एक बात...
दो बात,
तीन बात...
बहुत सारी बातें हैं
कहने, सुनने के लिए।
मगर अजीब गफ़लत है-
कहने वाले की
कोई सुनता नहीं ।
सुनने वाले से
कोई कहता नहीं ।
सारा शहर सुनसान सा शान्त है।
फिर भी हर ओर घोर अशान्ति है...
अराजकता के खुले मुँह में
रसगुल्ला नीरस होकर
बेबस पड़ा है,
निठल्लापन
बक-बक करता
मस्त खड़ा है...
बेचारा आदमी
ज़हरीली हवा से
धुले आसमान में
कुछ ढूँढ रहा है ।
-अजय
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