Oct 24, 2009

प्रवीण परीक्षा के लिए पाठ सारांश

दुर्गापुर में कार्यरत हमारे साथी हिंदी प्रवक्ता श्री विश्वजीत मजुमदार ने राजभाषा विभाग की प्रवीण परीक्षा लिखने जा रहे प्रशिक्षार्थियों (ट्रेनीज) के लिए कुछ उपयोगी सामग्री तैयार की है। उनके द्वारा तैयार किए गए पाठ सारांश कतिपय संपादन के साथ यहाँ दिए जा रहे हैं।
-अजय मलिक

उड़ीसा की सैर 
लेखक एलटीसी पर सपरिवार जगन्नाथ पुरी के दर्शन के लिए गए। वे उड़ीसा में अन्य ऐतिहासिक स्थलों को भी देखना चाहते थे। वे रेल से भुवनेश्वर गएभुवनेश्वर से पुरी की दूरी लगभग बावन किलोमीटर है। पुरी चार धामों में से एक है I यहाँ भगवान् श्रीकृष्ण बलभद्र सुभद्रा की काठ की मूर्तियाँ हैं। पुरी में अनेक मंदिर हैं । इसे मंदिरों की नगरी कहा जाता है। लेखक ने पुरी के समुद्र तट पर सूर्योदय देखा। उन्होंने सागर में स्नान भी किया। दो दिन बाद वे बस से कोणार्क गए। वहाँ कोणार्क का सूर्य मंदिर देखा। सूर्य मंदिर हमारी संस्कृति की अमूल्य धरोहर है। कोणार्क के बाद वे कलिंग का रणक्षेत्र भी देखने गए। वापसी में भुवनेश्वर व नंदनकानन भी गए। लेखक ने चिल्का झील में नौकायान किया। चिल्का झील में डाल्फिनों को देखकर उनके बच्चे बेहद खुश हुए। उड़ीसा की यह सैर लेखक के लिए यादगार बन गई। 


सपनों का महल


शिवनाथ बाबू मुंबई के डाक विभाग में काम करते थे। वे मुंबई से दूर नासिक में घर बनवा रहे थे। सेवा-निवृत्ति के बाद वे शांति से जीना चाहते थे। उन्होंने घर बनाने के लिए अपनी भविष्य निधि से अग्रिम लिया था। वे सेवा-निवृत्त होकर नासिक गए और घर संभालने लगे।  वे अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं और इस बात से खुश थे । वे अपने बेटे और बेटी को सही रास्ते पर चलाने की सलाह देते तो बेटे बेटी को यह अच्छा नहीं लगता। पत्नी का स्वभाव भी काफी बदल गया था। शिवनाथ बाबू को लगता कि उनका नासिक में रहना उनकी पत्नी और बच्चों को अच्छा महीं लगता। अपने ही घर में वे  खुद को अनावश्यक समझने लगे और फिर से मुंबई लौटने की सोचने लगे । जाने से पहले उन्हों ने एक बार सबसे बात करने का निर्णय लिया । उन्होंने सबको बुलाया ।  उनहों ने बताया कि वे तो सबका भला चाहते हैं; उनका नासिक में रहना यदि बाकी लोगों को पसंद नहीं है तो वे वापस मुंबई चले जाएंगे । यह सब सुनकर पत्नी और बच्चों को अपनी भूल समझ में आ गई और तो सबने माफी माँग ली ।
परीक्षा
सरदार सुजानसिंह देवगढ़ रियासत के दीवान थे। बूढ़े होने पर उन्होंने राजा से सेवामुक्ति हेतु प्रार्थना की। राजा ने उन्हें सेवामुक्ति से पूर्व नए दीवान की नियुक्ति की ज़िम्मेदारी सौंपी। नए दीवान की नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकाला गया। अनेक उम्मीदवार दीवान बनने के लिए आए। सभी उम्मीदवारों को एक माह तक अपने आचार-विचार एवं कर्तव्यनिष्ठ होने की परीक्षा देनी थी। एक दिन सभी उम्मीदवार युवक हाकी खेलकर लौट रहे थे। रास्ते में एक गरीब किसान की अनाज से लदी गाड़ी नाले की कीचड़ में फंसी पड़ी थी। किसी भी युवक ने किसान की मदद नहीं की। उस दिन हाकी खेलते हुए एक युवक के पैर में चोट लग गई थी। वह सबसे बाद में लगड़ाते हुए आया। घायल होने के बावजूद उसने गरीब किसान की मदद की और गाड़ी नाले से निकलवा दी। गरीब किसान का भेष बनाकर सुजान सिंह ही युवकों की परीक्षा ले रहे थे। मदद करने वाले युवक का नाम पंडित जानकीनाथ था।  सरदार सुजान सिंह ने पंडित जानकीनाथ की दयालु प्रवृत्ति एवं कर्तव्यनिष्ठा के आधार पर नए दीवान की परीक्षा में उत्तीर्ण घोषित कर दिया। उनका मानना था कि जिस आदमी के दिल में उदारता, आत्मबल एवं साहस हैं वह कभी भी दया और धर्म से पीछे नहीं हटेगा।   
इंफाल की यादें

