Feb 21, 2024

क्या हिंदी प्राध्यापक के लिए एम. ए. हिंदी के स्थान पर एम. ए. अँग्रेजी होना अधिक उपयुक्त है?

यदि अँग्रेजी प्राध्यापक अँग्रेजी विषय की बजाय हिंदी साहित्य में एम. ए. हो और अँग्रेजी उसने केवल बी. ए. तक पढ़ी हो, तो क्या उसे अँग्रेजी में एम.फिल. के विद्यार्थियों के गाइड के रूप में नियुक्त किया जा सकता है? 

मानता हूँ कि यह प्रश्न बेहद अटपटा है और स्वयं मुझे मूर्ख साबित करने के लिए पर्याप्त है, मगर दुर्भाग्य यही है कि मैं जहाँ केवल प्रश्न कर रहा हूँ, वहीं एक बेहद प्रबुद्ध संस्था ने हिंदी प्राध्यापकों के लिए हिंदी या अँग्रेजी में से किसी में भी एम.ए. होना पर्याप्त मान लिया है। घटना लगभग सवा आठ साल पुरानी है और एक तथाकथित विश्व विख्यात हिंदी के विद्वान के संबन्धित संस्था के निदेशक रहते हुई अंजाम तक पहुंचाई गई है। 

इसमें कोई शक नहीं कि मेरा भारत महान है और सदैव रहेगा भी, मगर जिसने एम ए तक हिंदी न पढ़ी हो ऐसा अँग्रेजी में स्नातकोत्तर उपाधि धारक, अनेक विश्वविद्यालयों के एम ए हिंदी के स्तर के पाठ्यक्रम को पढ़ाने में न्याय तो कदापि नहीं कर पाएगा। 

जय गोपाल। 

-अजय मलिक 

Feb 15, 2023

"निंदित" का संक्षिप्त परिचय

 संक्षिप्त परिचय

 

 

नाम :                      अजय मलिक

पदनाम :                    सेवानिवृत्त उप निदेशक (परीक्षा) 

अंतिम कार्यालय का नाम :    उप निदेशक परीक्षा का कार्यालय, हिंदी शिक्षण योजना, राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, आर. के. पुरम, नई दिल्ली।


सेवाकालीन मूल विभाग का नाम :     राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, केंद्रीय हिंदी प्रशिक्षण संस्थान  

 

सेवा के दौरान तैनाती स्थल :  चेन्नै, कवरत्ती (लक्षद्वीप), तिरुचिरापल्ली (त्रिचि), मुंबई, कलपाकम, तिरुपति, कोचिन, कोलकाता, अरक्कोणम, गाजियाबाद, नई दिल्ली  ।  

 

शैक्षणिक योग्यताएँ-           बी.एससी.; एम.ए. (हिंदी) ; एम.ए. (समाजशास्त्र) ; पीजीडीएएल (हिंदी); बी.एड.; एम.एड.; एड्वान्स्ड डिप्लोमा इन स्पेशल एडयूकेशन ; डिप्लोमा इन एडुकेशनल एंड वोकेशनल गाइडेंस (एनसीईआरटी); सीएफ़ए (फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट, पुणे) ।

राजभाषा कार्यान्वयन के क्षेत्र में अनुभव -

1.   राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय में राजभाषा हिंदी के प्रशिक्षण एवं कार्यान्वयन का 32 वर्षों का अनुभव।

2.   उप निदेशक (कार्यान्वयन) के पद पर कार्य करने का 8.5 वर्ष का अनुभव

3.   सहायक निदेशक (कार्यान्वयन) के पद पर कार्य करने का लगभग 2 वर्ष का अनुभव

4.   त्रिवेन्द्रम, कोचिन, रांची, वाराणसी, कोलकाता, इंदौर, गंगटोक, जोधपुर, चंडीगढ़ तथा सिलीगुडी में 10 क्षेत्रीय राजभाषा सम्मेलनों / हिन्दी तकनीकी संगोष्ठियों के सफल आयोजन का अनुभव

5.   28 नई नराकासों का गठन तथा लगभग 12000 तिमाही रिपोर्टों की समीक्षाएँ।

6.   भारत सरकार के कार्यालयों, उपक्रमों, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों आदि के लगभग 1800 कार्यालयों के राजभाषा संबंधी निरीक्षणों का अनुभव।

