Feb 24, 2013

भला फिर नंगपन क्या है.......अशोक अग्रवाल

(डॉ कुँअर बेचैन की फेसबुक दीवार पर अशोक अग्रवाल की एक लाज़वाब ग़ज़ल मिली। आप भी इसका लुत्फ उठाएँ । साभार पेश है )
 
हुई है जब से शादी......इक अजब आसेब तारी है
मुसलसल खौफ रहता है , मुसलसल बेकरारी है

कसम से इक निवाला....कंठ से नीचे नहीं उतरा
सुना जब लौट के......मैके से आने को बीमारी है

मरा जब लग गया पानी पे कैसे.........तैरने देखो
यकीनन आदमी की ज़िन्दगी पर...सांस भारी है

नहीं मस्जिद में करते दंडवत मालूम है लेकिन
रुकू में जब गए........पीछे किसी ने लात मारी है

खुदा की देन कह कर...इतने बच्चे कर दिए पैदा
करानी पड़ गयी....घर की अलग मर्दमशुमारी है

तलफ़्फ़ुस,गुफ्तगू,तर्ज-ए-बयानी सब के सब शीरीं
ज़ुबान-ए-यार है.......या कारोबार-ए-खांडसारी है

ये बालिश्तों से घट कर उँगलियों से नप रहे कपड़े
भला फिर नंगपन क्या है.......अगर ये पर्दादारी है

हमारे शहर की सड़कों पे.....चलते हैं तो लगता है
पहाड़ों की ढलानों पर............अभी भूकंप जारी है

-अशोक अग्रवाल

Feb 23, 2013

बोलो क्या करूँ अब

सचमुच मैंने

दिल दिया ही नहीं था

दिलफेंक नहीं था...  

कोई जबरदस्ती

चुराकर भागा और

लापता हो गया ।  

बोलो क्या करूँ अब

इस बेदिली का
 
-अजय मलिक (c)

आइए पतली गली से यूनिकोड ....2

मुझे लगता है कि पिछली पोस्ट में कुछ या बहुत कुछ अधूरा रह गया है। भाई हरिनारायण त्रिवेदी जी ने सूचना दी है कि azhagi + का पोर्टेबिल संस्करण काम नहीं कर रहा है। वस्तुत: मैंने केवल इसी संस्करण को परख कर पिछली पोस्ट लिखी थी। पोर्टेबिल संस्करण को इंस्टाल करने की आवश्यकता नहीं है। इसे डेस्कटॉप पर या पेन ड्राइव में सिर्फ खोलिए और लघुतर यानी मिनिमाइज़ कर लीजिए और वर्ड आदि में शुरू हो जाइए। हिन्दी के लिए कंट्रोल और 1 एकसाथ दबाइए। अभी मैंने इसे विंडोज़ 8 में भी परखने की कोशिश की है। विंडोज़ 8 में यह इन्टरनेट एक्सप्लोरर में काम नहीं कर रहा है, बाकी किसी प्रणाली में कोई समस्या नहीं है।
 
azhagi+ के माध्यम से एक अच्छी तमिल सिखाने वाली साइट भी मिली जिसका लिंक नीचे दे रहा हूँ-

http://www.thamizham.net/kal/ttenglish/index-u8.htm

पिछले दिनों एक मित्र ने कुछ सलाह मांगी थी। आज 24 साल से सोया हुआ मेरा परामर्शदाता जाग गया है। इससे पूर्व की वह फिर से सो जाए, सलाह दे डालता हूँ-
1. दो नावों में अगर किसी भी वजह से सवार हो गए हैं तो जैसे भी हो संतुलन बनाए रखिए; यदि संभव नहीं है तो
2. एक नाव छोड़ दीजिए;  यदि नहीं तो
3. फिर डूबने से डरना छोड़ दीजिए।

बस ...

