मेरे कविता संग्रह "कोई हँसी बेचने आया था" की तीसरी महत्वपूर्ण रचना प्रस्तुत है-
तुझे याद है
भूल गया मैं !
तेरी आँखों का
निर्मल जल
हरदम हँसता
वो कोमल मन
अरे सलोनी
क्या कहती थी-
घास फूँस
मिट्टी सा जीवन !
मन में पर्वत
धँसा लिया था
अटल चेतना
खूँटे जैसी
कण कण
तुझको
बसा लिया था
तुझे याद है
भूल गया मैं !
पल पल
धरती घूम रही है
हर चक्कर पर
झूम रही है
अपना भी
चक्कर आएगा
किसे पता है
इस दुनिया में
कौन कहाँ कब
रह जाएगा !
तुझे याद है
भूल गया मैं !
यह काया तो
धरी धरा संग
मन परवश
यह चिर यौवन
पर्वत को भी
पिघलाएगा
और अचानक
उड़ जाएगा
जब तक
धरती को भाएगा
कहीं दूर
किस ग्रह के
तल में
फिर चेतन हो
मुसकाएगा
तेरी यादें
तेरे संग हैं
तेरे सपने
मेरी यादें
तेरे संग हैं
मेरे सपने
बस तब तक
जब तक हम
इस धरती पर हैं
तुझे याद है
भूल गया मैं !
मुझे याद है
भूल गया मैं !
- अजय मलिक (c)
तुझे याद है
भूल गया मैं !
तेरी आँखों का
निर्मल जल
हरदम हँसता
वो कोमल मन
अरे सलोनी
क्या कहती थी-
घास फूँस
मिट्टी सा जीवन !
मन में पर्वत
धँसा लिया था
अटल चेतना
खूँटे जैसी
कण कण
तुझको
बसा लिया था
तुझे याद है
भूल गया मैं !
पल पल
धरती घूम रही है
हर चक्कर पर
झूम रही है
अपना भी
चक्कर आएगा
किसे पता है
इस दुनिया में
कौन कहाँ कब
रह जाएगा !
तुझे याद है
भूल गया मैं !
यह काया तो
धरी धरा संग
मन परवश
यह चिर यौवन
पर्वत को भी
पिघलाएगा
और अचानक
उड़ जाएगा
जब तक
धरती को भाएगा
कहीं दूर
किस ग्रह के
तल में
फिर चेतन हो
मुसकाएगा
तेरी यादें
तेरे संग हैं
तेरे सपने
मेरी यादें
तेरे संग हैं
मेरे सपने
बस तब तक
जब तक हम
इस धरती पर हैं
तुझे याद है
भूल गया मैं !
मुझे याद है
भूल गया मैं !
- अजय मलिक (c)