लेखक को 21 साल के बाद इंफाल से लोखन सिंह का पत्र मिला। लोखन सिंह मणिपुर का रहने वाला था। वह लेखक के साथ इंफाल में जनगणना कार्यालय में लिपिल के पद पर काम करता था। लोखन सिंह हंसमुख एवं सीधे स्वभाव का व्यक्ति था। मणिपुरी लोग बाहर से आए लोगों से ज्यादा घुलना-मिलना पसंद नहीं करते। लेकिन वे अपने अतिथि का बेहद सम्मान करते हैं। लेखक और लोखन सिंह की मित्रता हो गई। एक दिन लोखन सिंह ने लेखक को अपने घर आने का निमंत्रण दिया। लोखन सिंह का घर बिसनपुर में था। वह लेखक को बस अड्डे पर लेने आया। उसके घर पर लेखक का खूब आदर-सत्कार किया गया। लोखन सिंह के पिता ने लेखक को अपने हाथ से बनाई टोकरी दी। उसकी बहन ने लेखक को शाल और चादर उपहार में दीं। लेखक इन उपहारों को कभी नहीं भूल पाया। इक्कीस साल बाद लोखन सिंह ने पत्र लिखकर लेखक को सपरिवार इंफाल बुलाया था। लेखक बेहद खुश हुआ और उसने लोखन सिंह से मिलने के लिए इंफाल जाने का निर्णय लिया।
मिट्टी की गाड़ी
मिट्टी की गाड़ी नाटक का नायक चारूदत्त है और वसंतसेना नायिका है। चारूदत्त की पत्नी का नाम द्यूता है।  चारूदत्त धनिकों की बस्ती में रहता हैव्यापार में घाटे के कारण वह गरीब हो गया है। वसंतसेना नाम की गणिका उसे प्रेम करती है। राजा का साला शंकर वसंतसेना को प्रेम करता है। चारूदत्त का एक पुत्र है। जिसके पास मिट्टी की गाड़ी है। उसके मित्रों के पास कीमती खिलौने हैं। वसंतसेना के चारुदत्त के पास रखे गहने चोरी हो जाते हैं। द्यूता अपना कीमती हार वसंतसेना के पास भिजवा देती है। चोरी का माल पकड़ा जाता है। वसंतसेना अपने गहने बच्चे की मिट्टी की गाड़ी में भर देती है। शंकर वसंतसेना का गला दबा देता है और आरोप चारुदत्त पर लगा देता है। चारुदत्त को वह फाँसी लगवाना चाहता है मगर तभी वसंतसेना वहाँ आ जाती है। जन क्रांति होती है और शंकर पकड़ा जाता है। जनता अपना नया चरित्रवान राजा चुनती है।       
 
