभिव्यक्ति का लिंक )

साहित्यिक पत्रिका "अभिव्यक्ति" में एक वर्ष पूर्व प्रकाशित यह लेख अभी भी ताजगी से भरपूर है। लिंक नीचे दिया जा रहा है-

Sep 14, 2012

क्या मैं आपको कवि नज़र आता हूँ...

एक मित्र ने संदेश भेजा - 'कवि सम्मेलन में कविता पाठ करना है, शाम साढ़े पाँच बजे।' मैंने कई बार अपने गंजे सिर पर हाथ फेरा, इधर-उधर देखा, चश्में को उतारकर आँखों पर हथेलियों का दबाव डालकर इस बात का पता लगाने की कोशिश की कि आखिर किस कोण से मेरे जैसा त्रिकोण कवि लग सकता है? कुछ समझ में नहीं आया। फिर सोचा चलिए, मित्रवर की पारखी निगाहों से देखने से शायद कुछ नज़र आ जाए... इस जाँच-पड़ताल में एक लाल बत्ती पर स्कूटर रोककर खड़े-खड़े कुछ पंक्तियाँ लिखने की कोशिश की। बस फिर क्या

सभी भारतीयों को हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ

हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ 

हिन्दी दिवस का सीधा प्रसारण देखें

आज हिंदी दिवस के अवसर पर विज्ञान भवन से हिंदी दिवस का सीधा प्रसारण लाइव वेबकास्ट  के जरिए नीचे दिए लिंक से देखा जा सकता है-





(rajbhasha.gov.in के सौजन्य से )


Sep 13, 2012

विंडोज़ 8.0 अब चौदह नई भाषाओं में भी उपलब्ध

यहाँ हम भाषा इंडिया डॉट कॉम का एक लिंक दे रहे है जिसपर आपको अगले माह लाँच होने वाली विंडोज 8.0 के बारे जानकारी के साथ-साथ अन्य अनेक सोफ्टवेयर्स के  संबंध में भी विस्तृत जानकारी हिन्दी में मिलेगी। विंडोज 8 में समर्थित भाषाओं की संख्या 109 हो जाने की जानकारी दी गई है। विस्तृत जानकारी के लिए नीचे दिए लिंक को क्लिक करें-



(bhashaindia.com के सौजन्य से )

Sep 12, 2012

हत्यारी अँग्रेजी के पैरोकारों को क्या कहूँ......

डेक्कन क्रोनोकिल के चेन्नई संस्करण की एक खबर 

अमेरिका में हिंदी बन रही है वैकल्पिक भाषा

हिंदी प्रेमियॊं के लिए दॊ अच्छी खबरें

वाशिंगटन। अमेरिका में बड़ी संख्या में रह रहे गैर अंग्रेजी भाषी प्रवासी समुदायों में संपर्क भाषा के रूप में हिंदी उर्दू की स्वीकार्यता से चकित अमेरिकी समाज भी इसे अपनाने को तैयार हो रहा है।
दुनिया भर से विभिन्न भाषा भाषी समुदायों के लाखों लोगों के अमेरिका में आ बसने के साथ ही इन वर्गो में सांस्कृतिक चुनौतियां सामने आ रही हैं जिनमें भाषा की समस्या प्रमुख है। वाशिंगटन विश्वविद्यालय में एशियाई भाषा एवं साहित्य विभाग के प्रोफेसर डा. एमजे वारसी देश में हो रही इस दिलचस्प क्रांति का बयान करते हुए बताते है कि गैर अंग्रेजी भाषी पृष्ठभूमि के अफ्रीकी, एशियाई लैटिन अमेरिकी आदि देशों के लोगों के परिवारों के बच्चे स्कूलों में शिक्षा पाकर फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने लगते हैं लेकिन मां बाप की अंग्रेजी समझ तो लेते हैं लेकिन बोलने में दिक्कत आती है। इसीलिए वे जवाब हिन्दी या उर्दू में देते हैं। डा. वारसी के अनुसार ऐसे माता-पिता हिंदी या उर्दू बहुत आसानी से सीख लेते हैं। बच्चों को भी इस भाषा में बात करने में अच्छा लगता है। उनके अनुसार 11 सितंबर के हमले के बाद अमेरिका में एक सकारात्मक परिवर्तन भी आया है। यहां के समाज में दूसरे समुदायों की संस्कृतियों एवं धर्म

Sep 5, 2012

हिन्दी ई-लर्निंग का लिंक 2 काम नहीं कर रहा है

आस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के हिन्दी सीखने के बेहद लोकप्रिय एवं उपयोगी पाठों से जोड़ने वाला  हिन्दी ई-लर्निंग का हिंदी सीखने के लिए लिंक- 2 काम नहीं कर रहा है। खेद है। 