7.   हिंदीतर भाषी प्रदेशों में स्थित 4 क्षेत्रीय कार्यान्वयन कार्यालयों क्रमश: मुंबई, कोचिन कोलकाता एवं गाजियाबाद में कार्य करते हुए महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा, दादरा नगर हवेली, दमन दीव,केरल, तमिलनाडु, पांडिचेरी, लक्षद्वीप, पश्चिम बंगाल, उडीसा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड एवं अंडमान निकोबार द्वीप समूह में कार्यरत नगर राजभाषा कार्यान्वयन समितियों की लगभग 500 बैठकों में सहभागिता तथा उनके माध्यम से उपर्युक्त प्रदेशों में सरकार की राजभाषा नीति के प्रेरणा, प्रोत्साहन एवं सद्भावना से सफल कार्यान्वयन का अनुभव ।

8.   आई आई टी मद्रास, आई आई टी खड़गपुर जैसे तकनीकी संस्थानों में हिन्दी कार्यशालाओं के  आयोजन तथा संचालन का अनुभव ।

9.   हिंदी में काम करने संबंधी 12 बेसिक कंप्यूटर प्रशिक्षण कार्यक्रमों के आयोजन एवं संचालन का अनुभव।

10. विभिन्न नराकासों के सदस्य कार्यालयों के अधिकारियों के लिए हिंदी/ इंडिक यूनिकोड में कार्य करने संबंधी तकनीकी विषयों पर विशेष कंप्यूटर कार्यशालाओं के आयोजन एवं संचालन का अनुभव। 

11. नोडल अधिकारी के रूप में लीला पाठ्यक्रमों की ऑनलाइन परीक्षाओं के आयोजन एवं संचालन का अनुभव। 

12. राजभाषा विभाग द्वारा तैयार कराए गए लीला, मंत्र, श्रुतलेखन, ई महाशब्दकोश  आदि साफ़्ट्वेयर्स का प्रशिक्षण देने का अनुभव ।

13. हिंदी लीला पाठ्यक्रमों (सी डी एवं इंटरनेट वर्जन ) द्वारा देश भर में सर्वप्रथम हिंदी प्रशिक्षण संचालन का अनुभव

14. विभिन्न लिपि परिवर्तकों, फॉन्ट परिवर्तकों, इंडिक ट्रांसलिट्रेशन, क्विलपैड, गूगल ट्रांसलेट, गूगल लैंस, हिंदी वर्तनी शोधक  आदि हिन्दी टूल्स का प्रशिक्षण देने का अनुभव। निशुल्क हिंदी सिखाने के लिए www.hindiforyou.blogspot.com वेब पेज़ का संयुक्त रूप से निर्माण एवं सम्पादन, जिसे माननीय संसदीय राजभाषा समिति द्वारा भी सराहा गया है। 

15. माइक्रोसॉफ्ट विंडोज़ 95 से लेकर विंडोज़ 11 तक सभी संस्करणों के इंस्टायलेशन से लेकर उक्त सभी पर कार्य करने का अनुभव। डेस्कटॉप कंप्यूटर्स असेम्बल करने का अनुभव। 

16. तमिलनाडु प्रदेश में चेन्नै, तिरुच्चिरापल्ली, कलपाक्कम तथा अरक्कोणम में हिन्दी अध्यापन का अनुभव।

17.  केंद्रीय सचिवालय हिंदी परिषद के आजीवन प्रतिनिधि ।

18. ईमानदारी से कार्य करने के प्रयासों के परिणाम स्वरूप कतिपय "निकृष्ट लोगों" से "निंदित" तथा अशिष्ट की उपाधि प्राप्त करने का अनुभव।   


राजभाषा हिंदी तथा हिंदी भाषा के विकास, प्रचार-प्रसार के लिए किए गए अन्य प्रयास -

1.  आईआईटी की संयुक्त प्रवेश परीक्षा में अँग्रेजी माध्यम की अनिवार्यता समाप्त कराकर 13 भारतीय भाषाओं का विकल्प उपलब्ध करवाने के लिए सत्याग्रह किया।

2.   जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में एम एड की परीक्षा में हिंदी/ उर्दू माध्यम का विकल्प दिए जाने हेतु सत्याग्रह करने तथा हिंदी माध्यम से एम एड की उपाधि प्राप्त करने वाला पहला छात्र।

