Jul 27, 2013

पांचवें वर्ष की शुरुआत सिर्फ श्यामरुद्र पाठक से...

[ मित्रो,
"हिंदी सबके लिए" को कल चार वर्ष हो गए। अपनी भाषाओं के लिए हम बस हाथ-पैर मारने की कोशिश करने का बहाना सा करते रहे। यदि कुछ कर पाते तो मन में संतोष होता, नहीं कर पाए तो निराशा न भी सही मन उदासी से छलक-छलक जा रहा है। इस जुलाई में कुछ भी नहीं लिखा जा सका। बस जिस एक भारतीय इंसान के बारे में सोचता रहा उसी से इस पांचवें वर्ष की शुरुआत करना चाहता हूँ। मैं सोचता रहा कि "हम भारत के लोग" जिनके लिए विधान यानी हमारा संविधान बना क्या उनमें श्याम रुद्र पाठक नाम का विशुद्ध भारतीय इंसान शामिल नहीं है? मेरे पास कोई जवाब नहीं है। कई बार मन में यह विचार आया कि मुझे भी श्याम रुद्र पाठक होना चाहिए मगर इतनी हिम्मत, इतनी समझ, इतना धैर्य, इतनी शक्ति मुझमें नहीं है। कई बार नौकरी छोड़कर श्यामरुद्र पाठक के साथ जाकर खड़े होने का मन भी हुआ ...
 
श्यामरुद्र पाठक से मिले शायद दो दशक बीत गए... फेसबुक पर वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव ने श्यामरुद्र पाठक के बारे में बहुत सारी जानकारी और बहुत सारे चित्र दिए हैं। हिंदी सबके लिए के मित्रों तक पहुंचाने के उद्देश्य से उपर्युक्त समस्त सामग्री यहाँ साभार दी जा रही है।]


 
चित्र क्रमश: 1. अदालत में दंडाधिकारी के सामने अपने वकीलों के साथ अपनी बात रखते पाठक जी। 2. लगभग 250 दिनों बाद मिले पति से बतियातीं मंजू जी। 3. श्यामरुद्र पाठक जी
(सभी चित्र राहुल देव जी के फेसबुक पृष्ठ से साभार )

सौ करोड़ से ज्यादा भारतीयों के अपनी भाषा में न्याय पाने, होते देखने, उस प्रक्रिया में शामिल होने और उससे अवगत होने के बुनियादी अधिकार के लिए ऐतिहासिक और अभूतपूर्व लड़ाई लड़ने वाले श्यामरूद्र पाठक को गलत, झूठे, मनगढंत आरोप लगा कर तिहाड़ जेल में भेजे जाने, वहां सामान्य अपराधियों के साथ रखकर शारीरिक और मानसिक यंत्रणा दिए जाने, फिर एक सप्ताह के बाद परसों 24 जुलाई को पहली बार अदालत में पेश किए जाने तक के समय में सारी भाषाओं तो क्या हिन्दी के अधिकांश अखबारों, चैनलों, लेखकों, विद्वानों, दुकानदारों, मठाधीशों को उनकी सुध लेने की जरूरत़ महसूस नहीं हुई।

जिस दिल्ली में रोज कम से कम आधा दर्जन साहित्यिक गोष्ठियां, कविता-कहानी पाठ, लोकार्पण, सम्मान आदि के कार्यक्रम अकेली हिन्दी में ही होते हैं, दर्जनों सरकारी-गैरसरकारी हिन्दी और अन्य भाषाओं की अकादमियां, संस्थाएं हैं, हजारों लेखक हैं, एक करोड़ से ज्यादा भारतीय भाषाभाषी हैं, चंद हजार हिन्दी शिक्षक हैं, छात्र हैं - उसमें उसका हाल पूछने, उसका साथ देने, उसकी गैरकानूनी गिरफ्तारी का विरोध करने मुश्किल से डेढ़ सौ लोग रहे।

Jul 7, 2013

हिन्दी सबके लिए के कुछ उपयोगी पुराने चिट्ठे





























Jul 5, 2013

गिराऊ संगठन जिंदाबाद...

