Jun 23, 2012

कारक

(भारत कोश के सौजन्य से) 

Jun 17, 2012

'फादर्स डे' पर काका हाथरसी की एक कविता


फादर ने बनवा दिये तीन कोट¸ छै पैंट¸
लल्लू मेरा बन गया कालिज स्टूडैंट।
कालिज स्टूडैंट¸ हुए होस्टल में भरती¸
दिन भर बिस्कुट चरें¸ शाम को खायें इमरती।
कहें काका कविराय¸ बुद्धि पर डाली चादर¸
मौज कर रहे पुत्र¸ हडि्डयां घिसते फादर।

पढ़नालिखना व्यर्थ हैं¸ दिन भर खेलो खेल¸
होते रहु दो साल तक फस्ट इयर में फेल।
फस्ट इयर में फेल¸ जेब में कंघा डाला¸
साइकिल ले चल दिए¸ लगा कमरे का ताला।
कहें काका कविराय¸ गेटकीपर से लड़कर¸
मुफ़्त सिनेमा देख¸ कोच पर बैठ अकड़कर।

प्रोफ़ेसर या प्रिंसिपल बोलें जब प्रतिकूल¸
लाठी लेकर तोड़ दो मेज़ और स्टूल।
मेज़ और स्टूल¸ चलाओ ऐसी हाकी¸
शीशा और किवाड़ बचे नहिं एकउ बाकी।
कहें 'काका कवि' राय¸ भयंकर तुमको देता¸
बन सकते हो इसी तरह 'बिगड़े दिल नेता।
- काका हाथरसी
(कविता कोश के सौजन्य से )

पूछ लूँ मैं नाम तेरा ....... - अज्ञेय


( अज्ञेय जी की इस कविता को न जाने कितने बरसों से ढूंढ रहा था मैं..."पूर्वा" में पढ़ी इस कविता के कुछ अंश मुझे सदा याद रहे मगर पूरी कविता याद करने-गुनगुनाने की चाह हमेशा बनी रही। आज अचानक मुझे यह कविता दास्तां-ए-समीर नामक ब्लॉग पर मिल गई। समीर जी को धन्यवाद)

पूछ लूँ मैं नाम तेरा,
मिलन रजनी हो चुकीविच्छेद का अब है सवेरा!
जा रहा हूँ और कितनी देर अब विश्राम होगा,
तू सदय है किन्तु तुझको और भी तो काम होगा!
प्यार का साथी बना थाविघ्न बनने तक रुकूँ क्यों?
समझ ले स्वीकार कर ले, यह कृतज्ञ प्रणाम मेरा!
पूछ लूँ मैं नाम तेरा!


और होगा मूर्ख जिसने चिर-मिलन की आस पाली-
'पा चुका अपना चुका' - है कौन ऐसा भाग्यशाली ?
इस तड़ित को बाँध लेना, दैव से मैंने न माँगा-
मूर्ख उतना हूँ नही, इतना नहीं है भाग्य मेरा!
पूछ लूँ मैं नाम तेरा!


श्वाँस की हैं दो क्रियाएँ - खींचना फिर छोड़ देना,
कब भला संभव हमे इस अनुक्रम को तोड़ देना?
श्वाँस की उस संधि सा है इस जगत में प्यार का पल,
रुक सकेगा कौन कब तक बीच पथ में डाल डेरा?
पूछ लूँ मैं नाम तेरा!


घूमते हैं गगन में जो दीखते हैं स्वच्छंद तारे,
एक आँचल में पड़े भी अलग रहते हैं बिचारे-
भूल में पल भर भले छू जाएँ उनकी मेखलाएँ-
दास मैं भी हूँ नियति का क्या भला विश्वास मेरा!
पूछ लूँ मै नाम तेरा!


प्रेम को चिर एक्य कोई मूढ़ होगा तो कहेगा,
विरह की पीड़ा न हो तो प्रेम क्या जीता रहेगा?
जो सदा बांधे रहे वह एक कारावास होगा-
घर वही है जो थके का रैन भर का हो बसेरा!
पूछ लूँ मैं नाम तेरा!


प्रकृत भी है अनुभूति; वह रस-दायिनी निष्पाप भी है,
मार्ग उसका रोकना ही पाप भी है, शाप भी है;
मिलन हो, मुख चूम लेंआई विदा, ले राह अपनी-
मैं न पूछूंतुम न जानो, क्या रहा अंजाम मेरा!
पूछ लूँ मैं नाम तेरा!


रात बीतीयद्यपि उसमें संग भी था, रंग भी था,
अलग अंगों में हमारे, स्फूर्त एक अनंग भी था;
तीन की उस एकता में प्रलय ने तांडव किया था-
सृष्टि-भर को एक क्षण भर बाहुओं का बाँध घेरा!
पूछ लूँ मैं नाम तेरा!