3.   एनसीईआरटी के डिप्लोमा इन एड्यूकेशनल एंड वोकेशनल गाइडेंस पाठ्यक्रम की प्रवेश परीक्षा में हिंदी माध्यम का विकल्प दिए जाने हेतु आंदोलन किया तथा हिंदी माध्यम से प्रवेश परीक्षा देकर योग्यता सूची में छठा स्थान प्राप्त किया। प्रवेश पाने के बाद डिप्लोमा इन एड्यूकेशनल एंड वोकेशनल गाइडेंस की सम्पूर्ण परीक्षा हिंदी में दिए जाने के लिए विकल्प उपलब्ध कराने हेतु सफल प्रयास, तदोपरांत हिंदी माध्यम से परीक्षा लिखकर विशेष योग्यता के साथ परीक्षा उत्तीर्ण करने वाला प्रथम छात्र।

4.   जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय से एडवांस्ड डिप्लोमा इन स्पेशल एड्यूकेशन की परीक्षा हिंदी माध्यम से उत्तीर्ण की।


  1. प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं यथा धर्मयुग, जनसत्ता, सबरंग, दैनिक हिंदुस्तान, अमर उजाला, राजस्थान पत्रिका, राष्ट्रीय सहारा आदि में 450 से अधिक लेख, साक्षात्कार, फ़िल्म समीक्षाएं आदि प्रकाशित
  2. एक मान्यता प्राप्त स्वतंत्र फिल्म समीक्षक के रूप में वर्ष 1993 से 2014 तक भारत के अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों, अंतरराष्ट्रीय वीडियो, डॉक्युमेंट्री फिल्म महोत्सवों की हिंदी में कवरेज़।
  3. इग्नू के “मार्गदर्शन में प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम” के लिए हिंदी में पाठ्य सामग्री लेखन का कार्य।
  4. कविता संग्रह “कोई हँसी बेचने आया था” प्रकाशन की प्रक्रिया में।
  5. लघु शोध प्रबंध “अ क्रिटिकल स्टडी लीडिंग टू डू एम. एड.”

 

                                                    

 

                                               

एक पुरानी ख़बर : दैनिक जागरण, नई दिल्ली, १३ फ़रवरी, २०१९

 