Feb 21, 2013

आइए पतली गली से यूनिकोड की सैर करें

आजके हिन्दू अखबार में एक लेख है जिसका लिंक नीचे दिया जा रहा है-

इसपर विस्तार से चर्चा करने के लिए कुछ समय चाहिए। संक्षेप में यह लेख आपको पतली गली से यूनिकोड की सैर कराने वाला साबित हो सकता है। बिना यूनिकोड सक्रिय किए सिर्फ पेन ड्राइव में 395kb का सॉफ्टवेयर लिए आप किसी भी विंडोज़ कंप्यूटर में सभी भारतीय भाषाओं में धड़ल्ले से काम कर सकते हैं। मैंने पिछले डेढ़ घंटे में जो प्रयास जांच-परख का किया है उससे यही निष्कर्ष निकलता है कि बेहद आसान, सहज और सरल तरीके से पतली गली यानी शॉर्टकट से इस Azhagi+ सॉफ्टवेयर से हिन्दी सहित सभी भारतीय भाषाओं में यूनिकोड में काम किया जा सकता है।
 
 
 
इससे संबन्धित लिंक्स  नीचे हैं -  
 
कृपया आप भी इसे आज़माकर कुछ प्रतिक्रिया दें।

ठग नहीं हो, किन्तु तुम...डॉ कुँअर बेचैन

(प्रस्तुत है -डॉ कुँअर बेचैन का एक गीत, फेसबुक से साभार )


बहुत प्यारे लग रहे हो।

ठग नहीं हो, किन्तु तुम ही
हर नज़र को ठग रहे हो ।
बहुत प्यारे लग रहे हो ॥

दूर रहकर भी निकट हो
प्यास मैं, तुम तृप्ति-घट हो
मैं नदी की इक लहर हूँ
तुम नदी के स्वच्छ तट हो
सो रहा हूँ किन्तु मेरे
स्वप्न में तुम जग रहे हो।
बहुत प्यारे लग रहे हो॥

देह मादक, नेह मादक
नेह का मन-गेह मादक
और यह मुझ पर बरसता
नेह वाला मेह मादक
किन्तु तुम डगमग पगों में
एक संयत पग रहे हो।
बहुत प्यारे लग रहे हो॥

अंग ही हैं सुघर गहने
हो बदन पर जिन्हें पहने
कब न जाने आऊँगा मैं
यह ज़रा सी बात कहने
यह कि तुम मन की अंगूठी के
अनूठे नग रहे हो ।
बहुत प्यारे लग रहे हो॥

 - कुँअर बेचैन-
( लौट आए गीत के दिन' नामक गीत संग्रह से )

Feb 19, 2013

हिंदी शिक्षण योजना के पाठ्यक्रमों की परीक्षाओं के प्रश्न-पत्रों के नमूने

इंटरनेट पर केंद्रीय हिन्दी प्रशिक्षण संस्थान, नई दिल्ली के कुछ नए एवं सकारात्मक प्रयासों की झलक राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय की साइट पर देखी जा सकती है। प्रबोध, प्रवीण, प्राज्ञ तथा बैंकिंग प्राज्ञ के प्रशिक्षार्थियों के लिए पुराने प्रश्न-पत्रों को नेट पर डाउन लोड हेतु उपलब्ध कराया जाना भी इनमें एक है। उपर्युक्त पाठ्यक्रमों की नवम्बर 2012 में सम्पन्न सभी परीक्षाओं के प्रश्न-पत्रों के लिए केंद्रीय हिन्दी प्रशिक्षण संस्थान के संबंधित पृष्ठ का लिंक नीचे दिया जा रहा है-

यह एक बहुत अच्छी शुरुआत है। यदि पिछले दो-तीन वर्षों के प्रश्न-पत्र दिए जा सकें तो अभ्यास के लिए और अधिक संभावनाएँ बनेंगी।  इसी क्रम में ऑनलाइन परीक्षा तथा हिन्दी टंकण एवं आशुलिपि परीक्षाओं के प्रश्न-पत्र भी दिए जाएँ तो परीक्षार्थी बेहद लाभान्वित होंगे।

