Jul 15, 2010

शर्मा जी उवाच: इनसे बहुत कुछ सीखा है....

शर्मा जी और गुप्ता जी की दोस्ती जगजाहिर सी लगती थी। शर्मा जी गुप्ता जी से अनुभव एवं उम्र दोनों में बड़े थे किंतु गुप्ता जी से वर्तमान नौकरी में छ: माह बाद आए थे। जब शर्मा जी आए तब गुप्ता जी गोवा में ज्ञान बांटने का काम करते थे । गुप्ता जी से वहां जाकर शर्माजी ने ज्ञान का भंडार संभाल लिया और थोड़ा-थोड़ा कर वितरित करने लगे। कुछ दिन गुप्ता जी ज्ञान बांटने से मुक्ति पाकर मोक्ष प्राप्ति के चक्कर में गोवा में रूक गए। दोनों रोटियाँ बनाने का अभ्यास करते और गोवा के अंदाज़ में भोजन पूर्व सम्पूर्ण सामग्री के आचमनोपरांत भक्षण कर निश्चिंत निन्द्रालीन हो जाते। शर्माजी के अनुभव से गुप्ता जी भी अनुभवी होने का अनुभव करने लगे। गुप्ता जी गोवा में ज्ञान बांटते समय जो नहीं जानते थे उसके अभ्यस्त हो कर गोवा से चले गए।
शर्मा जी ने अपना अनुभव गुप्ता जी के मत्थे मढ़ दिया और धीरे-धीरे पान-बीडी-सिगरेट-तम्बाकू और शराब सबसे तौबा कर ली। शर्मा जी दृढ संकल्प वाले और लंगोट के पक्के आदमी थे। वे अपने अनुभव और व्यावहारिकता की बदौलत गोवा में छा गए। गुप्ता जी को जब शर्मा जी की वाहवाही सुनने को मिलती तो वे तिलमिलाकर रह जाते।
दिन गुजरते गए। गुप्ता जी व्यवसाय की नब्ज़ टटोलते-टटोलते एक दिन फ़ूड इंस्पेक्टर बन गए। एक दिन वे मुंबई के एक बड़े होटल में पहुंचे और मैनेजर से बताया कि पाकशाला का इंस्पेक्शन करने आए हैं। मैनेजर ने अपने असिस्टेंट से कहा - " साहब को पहले कॉफ़ी शॉप ले जाकर कुछ नाश्ता-पानी कराओ , उसके बाद जो भी साहब कहें वह करें। "
गुप्ता जी कॉफ़ी शॉप पहुंचे तो असिस्टेंट मैनेजर ने उन्हें मीनू कार्ड थमा दिया और बड़ी मिन्नत से पूछा कि साब को क्या पेश किया जाए। गुप्ता जी बहुत देर तक मीनू कार्ड को उलट-पलट कर देखते रहे। फिर एक जगह उनकी अंगुली थम गई । उन दिनों पांच सितारा होटलों में भी चाय- कॉफ़ी बमुश्किल दो-तीन रूपए की हुआ करती थी। मीनू कार्ड में सबसे महँगी चीज़ दस रूपए की थी जहाँ गुप्ता जी की अंगुली ठहरी थी। असिस्टेंट मैनेजर ने लाख समझाया कि साब यह तो बिलकुल पानी की तरह होता है, आप कुछ और ले लीजिए। मगर गुप्ता जी अड़ गए-" आप ये ही लाइए, हमें ये ही चलता है।" बेचारा असिस्टेंट मैनेज़र, एक बार फिर गुजारिश की मगर गुप्ता जी टस से मस नहीं हुए। मरता क्या न करता ! उसने वेटर को एक गिलास मिनरल वाटर लाने का आर्डर दे दिया। उन दिनों मिनरल वाटर की शरूआत का दौर था। पानी आ गया और गुप्ता जी ने जैसे ही पहली चुस्की ली माजरा समझ गए मगर अपनी मूर्खता जाहिर करने का समय नहीं था। फिर भी प्रभु इच्छा को कौन टाल सकता है, गुप्ता जी का चुस्की ले लेकर मिनरल वाटर पीने का अंदाज़ सब कुछ साफ़- साफ़ बतला रहा था। कॉफ़ी शॉप में बैठे सभी लोग मुस्करा रहे थे।
समय बीतता गया । दो दशक बाद गुप्ता जी की मुलाक़ात शर्मा जी से हैदराबाद में हुई। अब गुप्ता जी बहुत बड़े अफसर बन गए थे। होटल वाले उनके चारों ओर चक्कर लगाया करते। गुप्ता जी मिनरल वाटर का इस्तेमाल अलग ही तरीके से करते । उनके लिए नहाने के लिए मिनरल वाटर की बोतले टब में भरी जातीं। वे अब बड़े आकार के तोहफे नहीं कबूलते थे। उन्हें छोटे आकार की बेशकीमती वस्तुएं तोहफे में दी जातीं। वे खुश होते मगर ख़ुशी का इज़हार करने से बचते। उनके नहाने के लिए यदि मिनरल वाटर की ज़रा सी भी कमी होती तो उस होटल के बंद होने की नौबत आ जाती।
गुप्ता जी ने हैदराबाद प्रवास के दौरान शर्मा जी को अपने होटल के सूट में बुलवा भेजा। वहां कुछ बड़े लोगों के बीच शर्मा जी का हाल चाल पूछा गया। फिर जब खाने-पीने का दौर चला तो गुप्ता जी झूमते हुए शर्मा जी से बोले- "देखिए जी, ऐसा है शर्मा जी, हम आपको आज भी नहीं भूले। गोवा में तो आप हमारे जूनियर हुआ करते थे, याद है ना। "
शर्मा जी मुस्करा कर बोले-" गोवा में तो गुप्ता जी आपसे मैंने बहुत कुछ सीखा था।"
गुप्ता जी प्रसंशा सुनकर कुछ और झूमने लगे मगर बड़प्पन दिखाते हुए कुछ और प्रसंशा की आशा में बोले-" अरे नहीं, आप तो...मैं तो ...बस "
शर्मा जी ने कहा-" नहीं गुप्ता जी, मैंने जो कुछ भी आपसे सीखा था वह मैं बिलकुल भी नहीं भूला हूँ और कभी भूल सकता भी नहीं। याद है, आप ही ने तो मुझे काकटेल पीना सिखाया था, सिगरेट पीना...हेरा-फेरी करना सिखाया... मैं कभी झूठ नहीं बोलता था मगर वह भी मुझे आपसे ही सीखने को मिला। मैं सरकारी अफसरी को जनता की सच्ची सेवा समझता था मगर आपने मुझे सिखाया कि जनता सरकार के लिए होती है। आप सरकारी हैं इसलिए जनता का यह दायित्व बनता है कि वह आपकी सेवा करे।"
तब तक गुप्ता जी प्रसंशा सुनके की हालत में नहीं बचे थे। वे मद मग्न हो चुके थे। महफ़िल के नुमाइंदों ने गुप्ता जी को बिस्तर पर लिटाया और निश्चिंत होकर शर्मा जी को प्रणाम कर विदा हो गए।

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