Apr 7, 2010

मुझे बहुत कुछ कहना है...

कुतर्क से आप किसी भी सार्थक बहस का सत्यानाश कर सकते हैं। मनोवैज्ञानिक अर्थ में कुतर्क एक रक्षा युक्ति से अधिक कुछ नहीं है। इसका अभिप्राय: यह नहीं कि रक्षायुक्ति बुरी चीज़ है। समायोजन के लिए कई बार पलायन और रक्षायुक्तियाँ अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हम सब इंसान हैं और हम सब की कुछ न कुछ मजबूरियां हैं जो बेवफ़ाई के लिए बाध्य कर देती हैं। ये मजबूरियां चाहे कितनी ही कृत्रिम , काल्पनिक क्यों न हों हमारे स्व (self) को, जिसे आप अहंकार, स्वाभिमान, आत्मबोध आदि कोई भी नाम दे दें, बनाए रखने के लिए यानी इंसान को टूटने से बचाने के लिए बड़ी सहायता करती हैं। बेवफ़ाई भी तो एक तरह से जीने का बहाना ही तो है। परन्तु यदि आपकी बेवफ़ाई किसी और के जीने के रास्ते बंद कर रही है तो उसे आपकी मज़बूरी की बज़ाय आपका शगल कहना अधिक उपयुक्त रहेगा । " अंगूर खट्टे हैं " अपने आप में रक्षा युक्ति का बेहतरीन उदाहरण है और मेरे हिसाब से इसे एक लाजवाब कुतर्क कहना अपराध नहीं है।


मैंने कल कुछ प्रश्न सार्थक बहस के लिए आपके सामने रखे थे। मुझे आपसे बहुत सारे उत्तरों की आशा थी मगर अब मुझे यह कहना है कि मेरी उम्मीदों पर लगभग पानी सा फिर गया है।

मैं यह समझ पाने में असमर्थ हूँ कि मैंने, मुझे, मेरी आदि प्रथम पुरुष सर्वनामों के प्रयोग में 'मैं' अप्रत्यक्ष कहाँ है ? मुझे आपसे अभी आमने - सामने बात करनी है। क्या इस वाक्य में प्रथम तथा मध्यम पुरुष अप्रत्यक्ष हैं ? सरल भाषा में, उन सर्वनामों को जिन्हें बोलने वाला अपने लिए प्रयोग करता है, उत्तम अथवा प्रथम पुरुष सर्वनाम कहा जाता है। क्षमा प्रार्थना के साथ मैं यह कहना चाहता हूँ कि मैं भाषाविद नहीं हूँ मगर हिंदी भाषा प्रेमी अवश्य हूँ... और जब हिंदी के सहज प्रयोग को कहीं बाधित होते देखता हूँ तो असहज हो जाता हूँ। जाने क्यों मुझे यह लगता है कि हिंदी को असहज बनाने में हिंदी भाषियों को भी शायद कुछ मज़ा आता है।

No comments:

Post a Comment