शिक्षक दिवस पर हिन्दी सीखने के लिए एक और लिंक

आज शिक्षक दिवस है। इस अवसर पर एक और नया लिंक प्रस्तुत है हिन्दी सीखने के लिए -


Sep 4, 2012

स्वर्गीय अनिल बोरडिया को हिंदी सबके लिए की श्रद्धांजलि


कल रात टीवी पर एक छोटा सा समाचार था- शिक्षाविद एवं प्रशासनिक अधिकारी श्री अनिल बोरडिया नहीं रहे। श्रद्धांजलि स्वरूप यह पोस्ट मैं तभी डालना चाहता था किन्तु 103 बुखार में बैठना भी संभव नहीं हो पाया। कई लोग यह पूछ सकते हैं कि अनिल बोरडिया जी से मेरा या हिंदी सबके लिए का क्या संबंध हो सकता है? सच तो ये है कि स्वयं बोरडिया जी को भी 25 वर्ष पुरानी वह घटना याद न रही होगी। वर्ष 1987-88 में "हम पाँच" नई दिल्ली स्थित शास्त्री भवन परिसर में एक पेड़ के नीचे आमरण अनशन पर बैठ गए थे। हमारे पास न कोई पंडाल था, न ही कोई प्रायोजक। हमारे पास  वित्तीय साधन भी कोई नहीं था। हम थोड़े से सनकी किस्म के प्राणी हुआ करते थे। जाड़े की रात ऊपर से बारिश। हम कुकड़ रहे थे। 

हम पांचों में बोलने का काम श्यामरुद्र पाठक जी किया करते थे। श्याम जी की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे हिंदी, अँग्रेजी और संस्कृत में पूरे अधिकार के साथ धारा-प्रवाह लगातार बोलते रह सकते थे। वे अपनी बात बिल्कुल एक टेपरिकार्डर की तरह बिना एक शब्द इधर-उधर किए बोलते थे। मैं बिलकुल चुप पड़ा रहने वाला प्राणी था। डॉ मुनीश्वर गुप्त दूसरे प्रवक्ता थे। पुष्पेंद्र चौहान जी अलग ढंग से सोचते थे और विनोद कुमार गौतम जी मेरी तरह चुप रहते थे। आईआईटी की संयुक्त प्रवेश परीक्षा से अँग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त कराने का मुद्दा था। श्यामरुद्र पाठक एमएस फिजिक्स की अंतिम वर्ष की परीक्षा के सभी प्रश्न-पत्र हिंदी में लिखकर अपना परीक्षाफल रुकवाने का आनंद ले चुके थे। विनोद कुमार गौतम को दो बार हिंदी में लिखने के कारण एएमआईई की परीक्षा में शून्य अंक पाने का गौरव हासिल हो चुका था और मैं एम एड का परीक्षाफल रुकवाने का श्रेय शिरोधार्य किए बैठा था। डॉ मुनीश्वर गुप्त को एमडी की डिग्री हिंदी में लिखने पर भी मिल चुकी थी और पुष्पेंद्र चौहान दिल्ली बार काउंसिल में अँग्रेजी का पर्चा बिना लिखे पंजीकरण पा चुके थे।

एक प्रेस फोटोग्राफर चाहते थे कि जिंदाबाद-मुर्दाबाद की मुद्रा में एक फोटो हो जाए मगर हम पांचों सनकी इसपर सहमत नहीं थे। हमें ये भी पता नहीं था कि वास्तव में हमारे ज्ञापन या अभ्यावेदन कोई पढ़ भी रहा या नहीं। सतर्कता विभाग का एक अधिकारी जेएनयू का छात्र बनकर हमारे खेमे में घुसपैठ करना चाहता था परंतु हम पाँच, छह बनने को तैयार नहीं थे। हमारे अनशन का दूसरा या तीसरा दिन था। शायद रविवार की सुबह दस या ग्यारह बजे का समय था। हम लोग एक पुरानी दरी पर स्वयं को समेटे बैठे थे। तभी हाथ में ब्रीफकेस थामे एक लंबे से भारी भरकम व्यक्तित्व ने आकर पूछा- बच्चो बात क्या है, आप लोग क्या चाहते हैं?

