हिन्दी का कार्यसाधक ज्ञान से अभिप्राय:-
सामान्य परिभाषा
शाब्दिक विश्लेषण के स्तर पर हिंदी के कार्यसाधक ज्ञान से यही अभिप्राय हो सकता है कि संबधित कर्मचारी जिस पद पर कार्यरत है उस पद के कर्तव्यों के निर्वहन यानी कार्यालयीन कामकाज करने के लिए जितने न्यूनतम हिंदी ज्ञान की अपेक्षा की जा सकती है, उतनी हिंदी वह जानता है।
मौजूदा वैधानिक परिभाषा
मौजूदा वैधानिक परिभाषा
(राजभाषा नियम 1976 के नियम 10 की परिभाषा के अनुसार)
(1) (क) यदि किसी कर्मचारी ने-
(i) मैट्रिक परीक्षा या उसकी समतुल्य या उससे उच्चतर परीक्षा हिन्दी एक विषय के साथ उत्तीर्ण कर ली है; या
(ii) केन्द्रीय सरकार की हिन्दी शिक्षण योजना के अन्तर्गत आयोजित प्राज्ञ परीक्षा या यदि उसने सरकार द्वारा किसी विशिष्ट प्रवर्ग के पदों के सम्बन्ध में उस योजना के अन्तर्गत कोई निम्नतर परीक्षा विनिर्दिष्ट है, वह परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है; या
(iii) केन्द्रीय सरकार द्वारा उस निमित्त विनिर्दिष्ट कोई अन्य परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है; या
(ख) यदि वह इन नियमों से उपाबद्ध प्ररूप में यह घोषणा करता है कि उसने ऐसा ज्ञान प्राप्त कर लिया है; तो उसके बारे में यह समझा जाएगा कि उसने हिन्दी का कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त कर लिया है।
(नियमों से उपाबद्ध प्ररूप के घोषणा पत्र की भाषा निम्नवत है-
"मैं ...............एतद द्वारा घोषणा करता हूँ कि मैंने निम्नलिखित के आधार पर हिंदी का कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त कर लिया है-")
स्वाभाविक प्रश्न-
1. नियम 10 (1)क (i) में मैट्रिक हिन्दी एक विषय के साथ उत्तीर्ण कर लेने से क्या अभिप्रेत है?
2. घोषणा पत्र के 'निम्नलिखित के आधार' पर वाक्यांश से क्या अभिप्राय है?
हम एक परिकल्पना (हाइपोथीसिस) के आधार पर आगे बढ़ते हैं-
यह कि हिन्दी भाषी प्रदेशों याकि उन राज्यों में जिनकी राजभाषा हिन्दी है कक्षा एक से मैट्रिक याकि दसवीं कक्षा तक सभी सरकारी एवं निजी विद्यालयों में हिन्दी एक मुख्य विषय के रूप में अनिवार्यत: पढ़ाई जाती है। इसी के साथ तमिलनाडु एवं पश्चिम बंगाल को छोडकर अन्य सभी हिंदीतर भाषी राज्यों में हिन्दी का अध्ययन कक्षा दस तक तीसरी अथवा अन्य भाषा के रूप में अनिवार्य है।
हम एक दूसरी परिकल्पना करते हैं-
यह कि राजभाषा नियम 1976 में हिन्दी के कार्यसाधक ज्ञान से अभिप्राय यह है कि ऐसा ज्ञान रखने वाला कर्मचारी कार्यालय का, अपने स्तर का, रोज़मर्रा का यानी नेमी कार्य हिन्दी भाषा में कर सकने में सक्षम है।
पहली परिकल्पना पर विचार करते हैं। केंद्रीय विद्यालय तथा केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) राजभाषा नियम 2(ख) के अनुसार केंद्रीय सरकार के कार्यालय हैं। इनका पाठ्यक्रम केंद्रीय सरकार की नीतियों के अनुसार तैयार किया गया है तथा इनमें राजभाषा संकल्प 1968 के अनुरूप त्रिभाषा सूत्र लागू है। क्या त्रिभाषा सूत्र से अभिप्राय है कि सीबीएसई द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रमों के अनुसार पढ़ाई कराने वाले स्कूलों में दसवीं कक्षा तक तीन भाषाएँ अनिवार्यत: पढ़ाई जाती हैं? क्या इन तीन भाषाओं में हिन्दी का अध्ययन करना भी अनिवार्य है?
