Apr 19, 2010

18 साल बाद फोन पर फिर मिले

आज सुबह डॉ0 मुनीश्वर जी से उनका फोन नंबर मिला और तत्काल मैंने उसका सदुपयोग कर डाला। देर तक फोन की घंटी बजती रही और फिर बंद हो गई। आशा के विपरीत लगभग दो घंटे बाद उनका फोन आया । मैंने पूछा - " हालचाल कैसे हैं ?" उन्होंने कहा- "ठीक हूँ। आप कौन बोल रहे हैं ?"
18 साल बाद केवल आवाज से कौन पहचानता है भला ? मैंने अपना परिचय दिया तो उन्हें हँसी आ गई। फिर काफी बातें हुईं- बच्चे, परिवार , आजीविका वगैरा ... फिर उन्होंने बताया - "दो दिन पहले ही गौतम जी से बात हो रही थी तब याद किया था आपको।"
सुनकर मुझे भी बहुत अच्छा लगा ।
हम लोगों का कोई परिचय आपस में नहीं था। हमें मिलाने वाली हिंदी थी। हिंदी ने हमें स्वाभिमान से जीना सिखाया था। पाँच में से कम से कम चार के बारे में तो मैं आज बेझिझक कह सकता हूँ कि हम लोग आसमान के तारे चाहे न भी तोड़ पाए हों मगर हिंदी के माध्यम से बाइज्जत दो वक्त की रोटी में कोई कमी नहीं रही।
उन्होंने बताया कि दो बेटे आई आई टी में पढ़ाई कर रहे हैं और तीसरा अभी दसवीं में है। गौतम जी वैशाली में कंसल्टेंसी चला रहे हैं। रेडियोलोजी में एम डी की थीसिस हिंदी में लिखने वाले संसार के एकमात्र व्यक्ति डॉ0 मुनीश्वर जी एक अस्पताल और दो-तीन सी टी स्कैन सेंटर्स के मालिक हैं।
डॉ0 श्यामरुद्र पाठक को यह ज़माना चाहे समझ पाए या नहीं लेकिन जब भी कोई छात्र आई आई टी की संयुक्त प्रवेश परीक्षा में भारतीय भाषाओं का विकल्प चुनेगा पाठक जी के सत्याग्रह की छाया से अंग्रेजी की तपन बार -बार पराजित होगी। हिंदी में एम एस फ़िजिक्स के अंतिम वर्ष की परीक्षा लिखने वाले आई आई टी के सबसे पहले छात्र श्याम का रूद्र रूप अँग्रेज़ी को तब भी भारी पड़ा था और अब भी पड़ रहा है। आज सुबह उनसे बात करने के बाद मुझे फिर से लगा कि जहाँ पेंट-पतलून में गर्मी और सर्दी दोनों लगती हैं वहीं दूसरी ओर गांधी आश्रम का कुर्ता -पाजामा हर मौसम में हिफाजत करता है।
-अजय मलिक

1 comment:

  1. पाठक जी के विषय में बचपन में अखवारों में पढ़ा था कि वे अपनी लड़ाई को राष्ट्रपति के पास तक ले गए थे ... .या ऐसा ही कुछ ध्यान पड़ता है। श्री पाठक जी का नंबर या ई मेल देवें ।

    कृपया पांचों पांडवों का जीवन परिचय प्रकाशित करें -हिंदी जगत कुछ तो प्रेरणा पाएगा ।

    हिंदी की रोटी इज्जत की तो है पर ...... क्षमा शोभती उस भुजंग को.............।

    डॉ. राजीव कुमार रावत

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