-अजय मलिक
कुछ ऐसी चले पवन निर्मल
हर राह बिछे पुष्पी चादर
हो दीपक से जग भर रोशन
सूरज शरमा कर छुप जाए ।
मीलों तक चले तेरी चिक-चिक
रुक जाए घड़ियों की टिक-टिक
झगडें फिर से दो-चार बार
फिर हो जाएँ दो-चार वार
बीते पल-पल का हो हिसाब
हर बात पुरानी हो जाए I
कुछ ऐसी चले पवन निर्मल ...
ना तू माने, ना मानूँ मैं
ना तू जाने, ना जानूँ मैं
मैं-मैं तू-तू की काँव-काँव
जब मिलें ख्वाब में किसी ठांव
पतझड़ हो या फूल-ए-बहार
वह शाम सुहानी हो जाए I
कुछ ऐसी चले पवन निर्मल ...
कुछ ऐसी चले पवन निर्मल
हर राह बिछे पुष्पी चादर
हो दीपक से जग भर रोशन
सूरज शरमा कर छुप जाए ।
मीलों तक चले तेरी चिक-चिक
रुक जाए घड़ियों की टिक-टिक
झगडें फिर से दो-चार बार
फिर हो जाएँ दो-चार वार
बीते पल-पल का हो हिसाब
हर बात पुरानी हो जाए I
कुछ ऐसी चले पवन निर्मल ...
ना तू माने, ना मानूँ मैं
ना तू जाने, ना जानूँ मैं
मैं-मैं तू-तू की काँव-काँव
जब मिलें ख्वाब में किसी ठांव
पतझड़ हो या फूल-ए-बहार
वह शाम सुहानी हो जाए I
कुछ ऐसी चले पवन निर्मल ...
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