संभवतः 19 अगस्त 1989 की बात है। मैं मद्रास से स्थानांतरित होकर कवरत्ती जा रहा था। मेरी यात्रा मद्रास से 16 अगस्त को शुरू हुई थी और 17 अगस्त को कोचीन पहुँचा था। कोचीन से कवरत्ती जाने के लिए वायुदूत की उड़ान संभवत: 19 अगस्त को थी, इसलिए दो दिन मुझे कोचीन में रुकना पड़ा था। मेरे साथ करीब 80 किलो वजनी किताबों का जखीरा था। हवाई जहाज की वह पहली यात्रा थी और रोमांच की कोई सीमा नहीं थी। हिंदी आंदोलन से खादी का भगवा कुर्ता और सफेद पायजामा मेरी वेशभूषा का अभिन्न अंग था। पैरों में हवाई चप्पलें हुआ करती थीं।
अगत्ती
हवाई पट्टी पर विमान उतरा तो खुद को नारियल के पेड़ों से घिरे टापू में पाया। वहाँ
से कवरत्ती पवन हंस के हेलिकॉप्टर से जाना था। हेलिकॉप्टर की पहली यात्रा का रोमांच
भी कुछ काम नहीं था। वहाँ हेलिकॉप्टर का 80 रुपए का टिकट खरीदते हुए पूछताछ से पता
चला कि केवल 10 किलो सामान ही एक यात्री हेलिकॉप्टर में ले जा सकता है।
हेलीपैड
के पास मैं कुछ परेशान सा खड़ा था। तभी
एक बेहद गोरे चिट्टे स्मार्ट युवा सज्जन मेरे पास आए और नाम-गाम पूछने के बाद
परेशानी का सबब पूछने लगे। मैंने 80 किलो की किताबों की गठरी की लाचारी बताई।
उन्होंने कहा – “अजय, आप आइए, गठरी की चिंता छोड़ दीजिए। आज नहीं तो कल पहुँच
जाएगी”।
मैं
उनके साथ हेलिकॉप्टर में जाकर बैठ गया। करीब 15-20 मिनट में हम लोग कवरत्ती
हेलीपैड पर उतरे। गोरे-चिट्टे-स्मार्ट युवा से मैंने उनका कोई परिचय अभी तक भी प्राप्त
नहीं किया था। वे बोले - आओ। मैं उनके साथ चल दिया। बाहर एक जीप खड़ी थी। वे उसमें
बैठते हुए फिर से बोले-आओ। मैं उनके साथ बैठ गया।
80
किलो की गठरी अपने आप जीप में आ गई। जीप 5-7 मिनट बाद एक मकान के सामने जाकर रुकी,
जिस पर सर्किट हाउस लिखा था। उन्होंने केयरटेकर को आवाज दी और कहा कि मेरे ठहरने
की व्यवस्था करे। मेरा सामान जीप से निकालकर स्वत: कमरे में पहुँच चुका था।
उन्होंने कहा- सोमवार को सचिवालय में मिलते हैं। मैं प्रश्नवाचक नजरों से उन्हें
देख रहा था, तभी उन्होंने बताया- “मैं के. के. शर्मा हूँ, यहाँ का सीडीसी यानी
कलेक्टर-काम-डेवलपमेंट कमिश्नर”। लक्षद्वीप के प्रशासक के बाद सबसे वरिष्ठ
अधिकारी-श्री के के शर्मा जी, आईएएस ।
सोमवार
को मैं उनसे मिला तो बोले – “किसी बात की चिंता मत कीजिएगा। अगर कोई परेशानी हो तो
तुरंत मेरे पास चले आना”। उसके बाद उन्होंने मुझे बताया कि सिंगल ऑफिसर्स बिल्डिंग
में 4 नंबर क्वाटर मेरे लिए आबंटित करा दिया है।
श्री
के के शर्मा जी के रहते हुए उनके अनुमोदन से मैंने कवरत्ती में धर्मयुग, दैनिक
हिंदुस्तान जैसी कई हिंदी पत्रिकाएं और समाचार पत्र मंगवाने शुरू कराए। कई साल बाद
उनसे दिल्ली विकास प्राधिकरण में मुलाकात हुई, तब वे डीडीए के उपाध्यक्ष थे। मेरे
परम मित्र शिवदत्त शर्मा जी से मैंने उनका परिचय कराया।
कल
मुझे शिवदत्त शर्मा जी से पता चला कि दिल्ली के भूतपूर्व मुख्य सचिव, श्री के के
शर्मा जी अब जम्मू कश्मीर के चुनाव आयुक्त हैं। शिवदत्त जी से मैंने उनका नंबर
लिया और प्रणाम करते हुए एक संदेश भेजा.. मगर, 33 साल पुरानी कहानी उन्हें याद नहीं आई।
पर मेरे लिए वे पल आज भी अद्भुत और अविश्वसनीय हैं।
-अजय मलिक
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