अब हम सीबीएसई तथा केंद्रीय विद्यालयों का पाठ्यक्रम देखते हैं। कक्षा 1 से कक्षा 5 तक अँग्रेज़ी और हिंदी दो भाषाओं तथा कक्षा 6 से 8 तक अँग्रेजी, हिन्दी तथा संस्कृत तीन भाषाओं का अध्ययन अनिवार्य है। कक्षा 9 एवं 10 के पाठ्यक्रम में अँग्रेजी भाषा का अध्ययन अनिवार्य है किन्तु हिन्दी अथवा संस्कृत में से कोई एक भाषा चुने जाने का विकल्प है। निष्कर्ष यह निकलता है कि केंद्रीय विद्यालयों तथा सीबीएसई से मान्यता प्राप्त स्कूलों में तीन भाषाओं की नहीं बल्कि दो भाषाओं का अध्ययन कक्षा नौ एवं दस में अनिवार्य है। कक्षा एक से कक्षा 10 तक अँग्रेजी का अध्ययन अनिवार्य है किन्तु हिन्दी का अध्ययन मात्र कक्षा 8 तक अनिवार्य है। स्पष्ट है कि हमारी शोध परिकल्पना इन विद्यालयों तथा सीबीएसई के संदर्भ में सही नहीं है अर्थात (1) सीबीएसई में त्रिभाषा सूत्र प्राथमिक एवं हाई स्कूल स्तर पर नहीं है। (2) सीबीएससई में दो भाषाओं का अध्ययन कक्षा 10 तक अनिवार्य है मगर कक्षा 9 एवं 10 में हिन्दी का अध्ययन अनिवार्य नहीं है।
राजभाषा नियमों के परिप्रेक्ष्य में हमारा शोध निष्कर्ष यह है कि केंद्रीय विद्यालयों अथवा सीबीएसई बोर्ड से 10 वीं कक्षा उत्तीर्ण करने वाले के बारे में अनिवार्यत: यह नहीं कहा जा सकता है कि उसे नियम 10 (1)क (i) के अनुरूप हिन्दी का कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त है।
अब विभिन्न राज्यों की स्थिति का अध्ययन करते हैं।
हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली में हिन्दी प्रथम भाषा के रूप में अनिवार्यत: 10वीं कक्षा तक पढ़ाई जाती है। चंडीगढ़ अंडमान निकोबार द्वीप समूह, उड़ीसा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गोवा में हिन्दी प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय भाषा के रूप में पढ़ाई जाती है
प्रथम भाषा वह है जिसकी पढ़ाई कक्षा 1 से कराई जाती है। दूसरी भाषा वह है जिसकी पढ़ाई कक्षा 5 अथवा 6 से कराई जाती है तथा तीसरी भाषा वह है जिसकी पढ़ाई कक्षा 9 से 10 तक कराई जाती है।
त्रिभाषा सूत्र को अखिल भारतीय माध्यमिक शिक्षा परिषद की सिफ़ारिशों के आधार पर सितंबर 1956 में स्वीकार किया गया था तथा 1961 में मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में भी त्रिभाषा सूत्र पर सहमति बनी थी। बाद में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 में इस सूत्र के गंभीरता से कार्यान्वयन की सिफ़ारिश की गई। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में भी इसके कार्यान्वयन पर बल दिया गया था।
हमारी परिकल्पना के निष्कर्ष के अनुसार कक्षा 1 से 5 तक, कक्षा 1 से 8 तक तथा कक्षा 1 से 10 तक जिन्होंने हिन्दी पढ़ी है उन्हें क्रमश: प्रबोध, प्रवीण एवं प्राज्ञ के प्रशिक्षण से छूट दी जानी चाहिए। स्पष्ट है कि यह कहना सही नहीं होगा कि दूसरी तथा तीसरी भाषा के रूप में मैट्रिक में हिंदी का अध्ययन करने वाले का स्तर प्रथम भाषा के रूप में मैट्रिक में हिंदी पढ़ने वाले के सामान है।
वर्ष 1952 से राजभाषा नियम 1976 के प्रभावी होने तक क्या केंद्रीय सरकार के कर्मचारियों के लिए हिंदी के सेवाकालीन प्रशिक्षण के लिए निर्धारित मानदंड कर्मचारी की मातृभाषा एवं कक्षा एक से कक्षा दस तक किस स्तर पर हिंदी का अध्ययन किया गया है, इससे संबंधित नहीं थे?
मैट्रिक अथवा 10 वीं कक्षा हिन्दी एक विषय के साथ उत्तीर्ण करने से अभिप्राय संभवत: यह होना चाहिए कि संबंधित कर्मचारी ने कक्षा 1 से 10 तक हिंदी पढ़ी है तथा 10 वीं कक्षा का हिन्दी का स्तर सीबीएससी के 10 वीं कक्षा के पाठ्यक्रम से कम नहीं था।
केंद्रीय सरकार के पदों पर भर्ती करने वाली एजेंसीज यूपीएससी, एसएससी आदि द्वारा भर्ती के समय इस उद्देश्य से हिन्दी की परीक्षा ली जा सकती है कि उम्मीदवार का हिन्दी का स्तर क्या है ? यह प्रश्न-पत्र तीन खंडों वाला हो सकता है जिसका प्रथम खंड सीबीएसई कक्षा 5 की हिन्दी के स्तर का, द्वितीय कक्षा 8 की हिन्दी के स्तर का तथा तृतीय कक्षा 10 की हिन्दी के स्तर का रखा जा सकता है। इस प्रश्न पत्र के अंकों को केवल हिन्दी के सेवाकालीन प्रशिक्षण हेतु उपयोग में लाया जाए तथा उम्मीदवार के चयन पत्र में ही यह उल्लेख किया जाए कि उसे किस स्तर का हिन्दी का प्रशिक्षण परिवीक्षा काल में प्राप्त करना आवश्यक होगा?
हमारी दूसरी परिकल्पना पर आगे बढ़ने के लिए जिस प्रामाणिक डेटा की आवश्यकता है वह हमारे पास नहीं है. हमारे पास सूचना अधिकार अधिनियम के तहत विभिन्न बैंक मुख्यालयों से प्राप्त की गई जानकारी से यह निष्कर्ष निकाल पाना संभव नहीं है कि दूसरी अथवा तीसरी भाषा के रूप में हिंदी का अध्ययन करने वाले अथवा प्राज्ञ पास करने वाले कर्मचारी सरकारी कार्य हिंदी में करने में सक्षम हैं. इसके लिए एक विस्तृत अध्ययन की आवश्यकता है.
-अजय मलिक
(मेरे अधूरे शोध प्रबंध पर आधारित)
बहुत अच्छी जानकारी भरी पोस्ट।
ReplyDeleteअच्छा सूचनापरक लेख .........
ReplyDeleteबहुत खूब
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