शहरी जीवन

गाँव से लेखक अपने चाचाजी के घर दिल्ली आया। गाँव और शहर के रहन-सहन में उसने बहुत अंतर पाया । शहरों की जीवन शैली, भीड़-भाड़ और मंहगाई से उनके चाचाजी भी चिंतित थे। चाचा ने बताया कि किस तरह शहरों में महंगाई से नौकरी पेशा लोगों का जीना दूभर हो गया है। शहरों में सभी अपने आप में केंद्रित रहते हैं। एक पडोसी दूसरे पडोसी तक को नहीं जानता। दिल्ली की व्यस्त ज़िन्दगी देखकर लेखक समझ गया कि घर की समस्याओं , दफ्तर के काम, बसों की भीड़, प्रदूषित हवा आदि से शहरों में रहना कठिन हो गया है। शहरी लोग तनाव में रहने के कारण अनेक बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। इतने पर भी गाँव के लोग शहरों में आ रहे हैं क्योंकि शहरों में रोज़गार के अवसर अधिक हैं । लेखक का मन दिल्ली में नहीं लगा और दो दिन बाद ही वह अपने गाँव लौट आया ।

स्वामी विवेकानंद

हमारे देश में अनेक महापुरूषों ने जन्म लिया । स्वामी विवेकानंद इन्ही में से एक थे। बचपन में सभी उन्हें प्यार से नरेन कहते थे। वे बचपन से ही अत्यंत बुद्धिमान थे। उनकी स्मरण शक्ति बहुत तीव्र थी। स्वामी रामकृष्ण के उपदेशों से वे बहुत प्रभावित हुए। उनका विवेक जागृत हो गया और लोग उन्हें स्वामी विवेकानंद कहने लगे। शिकागो ( अमेरिका) में आयोजित विश्व धर्म महासभा में उन्होंने अपने भाषण की शुरुवात " अमेरिकावासी बहनों और भाइयों" से की तो सारा हाल तालियों से गूँज उठा। स्वामी विवेकानंद के जन्म दिवस को "युवक दिवस" के रूप में मनाया जाता है। यही हमारी स्वामी विवेकानंदजी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है।

भूमंडलीकरण

भूमंडलीकरण से आज डर कर बचना संभव नहीं है। आज कोई भी देश अपने आप में सिमटकर नहीं रह सकता। स्वतंत्रता पाने के समय हम आर्थिक दृष्टि से बहुत पिछडे हुए थे। स्वतंत्रता के बाद उद्योगों को सरकारी सहायता दिए जाने पर भी देश की आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं हुआ। भूमंडलीकरण के बाद देश ने बहुत प्रगति की है। अब देश का चंहुमुखी विकास हो रहा है । भूमंडलीकरण के प्रभाव से विकसित देशों से विज्ञान और प्रोद्योगिकी के आदान-प्रदान से हमें फायदा होगा . जितने नए - नए उद्योग लगेंगे उतने ही रोज़गार के अवसर भी बढ़ेंगे। जितना उत्पादन बढेगा उतना निर्यात भी बढ़ेगा। इससे देश की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। आयात निर्यात पर नियंत्रण कम होने से देश के उद्योगों को लाभ होगा। आयातित सस्ते कच्चे माल से बने उत्पाद की बिक्री से ज्यादा लाभ होगा। स्पष्ट है कि भूमंडलीकरण के अनेक लाभ हैं।

श्रीनगर

श्रीनगर झेलम नदी के तट पर बसा हुआ बहुत सुन्दर शहर है। डल झील श्रीनगर का प्रमुख आकर्षण है। झील में बहुत से सुन्दर हॉउस बोट हैं। इनमें पर्यटकों को घर जैसी सारी सुविधाएँ उपलब्ध हैं। छोटे आकार की लम्बी नावों को शिकारा कहते हैं। रंग-विरंगे फूल,सब्जियां और तरह-तरह की चीजों से लदे डल झील में तैरते शिकारे बहुत सुन्दर लगते हैं। श्रीनगर पर्यटन और हस्तशिल्प दोनों के लिए प्रसिद्द है। यहाँ लकड़ी तथा बर्तनों पर नक्काशी की जाती है। यह कपडों पर कश्मीरी कढाई और कालीन की बुनाई के लिए भी मशहूर है। यहाँ की पश्मीना और तोशा शालें विश्वविख्यात हैं। यहाँ सर्दी बहुत पड़ती है। कभी- कभी तापमान शून्य से नीचे चला जाता है। यहाँ के लोग मेहनती और मिलनसार हैं। कश्मीर घाटी की अनुपम सुन्दरता पर मोहित होकर फिरदौस ने इसे धरती का स्वर्ग कहा था।
अमर–आश्रम


