इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है / दुष्यंत कुमार
हो गई है पीर पर्वत / दुष्यंत कुमार
कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिये / दुष्यंत कुमार
क्या बताऊं कैसा ख़ुद को दर-ब-दर मैंने किया / वसीम बरेलवी
क्या दुःख है, समंदर को बता भी नहीं सकता / वसीम बरेलवी
आते आते मेरा नाम / वसीम बरेलवी
Aug 10, 2009
कुछ नायाब ग़ज़लों के लिए link (खड़गपुर से मिले पाठक जी के SMS को समर्पित)
Posted by:AM/PM
हिंदी सबके लिए : प्रतिभा मलिक (Hindi for All by Prathibha Malik)
at
8/10/2009 07:21:00 AM
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