कल पुन:हुआ
एक महाभोज,
रानी ने परसे
सहस्र भोज ।
कर दिया दान
सारा समान ।
राजा ने सौंपे
सारे अस्त्र शस्त्र ,
सबको बाँटे
सब निजी वस्त्र ।
कुछ पल काँपे
पुलकित होकर,
महके उजाड़
उपवन होकर ।
आँसू का भी
अभिमान बहा,
दृग खुले भिचीं
पलकें भारी..
रानी की हँसी
मन मान गया,
राजा की साँसें
जग जान गया,
दिल हार गया
सब कुछ देकर।
फिर डोल गयी
वसुधा महान..
सबने पाया
जो जी चाहा ।
जीवन का यह
अद्भुत महाभोज,
रानी ने परसे
सहस्र भोज ।
-अजय मलिक
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