सोच मत, 'यह प्रश्न क्यों, जब अलग ही हैं मार्ग अपने?'
सच नहीं होते, इसी से भूलता है कौन सपने?
मोह हमको है नहीं पर द्वार आशा का खुला है-
क्या पता फिर सामना हो जाए तेरा और मेरा!
पूछ लूँ मैं नाम तेरा!


कौन हम-तुम? दुःख और सुख होते रहेहोते रहेंगे;
जान कर परिचय परस्पर हम किसे जाकर कहेंगे?
पूछता हूँ क्योंकि आगे जानता हूँ क्या बदा है-
प्रेम जग का, और केवल नाम तेरा, नाम मेरा!
पूछ लूँ मैं नाम तेरा!


मिलन रजनी हो चुकी, विच्छेद का अब है सवेरा.....!!


सचिदानंद हीरानंद वात्सायन 'अज्ञेय' 

Jun 16, 2012

हमारे देश में साक्षरता 1901 से 2011 तक


गीतायन के गीत : फ़िल्मी गीतों से हिंदी सीखने का मंत्र

बहुत दिन बीत गए कोई नया लिंक दिए। आवारा फिल्म का एक संवाद है-"मेरी सूरत ही कुछ ऐसी है"। मित्रो मेरी सूरत और सीरत दोनों ही कुछ ऐसी हैं कि भाई लोग बीच-बीच में उलझाते रहते हैं। बहुत सारी वह ऊर्जा जिसका सदुपयोग कुछ नया करने में होना चाहिए उसे भाई लोगों द्वारा खड़ी की जाने वाली नई-नई बाधाओं को पार करने और स्वयं को जिंदा रखने की जद्दोजहद में करना पड़ता है। जब मैं त्रिवेन्द्रम में था तो डॉ. धर्मवीर जी अक्सर कहा करते  थे- "ये लोग जानते हैं कि तुम कुछ नया कर सकते हो, इसलिए जीवन भर तुम्हें उलझाए रखेंगे"। 
बहरहाल आज एक और लिंक पेश है। गीतायन का यह लिंक आपको 11000 हिंदी फ़िल्मी गीतों को रोमन और देवनागरी में पढ़ने कि सुविधा देता है। iTrans Song Book (ISB) के नाम से संग्रह किए गए ये गीत  कई मायनों में लाजवाब हैं। देवनागरी में इतनी सही वर्तनी में इन गीतों का मिलना अन्यत्र शायद ही कहीं संभव हो सके। गीतायन के 19 वर्षों से जारी इस प्रयास का आप भी लाभ उठाइए और गुनगुनाइए उन सदाबहार गीतों को जो दशकों से आपको सम्मोहित करते चले आ रहे हैं।



    

बस जरा नीचे दिए लिंक को क्लिक कीजिए -

गीतायन.कॉम/

(http://www.giitaayan.com के सौजन्य से) 

प्रवीण एवं प्राज्ञ पाठ्यक्रम की सहायक सामग्री संपादित

हमारी यह कोशिश रही है कि हिंदीतर भाषी हिन्दी प्रेमी विद्यार्थियों के साथ-साथ हमारे मित्र सहकर्मियों के रोज़मर्रा के कार्यालयीन दायित्वों के निर्वाह के लिए भी "हिंदी सबके लिए" सहायक सिद्ध हो सके। इसी क्रम में पिछले दिनों प्रवीण के पाठ सारांशों में दो और पाठों के सारांश सरल शब्दों में तैयार कर जोड़े गए हैं।
प्राज्ञ पाठ्यक्रम के मसौदा लेखन भाग के विभिन्न मसौदों का अलाइनमेंट यानी संरेखण भी गूगल क्रोम की सहायता से सही करने की कोशिश की गई है। अभी भी इसमें बहुत सुधार की आवश्यकता है और हम वादा करते हैं कि आगे भी हम निरंतर सुधार की यह प्रक्रिया जारी रखेंगे।  

Jun 10, 2012

काश, शंघाई की टीम से हिन्दी में गोल्डफिंगर बना पाता!

