अज्ञेय जी की उपर्युक्त कविता पर आधारित कुछ पंक्तियाँ
जो सुख मिले
वो कह दिये
जो दुख मिले
वो भी कहे
और सह लिये
हर स्निग्ध अनुभूति के
हरेक स्पर्श को
हमने जिया
हर नदी के
संग संग
बह लिए
आधे थे और
अधूरे ही रहे
यों बीते दिन
बीते, पर हम
सदा रीते ही
रह लिए
न चाहकर भी
अनचाहे बने
पर मिट न सके
कभी किसी भी
आँख में हम
टिक न सके
सागर तट
की चाह में
हम बेबस
बरसों बरस
जिये, ज़ख्म
सह लिए
-अजय मलिक (c)
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