वह चलते-चलते अचानक गिर पड़ा था। कुछ चक्कर सा आया था और फिर जो समझ में आया वह अस्पताल के सघन चिकित्सा कक्ष में आक्सीज़न मास्क का खुरदरापन भर था। दो दिन पहले ही डाक्टर ने उसे चेताया था कि लगातार तनाव में रहने के कारण उसके दिमाग की नसें कमजोर हो चली हैं और उसे लंबे अवकाश और नियमित इलाज़ की जरूरत है। सघन चिकित्सा कक्ष के वातानुकूलित और जीवाणुरहित माहौल में अभी वह सही से साँसे संभालने की कोशिश कर ही रहा था कि दरवाजा हल्का सा खुला और उससे बाहर मच रहा हंगामा उसके कानों में झनझनाने लगा।

बाहर हंगामा करने वालों की चिल्लाहट में उनकी बेबसी और छटपटाहट साफ झलक रही थी। उनका कहना था – “ आखिर ये गिर कैसे सकता है ये ही क्यों गिरा ? हम क्यों नहीं गिरे? यह आदमी गिरने में भी हमसे बाजी मार लेना चाहता है। ये हो ही नहीं सकता कि यह हमसे अधिक गिर जाए। हम सदाबहार गिराकु हैं। हम इस हद तक गिरे हुए हैं कि हमने और अधिक नीचे गिरने के लिए गहराई नाम की चीज़ ही नहीं छोड़ी है। हम पैदायशी गिरे हुए हैं और जन्म से आज तक लगातार गिरते आ रहे हैं। गिरने का ऐसा कोई दाव-पेंच नहीं है जिसका वृहद ज्ञान और अभ्यास हमें न हो। गिरने की किसी भी प्रतियोगिता में आज तक हमसे अधिक गिर कर हमें कोई नहीं हरा सका है। गिरने में हमने सबको हजारों मील पीछे छोड़ा है। फिर भी हमें कभी किसी ने आक्सीजन नहीं दिलवाई, हमें कोई अस्पताल नहीं लाया। एक ये है कि साला चुपके से हमारे गिराऊ और गिरावट भरे क्षेत्र पर भी कब्जा जमा लेना चाहता है। हमने इसकी हर बात बर्दाश्त की है। हमने इसे गिराने की भी हर संभव कोशिश की पर यह नहीं गिरा। हमने लगड़ी, टँगड़ी सब लगाई पर ये चिकना घड़ा नहीं गिरा। और आज चुपचाप गिर गया। गिरना था तो हमारे गिराने से गिरता, हमारे तरीके और सलीके से गिरता... मगर नहीं जनाब, हमें बताना या गिरने में हमसे मदद मांगना तो दूर, दुष्ट ने किसी को कानों-कान खबर तक नहीं होने दी, चुपके से गिर गया। इसे हर काम अपने आप करना है, ये हमें नीचा दिखाना चाहता है। ... पर गिरने के मामले में हम अपने संगठन का नाम बदनाम करने की किसी भी जानी-अनजानी कोशिश को कामयाब नहीं होने देंगे। इसे वातानुकूलित गहन चिकित्सा कक्ष से बाहर निकलवाकर ही दम लेंगे। एक बार बाहर आ जाए तो इसे बताएं कि गिरने वाले कैसे और क्या होते हैं”।
गिरा हुआ आदमी मुर्दाबाद...
गिराऊ संगठन... जिंदाबाद
गिराऊ एकता... ज़िन्दाबाद 
चुप-चुप गिरना
नहीं चलेगा... नहीं चलेगा...
हमारी गिरावट अमर रहे...अमर रहे 
गिरावट को चुनौती
नहीं चलेगी... नहीं चलेगी... नहीं चलेगी
इसके बाद तेज़ होते हुए नारों के शोर में उसकी चेतना धूमिल हो गई।  
   

-अजय मलिक (c)

Jul 2, 2013

ऑफिस 2013 : पीडीऍफ़ से वर्ड परिवर्तक भी

माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस 2013 में पीडीऍफ़ दस्तावेज़ को संपादन योग्य वर्ड दस्तावेज़ में बदलने की सुविधा भी दी गई है। माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस 2013 स्थापित करने के बाद किसी भी पीडीऍफ़ दस्तावेज़ को माउस के दाएँ  क्लिक के द्वारा सम्पादन योग्य वर्ड दस्तावेज़ में संजोया यानी सेव किया जा सकता है। यह ओसीआर की तरह नहीं है, क्योंकि यह स्कैन अथवा फोटो (जे पी जी आदि ) को पाठ यानी टेक्स में परिवर्तित नहीं करता। किन्तु इसे पीडीएफ से वर्ड परिवर्तक / कन्वर्टर कहा जा सकता है। 


-अजय मलिक 

Jul 1, 2013

सुधा गुप्ता की कविता : "पीले गुलाब"





उन सबके लिए जिन्हें पीले गुलाब पसंद हैं...