हमारी नीति यह थी कि जो भी बात करना चाहता है उसे हमारे साथ, हमारे पास बैठकर बात करनी होगी। श्याम जी ने उस विशाल व्यक्तित्व से आग्रह किया कि कृपया बैठ जाइए। वे बैठ गए। श्याम जी अपने अंदाज़ में शुरू हो गए। पाँच मिनट, दस मिनट फिर पंद्रह मिनट गुजर गए, श्याम जी विस्तार से सप्रमाण अपनी बात बताते रहे। तब पूछने वाले सज्जन ने प्रस्ताव रखते हुए कहा – क्यों न हम अंदर चलकर बात करें? तब हम लोगों ने पूछा - श्रीमान आपका परिचय... ? उन्होंने अपना नाम बताया - मैं अनिल बोरडिया हूँ, शिक्षा सचिव ...आप लोग मेरे ही खिलाफ तो अनशन कर रहे हैं।


हम पांचों एक दूसरे का चेहरा ताकने लगे। फिर उनके केबिन में हम लोग उनके साथ जा बैठे। उन्हें एनसीईआरटी और आईआईटी दिल्ली के सर्वेक्षण का ब्यौरा दिया तो वे सारी बात समझ गए। उन्होंने हमें भरोसा दिलाया कि वे भारतीय भाषाओं के माध्यम से पढ़ने वालों को न्याय दिलाकर रहेंगे। आईआईटी के निदेशक मण्डल को इसमें परेशानी थी। बैठक पर बैठक होती रहीं। बोरडिया साहब ने कहा - "जितना समय लगाना है लगा लीजिए पर भारतीय भाषाओं को आईआईटी संयुक्त प्रवेश परीक्षा में जगह देनी ही होगी।" मैं आज तक नहीं जान पाया कि हमारे अनशन स्थल पर बैठक के बाद गद्दे कहाँ से आएँ, पंडाल कहाँ से लगा? 

शास्त्री भवन प्रांगण में दफा 144 लगी रहती थी मगर हम लोगों का न कोई विरोध हुआ, न कोई गिरफ़्तारी हुई। पांचवे दिन हम लोग बहुत चल-फिरने लायक नहीं रह गए थे, पेट की अतड़िया ऐंठने लगी थीं। एक बार फिर बैठक शुरू हुई। अनिल बोर्डिया जी ने कहा - " इन पांचों के सामने ही सारी बात होनी चाहिए।" हम लोग कुर्सियों पर बैठने में असहज महसूस कर रहे थे। फिर पैरों को पेट से चिपका कर बैठ गए। शाम को जब जब मांगें मान लिए जाने का पत्र टाइप हुआ तो वह अँग्रेजी में था। अनिल बोर्दिया जी ने कहा- कम से कम ये पत्र तो हिंदी में होना चाहिए था! उनके एक मातहत ने खींसे निपोरते हुआ कहा- सर, हिंदी में टाइप करने वाला आज नहीं आया है। बहुत सारी बातें हैं जिनका जिक्र कुछ लोगों को अच्छा नहीं भी लग सकता है, मगर अगर आईआईटी जेईई में भारतीय भाषाएँ माध्यम बनीं तो उसका बहुत कुछ श्रेय अनिल बोरडिया जी को भी जाता है।


23 साल से अधिक बीत गए राजभाषा विभाग में चाकरी करते हुए मगर यहाँ स्वर्गीय अनिल बोरडिया जी जैसा हिंदी एवं भारतीय भाषाओं के प्रति समर्पित व्यक्ति गाहे-बगाहे ही मुझे मिला होगा। यहाँ भांति-भांति के व्यक्तित्व मुझे मिले मगर अधिकांश को हिंदी से अधिक हिंदी की नौकरी से लगाव के लिए जुगाड़ लगाते हुए पाया। उन दिनों दैनिक हिंदुस्तान में लालमणि मिश्रा जी हमारे आंदोलन की कवरेज कराया करते थे। सेवा निवृत होने पर अनिल बोरडिया जी मिश्रा जी को अपनी किताब देने आए थे। अनिल जी के हिंदी के सरकारी महीने में परलोकवासी हो जाने से हिंदी के एक सच्चे समर्थक को खो देने का एहसास हो रहा है। मैं उस आमरण अनशन के बाद कभी भी उनसे मिलने का सौभाग्य नहीं पा सका मगर दिल से सोचने वाला यह अनाड़ी उन्हें कभी नहीं भुला पाया। बस उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना के साथ समाप्त करता हूँ। 

- अजय मलिक (c)

Sep 3, 2012

हिन्दी गद्यकोश

जी हाँ, कविताकोश के बाद हिन्दी गद्यकोश भी उपलब्ध है। यह जानकारी मुझे राहुल जी की फेस बुक पर उपलब्ध पोस्ट से मिली है। गद्यकोश में सभी प्रतिष्ठित हिन्दी रचनाकारों की गद्य कृतियाँ आकारादि क्रम में उपलब्ध हैं। लिंक नीचे दिया जा रहा है-



(गद्यकोश एवं राहुल जी की पोस्ट के सौजन्य से )