Mar 9, 2025

असंभव को संभव, बनाकर तो देख !

असंभव को संभव, बनाकर तो देख !

एक बार फिर से, बुलाकर तो देख !

तिरी झुर्रियों से, ख़फ़ा है चाँद भी

तू दिल को दर्पण, दिखाकर तो देख !

कई बरस बीते, याद करते तुझे

यादों से पर्दा, हटाकर तो देख !

सरेआम मुझको, कत्ल करने वाले,

अब नयी दुनियाँ, बसाकर तो देख !

बरसों बरस तक, आज़माया मुझे,

खुद को भी अब, अज़माकर तो देख !

मिरा क्या, मैं तो, गुज़र ही जाऊँगा,

तू कील काँटे, बिछाकर तो देख !

अदब को मेरे, खूब घायल किया,

मुस्कान मिरी तू, मिटाकर तो देख !

-अजय मलिक (c)

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