Feb 18, 2013

कुछ रोशन करूँ - अजय मलिक

जलना ही है तो

दिये की लौ बनूँ

कुछ रोशन करूँ
 
थोड़ी तपन दूँ

 -अजय मलिक

किस्सा - एक अनोखा किस्सा

एक मित्र ने कहा- "सहयोग कीजिए।"
मुझसे सहयोग से अधिक असहयोग की अपेक्षा की जाती है।
मद्रास में शायद असहयोग का अधिक महत्व है। मुझसे सहयोग मांगने का मन बहुत कम लोगों का होता है।
मैंने पूछा- " क्या सहयोग अपेक्षित है?"
मित्र ने कहा-" जरा, एक पचास का नोट निकालिए।"
मेरे पचास देने से पहले ही वे "किस्सा" थमाकर चले गए। बोले - "पचास कल ले लूँगा।"
बेहद अच्छी साज़सज्जा  के साथ बहुत अच्छे कागज पर छापा गया यह 200 पृष्ठ का सुंदर कहानी संग्रह मन को छू गया। यकीन मानिए, मित्रवर को पचास दे चुका हूँ। किस्सा अगर आपको मिल जाए तो जरूर पढ़िए। सहयोग राशि मात्र पचास रुपए।
प्रकाशक: सुधा स्मृति ट्रस्ट, भागलपुर -812001



 

Feb 16, 2013

ग़ज़ल मेरी मुझे तेरी ज़ुबानी अच्छी लगती है- शायर अशोक मिज़ाज बद्र

(फेस बुक पर शायर अशोक मिज़ाज बद्र की यह ग़ज़ल जो मुझे बहुत पसंद आई, यहाँ साभार प्रस्तुत है - अ. म.)


बहुत से मोड़ हों जिसमें कहानी अच्छी लगती है
निशानी छोड़ जाए वो जवानी अच्छी लगती है

सुनाऊं कौन से किरदार बच्चों को कि अब उनको
न राजा अच्छा लगता है न रानी अच्छी लगती है

खुदा से या सनम से या किसी पत्थर की मूरत से
मुहब्बत हो अगर तो ज़िंदगानी अच्छी लगती है

पुरानी ये कहावत है सुनो सब की करो मन की
खुद अपने दिल पे खुद की हुक्मरानी अच्छी लगती है

ग़ज़ल जैसी तेरी सूरत ग़ज़ल जैसी तेरी सीरत
ग़ज़ल जैसी तेरी सादा बयानी अच्छी लगती है

गुज़ारो साठ सत्तर साल मैदाने अदब में फिर
क़लम के ज़ोर से निकली कहानी अच्छी लगती है

मैं शायर हूँ ग़ज़ल कहने का मुझको शौक़ है लेकिन
ग़ज़ल मेरी मुझे तेरी ज़ुबानी अच्छी लगती है

-शायर अशोक मिज़ाज बद्र

Feb 13, 2013

शर्म हमको मगर नहीं आती..... राहुल देव

 (राहुल जी की यह पोस्ट फ़ेस बुक से साभार ) 
    
यह पोस्ट सामान्यतया सबके लिए और खास तौर पर एक राजेश शर्मा के लिए है जिन्होंने हमारे जारी भाषा संवाद में एक जगह लिखा कि अंग्रेजी ने हिन्दी के 6.5 लाख शब्द लिए हैं तो हिन्दी वाले इतना क्यों चिल्ला रहे हैं। उन्होंने उत्सुकता जगाई और हमने कुछ तलाशा तो यह मिला।

अंग्रेजी शब्द संख्या के अनुमान 2.5 लाख, 7.5 लाख (ऑक्सफर्ड इंग्लिश डिक्शनरी) और अधिकतम 10,13,913 (स्रोतः ग्लोबल लैंग्वेज मॉनिटर, 1 जनवरी,2012 तक) हैं।

हिन्दी शब्दों के अनुमान 1.20 लाख से 2 लाख और एक पूर्णतः अपुष्ट, संदर्भ-स्रोतहीन अनुमान के अनुसार 7.5 लाख हैं।

