सच खूब पक गया हूँ
मैं आज थक गया हूँ
यूँ साँस बची है अभी
कुछ आस बची है अभी।
पर राह मिट गई
सब चाह मिट गई
कदम लड़खड़ा गए
कि पर फड़फड़ा गए ।
कहीं दूर आसमान में
जाने किस बियाबान में
सब तार तार हो गया
तटहि मझधार हो गया ।
सारे आसरे बिसर गए
फूल राख बन बिखर गए!
-अजय मलिक (c)
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