... हर एक पल उसकी हस्ती है
हर एक पल उसकी कहानी है...
कभी-कभी जब देखी थी तब रत्ती भर भी समझ नहीं थी। फिर भी नासमझ मन पर जो उस कवितामयी फिल्म की छवि छप गई वह कभी-कभी ही नहीं हमेशा छमछम करती रही। बीस साल पहले बहुत मन था यश चोपड़ा से मिलने का, ढेर सारी बातें करने का... उनसे पूछने का कि गुले गुलजार... लाले की जान ये वक्त का सिलसिला धूल के फूल की तरह आदमी और इंसान के बीच दीवार बनकर किस लम्हे कौन से इत्तेफाक से इतने फासले पैदा कर गया। दिल तो पागल है कहने वाला जोशीला त्रिशूल से काला पत्थर निकाल लाया और जो काले पत्थर से लगने वाले दाग थे वे भी चाँदनी में अपनी परंपरा भूलकर धर्मपुत्र की मशाल के सामने वीर-जारा की मोहब्बतें में डर गए और विजय यश चोपड़ा को मिली।
मैं नहीं जानता कि कोई इतने विश्वास से कैसे कह सकता है कि बस अब ये सिलसिला आगे नहीं चलेगा क्योंकि कोई भी सिलसिला तब तक ही चल सकता है जब तक है जान ... मैंने शाहरुख खान द्वारा किया गया यश जी का वह इंटरव्यू देखा था। कितने साफ शब्दों में यश चोपड़ा ने कहा था - इसके बाद कोई फिल्म डाइरेक्ट नहीं करूँगा । उन्हें बस एक बार दूर से देखा था, उनसे गपशप करने की चाह मन में ही रह गई।
यश जी की फिल्मों में झक-झक चांदी जैसी सफेदी हर जगह मौजूद रहती थी। मोहब्बत, प्यार, इश्क की उनकी एक अलग ही परिभाषा थी जिसमें आदमी तो मौजूद रहता था मगर इंसान उस आदमी पर हमेशा हावी रहता था। वे हैवान को भी प्यार में पागल कर आदमी और फिर इंसान बनाने का दम रखते थे। रुपहले परदे के चांदी से चमकते महान फिल्मकार को मेरी भावभीनी श्रद्धांजलि...
-अजय मलिक
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