कहा सुना सब रह जाता है
ज़िद में जान चली जाती है ।
कोई नशे में सो जाता है,
कोई ख़्वाब में खो जाता है,
नींद किसी की उड़ जाती है ।
ज़िद में जान चली जाती है ।
रूठ मनाकर, कहीं सुनाकर
भूल भटक कर घर आता है,
प्यास आस की रह जाती है।
ज़िद में जान चली जाती है ।
सूरज उगता फिर ढल जाता,
सबको उजला दिन भाता है,
फिर भी रात चली आती है ।
ज़िद में जान चली जाती है ।
प्यार यार बस तड़पाते हैं,
अपनी राह सभी जाते हैं,
दिल की चाह नहीं जाती है ।
ज़िद में जान चली जाती है ।
कहा सुना सब रह जाता है !
-अजय मलिक “निंदित” (c),
केरलापुरम , १९ जून, २०२२
No comments:
Post a Comment