१२वें विश्व हिंदी सम्मेलन की सफलता के लिए कोटिशः शुभकामनाएँ।

 पौ बारह…

१२वें विश्व हिंदी सम्मेलन की सफलता के लिए कोटिशः शुभकामनाएँ।
विहिंस में आमंत्रित, आधिकारिक रूप से शामिल होने के लिए स्वीकृति प्राप्त तथा हिंदी की प्रगति के लिए व्यथित किंतु अनाधिकारिक रूप से शामिल होने योग्य न पाए गए, फ़ीजी पहुँचे सभी सरकारी- ग़ैर सरकारी प्रतिनिधियों, घोषित-स्वघोषित-अघोषित-पुरस्कृत हिंदी विशेषज्ञों एवं अन्य हिंदी की चाशनी से सराबोर हिंदी प्रेमियों से अति विनम्र प्रार्थना है कि फ़ीजी में जहाँ कहीं भी उन्हें अपना नाम किसी काग़ज़, पत्र-प्रपत्र आदि पर कलम से लिखने का सौभाग्य प्राप्त हो, वहाँ रोमन लिपि के बजाय देवनागरी का प्रयोग करने से न चूकें।
बताते हैं कि हिंदी फ़ीजी की सह राजभाषा है, अत: अभ्यासवत् गलती से यदि कोई कलम नाम के मामले में रोमन में फिसल जाए तो हाथ सँभालकर साथ-साथ देवनागरी में भी ज़रूर लिखें।
विहिंस के समापन के बाद इस बात का सर्वेक्षण भी कराया जाए कि होटल, अतिथि गृह, यात्री निवास आदि में, पंजीकरण प्रपत्र / आगंतुक रजिस्टर आदि में कितने प्रतिशत ने अपना नाम देवनागरी लिपि में हिंदी में लिखा और कितने रोमन लिपि तक ही रुक गए!
जो भी विहिंस में दिल्ली या हिंदी भाषी राज्यों से गए हैं, उनसे बीती बिसारते हुए आगामी एक वर्ष तक दरियादिली के साथ हिंदी में अपना काम करने या कम से कम नाम देवनागरी हिंदी में लिखने का शपथ पत्र भी ले लिया जाए, तो बल्ले बल्ले…
शपथ पत्र न सही, सिर्फ़ वादा ही करा लिया जाए!
कहीं से भटकता हुआ विदेश मंत्रालय, नई दिल्ली का एक पत्र जैसा कुछ मेल-शेल से किसी से मिला, जिसके साथ फ़ीजी विहिंस के संबंध में ‘यस और नो’ की लिस्ट (सूची) थी…पत्र शीर्ष पर ‘भारत सरकार’ नहीं था…वह पत्र, परिपत्र या कार्यालय ज्ञापन आदि जो भी था या है, हिंदी से बेदाग़ विशुद्ध अंग्रेज़ी में था, भेजने वाले के हस्ताक्षर रोमन जैसी लिपि में लग रहे थे/हैं…१२वें विहिंस संबंधी १२ फ़रवरी की तिथि अंकित यह दस्तावेज भारत सरकार के सभी सचिवों और वित्त सलाहकारों को भेजा गया…शायद हिंदी वर्जन विल फ़ॉलो भी फिसल गया…
…यद्यपि व्यक्तिगत रूप से मेरा तो यह मानना है कि राजभाषा नीति और हमारा संविधान केंद्रीय सरकार के कार्यालयों आदि से हिंदी में मूल दस्तावेज तैयार करने और अंग्रेज़ी अनुवाद तत्काल संभव न होने पर “अंग्रेज़ी पाठ या वर्जन बाद में भेजा जाएगा” अंकित करने की ही अनुमति देता है!
इस विहिंस में निम्नलिखित तीन प्रश्नों का उत्तर तलाशने का भी प्रयास अवश्य किया जाए कि -
१. जब राजभाषा अधिनियम-१९६३ (यथा संशोधित १९६७) संपूर्ण भारत ( जम्मू काश्मीर संबंधी धारा ६, ७ को छोड़कर) पर लागू है, सरकार को धारा ८ के तहत अधिनियम के प्रावधानों के मात्र क्रियान्वयन के लिए नियम बनाने के लिए ही शक्तियाँ प्राप्त हैं, तो तमिलनाडु में राष्ट्रपति शासन के रहते हुए १७ जुलाई, १९७६ को पारित राजभाषा नियमों का “विस्तार” तमिलनाडु राज्य पर क्यों नहीं है?
२. राजभाषा नियमों का विस्तार तमिलनाडु राज्य पर न होने की स्थिति में नियम-२ (ख) में परिभाषित केंद्रीय सरकार के कार्यालय, केन्द्रीय सरकार के कर्मचारी, हिंदी का कार्य साधक ज्ञान/ प्रवीणता आदि की तमिलनाडु में स्थित केंद्रीय सरकार के कार्यालय/ कर्मचारी आदि की राजभाषा नीति के संदर्भ में परिभाषाएँ क्या हैं?
३. राजभाषा अधिनियम १९६३ की धारा -९ (section-9) में संशोधन क्यों विलंबित है?
एक बार फिर से विहिंस की सफलता के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ।
जयहिंद,
जय भारत,
जय हिंदी,
जय समस्त भारतीय भाषाएँ।
-अजय मलिक “निंदित”

12 वें विश्व हिंदी सम्मेलन 2023 का कार्यक्रम

 





(विश्व हिंदी सम्मेलन की साइट से साभार)

कौन कहता है कि भारतीय भाषाओं में काम नहीं हो सकता! जरा दिल से, अंग्रेजी की दासता तो निकालो यारो । -अजय मलिक ‘निंदित’

 

कौन कहता है कि भारतीय भाषाओं में काम नहीं हो सकता !

जरा दिल सेअंग्रेजी की दासता तो निकालो यारो ।

-अजय मलिक ‘निंदित’

जहाँ चाह, वहाँ राह। 


    अगर सच्ची चाहत हो, तो ऐसा क्या है, जो नहीं हो सकता

 

हिंदी के मामले में यह चाहत हिंदी को आहत करने तक सीमित होकर रह जाती है। जो चल रहा है, वह सब पहले भी लंबे समय से चलता रहा है और आगे भी निर्विकार रूप से चलता रहेगा।

 

हमारी भारतीय व्यवस्था में जो भी आगे की सोचता है उसे सामूहिक और लोकतंत्रीय प्रयासों से पीछे धकेल दिया जाता है ताकि वह भीड़ में दब-कुचल कर धूल धूसरित हो जाए और लोकतंत्रीय भीड़ के हुल्लड़ का वर्चस्व स्थायित्व पा जाए। 

 