किसी गाँव में एक धनी आदमी यहाँ एक पुत्र ने जन्म लिया। उसने उसका नाम "अमर" रखा। उसकी इच्छा थी कि पुत्र बड़ा होकर अच्छे काम कर अपना नाम अमर करे. अमर ने अपने पिता की इच्छा पूरी करने के अनेक उपाय किए । उसने कभी रेत पर अपना नाम लिखा तो कभी वृक्ष की छाल पर । कभी शिला पर तो कभी दीवार पर। लेकिन उसका कोई भी उपाय कारगर नहीं हुआ। अंततः वह एक संत के पास पहुंचा और अपने पिता की इच्छा बताई। संत ने उसे समझाया - " बच्चा , अपना नाम अमर करना है तो कोई ऐसा काम करो जिससे लोग तुम्हें हमेशा याद रखे।" अमर को एहसास हुआ कि लोगों की सेवा और भलाई करना ही सही रास्ता है। उसने जन सेवा करने का निर्णय लिया और अपने घर को आश्रम में बदल कर अपना पूरा जीवन जनसेवा में लगा दिया। उसका घर अमर-आश्रम के नाम से प्रसिद्ध हो गया. संत के बताये मार्ग पर चलकर उसने अपने पिता का सपना पूरा कर दिया।
प्राकृतिक आपदाएं

बाढ़, सूखा, भूकंप, ज्वालामुखी तथा तूफ़ान आदि प्राकृतिक आपदाएँ हैं । इनसे जानमाल की बहुत हानि होती है। प्राकृतिक आपदाओं के समय यातायात, संचार सेवाएँ ठप्प हो जाती हैं तथा घर- मकान गिर जाते हैं। इनसे जान-माल की हानि होती है. जंगलों की कटाई रोककर बाढ़ के खतरे को कम किया जा सकता है। भूकंप से बचाव के लिए भूकंपरोधी या लकडी से बने घरों का इस्तेमाल किया जा सकता है। सुनामी आदि से बचाव के लिए समुद्र तटों पर सघन वृक्षारोपण किया जाना चाहिए। प्राकृतिक आपदाओं के समय सरकार तथा विभिन्न स्वयं सेवी संगठनों को भी आपदा-प्रबंधन के लिए सदा जागरूक रहना चाहिए। एक ओर प्रकृति मनुष्य का मित्र है तो दूसरी ओर अपने रौद्र रूप में शत्रु भी है। हमें ऐसी आपदाओं से बचाव के लिए सदा सावधान रहें.

यूनीसेफ़


विश्व भर में बच्चों के हितों के लिए कार्य करने वाली संस्था यूनीसेफ़ है। इसे संयुक्त राष्ट्र बाल निधि भी कहते हैं। भारत में यह संस्था सन १९४९ से कार्य कर रही है। यह संस्था विश्व भर के लिए बच्चों के विकास के लिए प्रयासरत है। विश्व के अधिकांश देश अपने बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए यूनीसेफ़ को अपनी सहमति दे चुके हैं। बच्चों में लिंग भेद को समाप्त कर यूनीसेफ़ उनके अच्छे स्वास्थ के लिए संतुलित आहार सुनिश्चित करवाती है तथा बच्चों को पेयजल, बुनियादी शिक्षा आदि की सुविधाएँ उपलब्ध करवाती हैं. इसके साथ-साथ बच्चों को शोषण एवं उत्पीडन से मुक्त करवाती है. यूनीसेफ़ बच्चों में दृष्टिहीनता , पोलियो निवारण के साथ घेंघा रोग, काली खांसी, गलघोंटू से बचाव के लिए विटामिन ए, आयोडीन तथा अन्य दवाइयाँ भी उपलब्ध करवाती हैं. इसप्रकार यूनीसेफ़ ऐसी संस्था है जो विश्व के सभी बच्चों की भलाई के लिए कार्यरत है.


2 comments:

  1. आपके मित्र को उनके उत्तम कार्य के लिए बधाए तथा आपको इससे अवगत कराने के लिए।

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