अचानक परीक्षित का फोन आया- अंकल, नेट पर हो तो जल्दी से शंघाई के प्रीमियर की बुकिंग करा लो। मैंने उसके उकसाने पर 4 टिकटें बुक करा लीं।  आज चौथे दिन भी फिल्म दिमाग पर छाई है। चेन्नै में "लगे रहो मुन्ना भाई" के बाद सिनेमा हाल में यह पहली फिल्म थी जो मैंने देखी। फिर कल रॉवड़ी राठौर भी देखी।


आज शंघाई की दो समीक्षाएं डेक्कन क्रॉनिकल में पढ़ीं। प्रतिष्ठित एवं बेहद वरिष्ठ फिल्म समीक्षक ख़ालिद मोहम्मद ने फिल्म को 50% अंक दिए हैं। यदि मुझे इस पर असहमत होने का हक है तो उनके दिए अंकों से मैं शतप्रतिशत असहमत हूँ। दूसरी समीक्षा सुपर्णा शर्मा की है जो शंघाई को 90% अंक देती है। मैं सुपर्णा शर्मा की समीक्षा को काफी हद तक  सटीक मानता हूँ।
शंघाई फिल्म की शुरुआत जरूर थोड़े हिचकोलों के साथ होती है परंतु जब भूमिका बंध जाती है तो  फिल्म उड़ने लगती है। दर्शक उसकी गति से डरता है, सहमता है मगर उड़ान का पूरा मज़ा लेने का लोभ है कि लगातार बढ़ता जाता है। फिल्म का तकनीकी पक्ष जितना मजबूत है उतना ही कलाकारों का अद्वितीय अभिनय। पटकथा, गीत-संगीत, संपादन सब प्रशंसनीय है।



इमरान हाशमी के अभिनय को लेकर हमेशा मेरे मन में संशय रहा है (भाई संजय मासूम क्षमा करें) मगर शंघाई में उसने जोगी परमार को जिस तरह साकार किया है उससे मैं उसका मुरीद बन गया हूँ...



और अभय देओल का तो कहना ही क्या है! कृष्णन के किरदार में दूसरा कौन है जो इतना परफेक्ट हो सकता था? फारूख शेख के अभिनय पर कुछ कहना तो सूरज को दीपक दिखाने जैसा होगा, अभिनय की इतनी समझ भी मुझमें नहीं है कि उनके बारे में कुछ कह सकूँ।


लेकिन प्रोसेनजीत चटर्जी  ने अहमदी की भूमिका में पृथ्वीराज कपूर और सोहराब मोदी की गरजती आवाज और बलराज साहनी के अभिनय की याद ताज़ा कर दी। कालकी कोचलीन ने भी अपनी भूमिका के साथ बेइंसाफ़ी नहीं होने दी।


भग्गू की भूमिका में पितोबास  त्रिपाठी में मुझे एक और इरफान नज़र आया। निर्देशक दिबाकर बनर्जी को बधाई। 
कुल मिलाकर कह सकता हूँ कि अगर मुझे इस फिल्म की टीम को लेकर फिल्म बनाने के लिए कहा जाए तो बेहिचक मैं हिन्दी में "गोल्डफिंगर" बनाऊँ,  अभय देओल को जेम्स बॉन्ड (सियान कोन्नेरी  ) बना डालूँ, इमरान हाशमी को ओड्डजोब (हेरोल्ड सकाटा) और  प्रोसेनजीत चटर्जी को औरी गोल्डफिंगर (गेर्ट फ़ोरबे) की भूमिका दूँ। फिल्म देखने का मन है तो शंघाई जरूर देखें।  
-अजय मलिक

2007 में राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित श्रीमती लता रामचंद्रन, पीआरटी, केंद्रीय विद्यालय आईआईटी मद्रास, लीला प्रवीण का प्रशिक्षण ले रहीं हैं।

केंद्रीय हिन्दी प्रशिक्षण उपसंस्थान, लीला हिन्दी कंप्यूटर प्रशिक्षण केंद्र, चेन्नै में लीला प्रवीण का प्रशिक्षण ले रहीं श्रीमती लता रामचंद्रन , पीआरटी, केंद्रीय विद्यालय आईआईटी मद्रास, वर्ष 2007 में राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित हो चुकी हैं। उन्होंने अपने विद्यालय के अनेक शिक्षकों को हिन्दी प्रशिक्षण के लिए प्रेरित किया।
(फोटो सौजन्य  केंद्रीय विद्यालय आईआईटी मद्रास)

नराकास (बैंक एवं वि॰सं॰), चेन्नै के सदस्य कार्यालयों के कार्मिकों के लिए आयोजित हिन्दी/इंडिक यूनिकोड कार्यशाला

केंद्रीय हिन्दी प्रशिक्षण उपसंस्थान, लीला हिन्दी कंप्यूटर प्रशिक्षण केंद्र, चेन्नई में नराकास  (बैंक एवं वि॰सं॰), चेन्नै के सदस्य कार्यालयों के कार्मिकों के लिए आयोजित हिन्दी/इंडिक यूनिकोड कार्यशाला के उद्घाटन  अवसर का एक चित्र। 


    [फोटो सौजन्य नराकास  (बैंक एवं वि॰सं॰) ]