एक सरकारी संस्था ने सरकार के लिए सरकारी धन से वर्ष 1993-94 के आसपास कंप्यूटर के माध्यम से राजभाषा हिंदी सिखाने के प्रबोध, प्रवीण, प्राज्ञ नामक सरकारी पाठ्यक्रमों के लिए लीला सॉफ्टवेयर्स विकसित करने की प्रक्रिया शुरू की। डॉस का जमाना था। बाजार में आते-आते वर्ष 2000  गया। इन सॉफ्टवेयर्स का मूल्य निर्धारित किया गया लगभग 27 हजार रुपये। हिंदी के प्रचार-प्रसार के दायित्व को ध्यान में रखते हुए सुझाव दिया गया था कि इन सॉफ्टवेयर्स को निशुल्क वितरित करने पर विचार किया जाए या फिर खाली सीडी के मूल्य से डेढ़ या दोगुना यानी दस-बीस या तीस रुपये रखा जाए। सरकारी व्यवस्था में सुझावों पर विचार करने में विलंब होना जगजाहिर है, परंतु समय की अबाध गति किसी के रोके नहीं रुकती। सभी ब्यूरोक्रेट्स तक भी लाख कोशिश के बावजूद साठ साल के होने से नहीं बच पाते।

 

लीला सॉफ्टवेयर्स की बिक्री अधिकांशत: सरकारी सस्थानों तक सीमित रही और लागत के अनुरूप नगण्य रही। मूलत: ये सॉफ्टवेयर्स माइक्रोसॉफ्ट विंडोज 98, 98(ii) संस्करणों के लिए निर्मित किए गए थे और एक डोंगल को प्रिंटर पोर्ट में लगाने पर ही काम करते थे, लेकिन तब तक विंडोज 2000 और एक्सपी भी आ चुके थे। विंडोज एम ई (मिलेनियम) अपनी असफलता के कारण अपनी पहचान तक नहीं बना पाया।  अधिकांश कार्यालयों में लोग लीला सॉफ्टवेयर्स को विंडोज एक्सपी पर इंस्टाल करने की कोशिश करते और असफल हो जाते। 

 

वर्ष 2009 में हमने ‘हिंदी सबके लिए’ ब्लॉग की शुरुआत कर यह समझाने की कोशिश की कि हिंदी वर्णमाला से लेकर हिंदी के विभिन्न स्तरों के ज्ञान के लिए हिंदी सिखाने वाले अनेक निशुल्क इंटरेक्टिव कार्यक्रम/ ट्यूटर नेट पर उपलब्ध हैं। लीला सॉफ्टवेयर्स से डोंगल की समाप्ति हुई और निशुल्क होते-होते वर्ष 2011 आ गया। मोबाइल फोन ने स्मार्टफोन का रूप धारण कर ब्लेकहोल की तरह अनेक इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को लील लिया। वर्ष 2018-19 के दौरान तत्कालीन राजभाषा सचिव श्री प्रभास कुमार झा के कार्यकाल में मोबाइल एप के रूप में ‘लीला राजभाषा’ सॉफ्टवेयर्स एंड्रॉइड एवं आइओएस के लिए निशुल्क उपलब्ध हो पाए। यानी लगभग 24 वर्ष का सफर पूरा करने के बाद व्यवस्था ने हिंदी सीखने-सीखने के लिए ये एप आम जनता को उपलब्ध कराए। यदि यह प्रक्रिया लीला के जन्म के समय ही अपना ली गई होती तो अंग्रेजी को फलने-फूलने में कुछ तो कठिनाई अवश्य होती और हिंदी के प्रचार-प्रसार में व्यय कम होता।

     

इसी सरकारी संस्था ने हिंदी अनुवाद का एक उपकरण/ यंत्र तैयार किया और नाम दिया – ‘मंत्र राजभाषा। यह मंत्र नामक यंत्र निशुल्क था। वर्ष 2004-05 के आसपास अपने शुरुआती दौर में इस निशुल्क यंत्र को स्थापित करने के लिए जिस एमएसक्यूएल सर्वर की बाध्यता रूपी आवश्यकता थी, उसकी कीमत थी करीब 70 हजार ! निशुल्क मंत्र पर सवार होने की सीढ़ी का मूल्य आम जन के बजट से बाहर होने के कारणवर्ष 2008 आते-आते मंत्र फेल हो गया और गूगल अनुवाद ने उसकी सल्तनत पर कब्जा कर अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया।

 