1886 में दो अंग्रेजों यूल और बर्नेल ने एक प्रसिद्ध शब्दकोश निकाला - हॉबसन जॉबसन। इसमें अंग्रेजी राज के दौरान अंग्रेजी में शामिल किए गए हिन्दी, उर्दू, पुर्तगाली, अरबी फारसी आदि के शब्दों को शामिल किया गया था। इसमें लगभग 2000 प्रविष्टियां हैं। यह अद्भुत ग्रंथ है, और मेरे पास है।

अब अंतिम बिन्दु जिसको लेकर बहुत से हिन्दी वाले हमारे जैसों को शुद्धतावादी, क्रुद्धतावादी वगैरह कह कर गरियाते, लजाते, फटकारते रहते हैं। कल दिलीप मंडल ने भी मेरे प्रतिवाद में लंबी बात करते हुए इसका ज़िक्र किया था। आज के अंग्रेजी के दुनिया में सबसे प्रामाणिक शब्दकोश ऑक्सफर्ड में हिन्दी के कितने शब्द हैं, या भारतीय भाषाओं के कितने शब्द हैं...खोजने पर जो संख्या मुझे मिली है वह है लगभग 700।

ये सारे लगभग वे शब्द हैं जो अद्वितीय और अनूठे ढंग से ठेठ भारतीय हैं। ये अंग्रेजी के आम शब्दों के भारतीय विकल्प नहीं हैं। इनसे अंग्रेजी समृद्ध और वैश्विक हुई है।

अंग्रेजी ने अपने रोजमर्रा के आम, प्रचलित, परिचित शब्दों को भगा कर उनकी जगह भारतीय शब्दों को नहीं बिठाया। इन भारतीय शब्दों से अंग्रेजीभाषियों की अंग्रेजी अभिव्यक्ति क्षमता खंडित, प्रदूषित और भ्रष्ट नहीं हुई है। वह मां को आज भी मदर ही बोलते हैं मां नहीं। और हम...हम बोलते हैं मदर, फादर, ब्रदर .....सूची लंबी और सुपरिचित है।

शर्म हमको मगर नहीं आती.....
 
- राहुल देव
 
हमारे मित्र और मेरी इस नकली साहब नुमा फोटो के अपराधी सुशील पंडित की एक मार्मिक टिप साझा कर रहा हूं।Sushil Pandit सदियां लग जाती हैं किसी सक्षम भाषा के बनने में । पीढ़ियाँ चुक ज।ती हैं उसमें जीवंत अभिव्यक्ति की क्षमता भरने में । देश, काल और परिस्थितियों के अपने विशिष्ट अनुभवों को संजोते-संजोते, ज्ञान और साहित्य के अपने कोष बनाते-बनाते, दर्शन व इतिहास की एक अलग समझ-बूझ तराशते-तराशते, कोई भाषा किसी स्वाभिमानी समूह की गौरवश।ली पहच।न बन प।ती है । फिर वही भाषा माँ की तरह अपने भाषियों को पालती भी है । हमें हमाँरी भाषा पकी-पकायी, थाली में परोसकर मिली है। शायद इसी लिए हम उसे बाज़ार के तराज़ू में तौलने निकल पड़े हैं । हिब्रु को यहूदी अगर इसी तरह तौलते तो दो हजार साल के अंतराल पर इज़रायल में वो फिर से आम बोलचाल में न आती । 
- राहुल देव

Feb 9, 2013

पहचानो जरा ...


Feb 7, 2013

कंप्यूटर पर हिन्दी और हिन्दी में कंप्यूटर : ज्ञान यज्ञ

इसके संबंध में संभवत: पहले भी जानकारी दी गई थी। ज्ञानयज्ञ पर आपको हिन्दी में कम्प्यूटर, विंडोज़, एम एस ऑफिस आदि से संबन्धित जानकारी से ओतप्रोत ढेर सारे यू ट्यूब  के वीडियो मिलेंगे। आज  श्री अमरजीत ने इसके बारे में एक ईमेल भेजा है। लिंक नीचे दिया गया है। स्वयं आज़माकर देखिए, एक क्लिक भर ही तो करना है- 

http://www.gyanyagya.info