असंभव को संभव, बनाकर तो देख !
एक बार फिर से, बुलाकर तो देख !
तिरी झुर्रियों से, ख़फ़ा है चाँद भी
तू दिल को दर्पण, दिखाकर तो देख !
कई बरस बीते, याद करते तुझे
यादों से पर्दा, हटाकर तो देख !
सरेआम मुझको, कत्ल करने वाले,
अब नयी दुनियाँ, बसाकर तो देख !
बरसों बरस तक, आज़माया मुझे,
खुद को भी अब, अज़माकर तो देख !
मिरा क्या, मैं तो, गुज़र ही जाऊँगा,
तू कील काँटे, बिछाकर तो देख !
अदब को मेरे, खूब घायल किया,
मुस्कान मिरी तू, मिटाकर तो देख !
-अजय मलिक (c)
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