उसी सरकारी संस्था ने वर्ष 2006 के आसपास “श्रुतलेखन राजभाषा” का उपहार सरकार को सरकारी धन के एवज में दिया। मंत्र की तरह यह उपहार निशुल्क नहीं था, बल्कि कीमत रखी गई करीब 6-7 हजार। इस कीमत की वजह थी आईबीएम के एक सॉफ्टवेयर ‘स्पीच टू टेक्स्ट’ के इंजन का प्रयोगजिसकी रायल्टी के रूप में यह कीमत अदा की जाती थी। विंडोज एक्स पी का जमाना था। श्रुतलेखन के लिए एक विशेष प्रकार का माइक का भी संधान किया गया था। बिना उस विशेष माइक के श्रुतलेखन सुनता कुछ और था एवं समझता कुछ और था। विंडोज एक्सपी के सर्विस पैक आने के साथ-साथ माइक्रोसॉफ्ट का नया ओपेरेटिंग सिस्टम आया ‘विंडोज विस्ता’ और फिर विंडोज-7 आते-आते श्रुतलेखन के कान खराब होने शुरू हो गए। गूगल वॉयस टाइपिंग, गूगल डॉक्स ने श्रुतलेखन को बहरा बना दिया।

 

राजभाषा विभाग के कार्यक्रमों में अक्टूबर-नवंबर 2015 में गूगल वाइस टाइपिंग का पहला प्रदर्शन करने का अवसर मुझे मिला भारतीय रिजर्व बैंक की अध्यक्षता में बैंक नराकास, पटना द्वारा आयोजित संयुक्त नराकास बैठक के दौरान तत्कालीन सचिव राजभाषा श्री गिरीश शंकर की उपस्थिति में। इसके बाद राजभाषा विभाग ने वर्ष 2015 से अब तक अपनेतकनीकी सम्मेलनों में अगर किसी चीज को सर्वाधिक महत्व दिया तो वह है गूगल वाइस टाइपिंग। यह वॉयस टाइपिंग एंड्रॉयड मोबाइल और कंप्यूटर दोनों पर संभव हुई। 

धीरे-धीरे गूगल वाइस टाइपिंग के समानांतर आईफोन की वाइस टाइपिंग, माइक्रोसॉफ्ट की विंडोज 10+ एमएस ऑफिस 365 की डिक्टेशन तथा विंडोज-11 की किसी भी उपकरण में हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं में बोलकर टाइप करने की सुविधाएं उपलब्ध होती चली गईं।

 

लीप ऑफिस भारतीय भाषाओं में काम करने के लिए नॉन यूनिकोड के जमाने में बेहतरीन ऑफिस सूट था। इसके लिए एमएस ऑफिस की अलग से आवश्यकता नहीं होती थी। फरवरी-मार्च, 2000 में माइक्रोसॉफ्ट विंडोज-2000 आने पर जमाना बदल चुका था। हार्डवेयर और प्रोसेसिंग की सीमाएं 8 बिट से बहुत आगे 32 बिट तक पहुँच चुकी थीं। युनिकोड का आगाज हो चुका था, लेकिन यह नॉन युनिकोड प्लेटफ़ॉर्म पर भारतीय भाषाओं के द्विभाषी/बहुभाषी सॉफ्टवेयर निर्माताओं के व्यापार को बहुत बड़ा धक्का लगाने वाला था। शायद यही वजह थी कि एक सामान्य पीसी उपभोक्ता/प्रयोक्ता तक यह जानकारी ही सही से नहीं पहुंचाई गई थी कि यूनिकोड प्लेटफॉर्म पर बने ऑपरेटिंग सिस्टम आने के बाद हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओं में टाइपिंग के लिए लीप ऑफिस, अक्षर फॉर विंडोज,अंकुरआकृति, श्री शक्ति, आई एस एमए पी एस 2000+ आदि किसी भी सॉफ्टवेयर की आवश्यकता समाप्त हो चुकी है। 

 

पेज मेकर पर नॉन यूनिकोड प्लेटफॉर्म पर बने ऑपरेटिंग सिस्टम्स (ओएस) पर कृतिदेव आदि फ़ॉन्ट्स में टाइपिंग करने वाले विशाल समूह को आज भी युनिकोड प्लेटफ़ॉर्म पर बने ओएस पर बिना नॉन यूनिकोड फ़ॉन्ट्स में टाइप करने से इतर कुछ और सोचने की आवश्यकता महसूस नहीं होती। अपने देश में यूनिकोड की चर्चा सही ढंग से वर्ष 2008 से पहले शुरू ही नहीं हो पाई थी, हालांकि तब तक विंडोज विस्ता और विंडोज 7 पर चर्चा शुरू हो चुकी थी। कुल मिलाकर कंप्यूटर आपूर्ति कर्ता/विक्रेता को कोई भारतीय भाषाओं के संबंध में यूनिकोड फॉन्ट्स की जरूरत का एहसास ही नहीं कराता था यानी केवल अंग्रेजी में मूल रूप से कार्य करने वाले कंप्यूटर्स की ही खरीद-बिक्री होती थी। 

