मित्रों, इस कविता को पूरा करने के प्रयास में लगभग बत्तीस महीने लग चुके हैं। यह मेरे कविता संग्रह "कोई हँसी बेचने आया था" की शीर्षक कविता होगी । कृपया पसंद आए तो आशीर्वाद दें। ...
-अजय मलिक
-अजय मलिक
कोई हँसी बेचने आया था
और दर्द थमाकर चला गया
जीने की तमन्ना थी हमको
वो मौत थमाकर चला गया
कुछ दूर चला बहलाने को
फिर दिशा बदल ली जाने को
देकर सपने, जन्नत दिखला
ख़ुदगर्ज़, सताकर चला गया
लिख हर पत्ते पर नाम अपना
टूटे दिल का बनकर सपना
कुछ पल संग में हँसकर गाकर
तकलीफ़ बढ़ाकर चला गया
कट जाती थीं शामें वीरानी
पी लेते थे चुप हर नाकामी
कर चकाचौंध, महफ़िल सुलगा
वो जाम चुराकर चला गया
हमने जब सीना चाक किया
उसकी ख़ातिर सब ख़ाक किया
तब वो पत्थर दिल चाँद मेरा
घुप रात थमाकर चला गया
कोई हँसी बेचने आया था
और दर्द थमाकर चला गया
- अजय मलिक (c)
vah vah vah wah wah wah
ReplyDeleteirshad
balle balle balle
बहुत उम्दा
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