Sep 20, 2009

मधुशाला बनाम भाषा शिक्षण और बच्चन जी


भाषा शिक्षण प्रारम्भिक स्तर पर साहित्य से अलग कहा जा सकता है मगर भाषा सीखने के लिए लय-ताल का भी अपना महत्त्व है. सम्प्रेषण मात्र शब्दों का हेर-फेर नहीं है. लहज़ा और अंदाज को समझे बिना शब्द हथोड़े की चोट की तरह हैं. संगीत शब्दों के बिना होते हुए भी भावों को कहीं अधिक गहराई तक और कहीं ज्यादा तेज गति से संप्रेषित करता है. हिंदी फिल्में देखने वाले अनेक लोग हिंदी नहीं जानते फिर भी वे बालीवुडी फिल्मों का मजा लेते हैं. फिर बिना अक्षर ज्ञान के वे शब्दों को आत्मसात करने लगते है. तमिलनाडु में ऐसे अनेक हिंदी भाषी हैं जो फर्राटेदार तमिल बोलते हैं मगर तमिल लिखना-पढ़ना नहीं जानते. मधुशाला बच्चन जी की वजह से चर्चित नहीं हुई बल्कि बच्चन जी को मधुशाला से बहुत ज्यादा लोकप्रियता मिली. यह एक अद्भुत रचना है जो गूढ़ दर्शन भी है और सहज ग्राह्य भी. मधु की तरह मधुर भी है और मद की तरह मदहोश करने वाली भी. अमिताभ बच्चन उसे गाएं या न गाएं मधुशाला उनसे पहले भी थी, आज भी है और आगे भी अवश्य रहेगी.

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