 

मेरा स्पष्ट रूप से यह मानना है कि यदि बिल गेट्स ने विंडोज विस्ता और उसके बाद के माइक्रोसॉफ्ट विंडोज/ सर्वर ओएस में स्वत: (बाय डिफ़ॉल्ट) भारतीय भाषाओं अर्थात इंडिक लेंग्युवेज के फ़ोल्डर इंस्टालेशन की सुविधा न दी होती और स्वत: इंस्टालेशन के समय पूर्ववत अगर केवल अंग्रेजी भाषा का ही चयन हो पातातो शायद आज भी भारतीय कंप्यूटर प्रयोक्ता नॉन यूनिकोड द्विभाषी सॉफ्टवेयर निर्माताओं की तलाश कभी न छोड़ता ! 

 

कुल मिलाकर सरकारी स्तर पर भारतीय भाषाओं के प्रति उपेक्षा की बजाय अपेक्षा की मानसिकता विकसित की गई होती तो आज गूगल वाइस टाइपिंग के स्थान पर ‘भारत वाइस टाइपिंग’: गूगल ट्रांसलेट के स्थान पर “भारत भाषा अनुवाद एप” निशुल्क सारी दुनिया में उपलब्ध होते। आज भी कोई सही गुणवत्ता वाली  ओ सी आर (ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकॉग्नीशन) भारतीय भाषाओं के लिए बाजार में नहीं है, जबकि गूगल लेंस के माध्यम से अद्वितीय ऑप्टिकल करेक्टर रिकॉग्नीशन की सुविधा सभी भारतीय भाषाओं के लिए भी निशुल्क गूगल पर उपलब्ध है।

 

सरकारी तौर पर करीब चार वर्षों से कंठस्थ नामक स्मृति आधारित अनुवाद की सुविधा विकसित करने के प्रयास चल रहे हैं। कंठस्थ की स्मृति में द्विभाषी/ बहुभाषी सामग्री को भरने का काम चल रहा है। यह एक अच्छा प्रयास है, लेकिन यह ठीक वैसा ही है जैसा राजभाषा मंत्र अथवा श्रुतलेखन अथवा लीला प्रबोध प्रवीण, प्राज्ञ के रूप में दशकों पहले हुआ था। चार-पाँच साल में कंप्यूटर और सूचना प्रोद्योगिकी की दुनिया पूरी तरह बदल जाती है। उदाहरण के लिए आज आई 3, 5, 7,9 प्रोसेसर की 12वीं पीढ़ी बाजार में आ चुकी है। इन प्रोसेसर्स की 8वीं पीढ़ी से पूर्व के प्रोसेसर्स पर विंडोज 11 की स्थापना सहज रूप में संभव नहीं है यानी 4-5 साल पुराने प्रोसेसर्स विंडोज11 के लिए कॉम्पिटेबल नहीं है। दूसरी ओर पिछले पाँच साल से सरकारी तौर पर कंठस्थ विकसित करने के प्रयास चल रहे हैं। कंठस्थ के लिए होना ये चाहिए था कि जो भी भारत सरकार एवं राज्य सरकारों के राजपत्रों की द्विभाषी या बहुभाषी सामग्री उपलब्ध थी उसे अधिकतम 6 माह में सम्पादन योग्य स्वरूप अर्थात वर्ड स्वरूप में अपलोड कर दिया जाना चाहिए था। ऐसा करने से विशाल डाटा बेस बन चुका होता। 

 

