Apr 27, 2010

फिर वह अकेला आदमी भी मारा गया

-अजय मलिक
(एक लघु कथा)
न जाने क्यों वह सारी दुनिया को साफ़-सुथरा देखना चाहता था। घर, दफ्तर, बाज़ार, गली, नुक्कड़, सड़क-जहां कहीं भी उसे कचरा नज़र आता वह उसे उठा लेता और नगरपालिका की कचरे की पेटी में डाल आता। प्रारंभ में लोग उसपर ज्यादा ध्यान नहीं देते थे मगर
जैसे-जैसे उसकी सफाई की सनक बढ़ती गई, लोगों की त्योरियाँ चढ़ने लगीं। नगरपालिका वाले भी उसे खूब भला-बुरा कहते।

अब लोग उसे देखते ही कुछ न कुछ उसकी राह में फेंक देते । वह बिना किसी शिकायत के सब उठा लेता और अपने थैले में रख लेता। यह सब देखकर लोग हँसते। लोगों की हँसी से उसे दुःख होता । इतने पर भी वह दिन-रात सफाई में लगा रहता। अंतत: उसे पागल करार दिया गया। लोग गंदगी फैला कर गौरवान्वित होते। धीरे-धीरे लोगों को गंदगी फैलाने की आदत पड़ गई।
फिर एक दिन लोगों ने देखा कि उन्होंने जो गंदगी रात को फैलाई थी वह यूँही अनछुई पड़ी है। लोग आज गंदगी के गुबार में अपनी जीत महसूस कर रहे थे। आदतन लोगों ने शाम को फिर से गंदगी का विस्तार किया। दूसरे दिन भी गंदगी साफ़ नहीं हुई। लोग सोचने लगे -"पगला कहीं और सफाई में लगा होगा या फिर अपनी हार पर शर्मिंदा होकर कहीं भाग गया होगा।"
तीसरे दिन सारे मोहल्ले में अजीब ही बदबू फैल गई। सारी सड़क पर कचरे का अंबार लग गया । महामारी से हाहाकार मच गया।

वह कचरा-पेटी के पास मरा पड़ा था । उसके कचरे का थैला फट चुका था। कचरा-पेटी भी कचरे में कहीं गुम गई थी। उसके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई गई जिसमें आरोप लगाया गया कि उसने अपनी सफाई की लत के चलते लोगों को गंदगी फैलाने का अभ्यस्त बना दिया। महामारी के लिए बहुमत द्वारा उसे जिम्मेदार ठहराया गया।

1 comment:

  1. यह समाज के ठेकेदारों पर बहुत बड़ा व्यंग है. ... काश जिन को इशारा कर के यह उदगार सृजित हुए है वे इन्हें समझ पाते... लेकिन मैं तो एक ही बात जनता हूँ की जो कल था वो आज नहीं है और जो आज है वह कल नहीं होगा... हर रात के बाद नया सवेरा होता है इसी आशा के साथ ...
    आपका अनुज

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