परंतु मैं इससे भिन्न सोचना चाहता हूँ। मेरा यह मानना है कि कंप्यूटर निर्माता और ऑपरेटिंग सिस्टम/अन्य सॉफ्टवेयर एप आदि बनाने वाली माइक्रोसॉफ्ट, इंटेल, अजूज, गूगल, एप्पल आदि कम्पनियों के लिए भारत एक इतना बड़ा बाजार है कि सरकारी बाध्यता होने पर वे कोई भी सुविधा इनबिल्ट उपलब्ध कराने को सहर्ष तैयार हो जाएंगे। भारत में कंप्यूटर ऐसे हों जिनमें किसी भी भारतीय भाषा में तैयार होने वाला दस्तावेज़ स्वत: दूसरी किसी भी भाषा में एक क्लिक के साथ उपलब्ध हो जाए। अलग से अनुवाद का झंझट क्यों हो? हिंदी में तैयार किया जा रहा दस्तावेज भारत में निर्मित या विक्रय किया गया कोई भी कंप्यूटर स्वत: अंग्रेजी सहित अन्य भारतीय भाषाओं में भी तैयार करता चला जाए। मेरी यह बात आज अटपटी सी लग सकती है, लेकिन मेरा दावा है कि कंठस्थ का कुछ हो या न हो, लेकिन अगले 5 से 10 साल में संसार के सभी कंप्यूटर्स में संसार की किसी भी भाषा से अन्य किसी भी भाषा में स्वत: दस्तावेज़ तैयार होते चले जाने की सुविधा उपलब्ध हो जाएगी। यह ठीक उसी तरह होगा, जैसे मंत्र राजभाषा के स्थान पर गूगल अनुवाद, बिंग अनुवाद, एम एस ऑफिस अनुवाद उपलब्ध हैं; श्रुतलेखन के स्थान पर हर तरह की वाइस टाइपिंग उपलब्ध है। 

 

सरकारी तौर पर हिंदी के प्रगामी प्रयोग की मॉनिटिरिंग के लिए तिमाही रिपोर्ट आदि में आँकड़े मांगे जाते हैं, इन आधारहीन आंकड़ों की प्रामाणिकता के लिए लंबी-चौड़ी प्रक्रिया अपनाई जाती है। क्या इसके लिए कोई अन्य उपाय नहीं हो सकता? आधार के जरिए भारत के 140 करोड़ लोगों का यदि सम्पूर्ण विवरण संकलित किया जा सकता है; कोर बैंकिंग के जरिए किसी भी बैंक, किसी भी बैंक के ए टी एम से पैसे निकाले जा सकते हैं; पेटिएम, ऑनलाइन बैंकिंग, ऑन लाइन किसी भी तरह की खरीददारी की जा सकती है; ऑन लाइन बिलों का भुगतान किया जा सकता है; बायो मैट्रिक मशीनों से कहीं से भी हाजरी लगाई जा सकती है।यानी जब सब कुछ ऑनलाइन किया जा सकता हैतो फिर सभी सरकारी/ केन्द्रीय कार्यालयों को नेट/सर्वर आदि से जोड़कर स्वत: हिंदी अंग्रेजी में हो रहे कामकाज का विवरण क्यों प्राप्त नहीं किया जा सकता? सभी कंप्यूटर से स्वत: भाषायी आधार पर हुए कार्य का विवरण क्यों किसी केन्द्रीकृत सर्वर में जमा नहीं हो सकता? सूचना प्रोद्योगिकी के लिए यह बेहद सरल सी बात होगी। कंप्यूटर में जैसे हम काम करने के लिए भाषा का चयन करते हैं, वैसे ही कंप्यूटर आसानी से यह बताने में सक्षम हो सकता है कि किस कार्यालय के किस कंप्यूटर से कितने शब्द/ अक्षर हिंदी में टंकित किए गए, किस कार्मिक ने कितने समयकिस कंप्यूटर परकिस भाषा में काम किया।

 

मगर प्रश्न फिर वही है कि चाहत अर्थात इसके लिए इच्छा भी तो होनी चाहिए। मन में अपनी भाषाओं के प्रति ईमानदारी भी तो होनी चाहिए !क्या माँ को माँ कहकर पुकारने के लिए किसी पुरस्कार या वित्तीय लाभ की शर्त रखे जाने की आवश्यकता होनी चाहिए? जहाँ चाह, वहाँ राह। बस एक ईमानदार इच्छा शक्ति काफी है। कंप्यूटर सब कुछ कर सकता है, लेकिन इच्छा शक्ति सृजित नहीं कर सकता.. 

 

हमें टाइम पास करने की प्रवृत्ति को त्यागकर समय का सदुपयोग करने की मानसिकता विकसित करनी होगी। बस इतने भर से भारत सारे संसार पर छा जाने में सक्षम हो सकता है। 

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अजय मलिक Ajai Malik 

9 दुर्गा अपार्टमेंट्स, 1 गांधी स्ट्रीट 

कानगम, तारामनी, चेन्नै -600113 

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