Sep 30, 2011

एक प्रश्नपत्र राजभाषा से संबंधित


राजभाषा प्रतियोगिता : 2011

नोट : प्रश्न - 1 से 25 तक अनिवार्य हैं तथा प्रत्येक प्रश्न के लिए 1 अंक निर्धारित है। प्रश्न - 26 में हिंदी में अनुवाद हेतु 5 अँग्रेजी टिप्पणियाँ दी गई हैं। प्रत्येक टिप्पणी के लिए 2 अंक हैं तथा यह प्रश्न 10 अंक का है। प्रश्न - 27 में पाँच विषय दिए गए हैं जिनमें से किसी एक विषय पर हिंदी में निबंध लिखिए। यह प्रश्न 15 अंक का है।

समय 1 घंटा
पूर्णांक – 50

1- राजभाषा किसे कहते हैं ? (1X25=25)

राजकाज की भाषा को / उत्तर भारतीय जनता की भाषा को / निजी पत्राचार की भाषा को / संस्कृत को

2- तारामणि, चेन्नई में किसकी नींव स्वर्गीय लालबहादुर शास्त्री ने रखी थी ?

Sep 29, 2011

कराहटों सी करवटें


कराहटों सी करवटें
जख्मों के जश्न से
बदल रही हैं बार-बार

आर-पार, वार-पार
धूम मची द्वार-द्वार
तार-तार दामन में
दिल भी हुए तार-तार

यह धरा भी धरी धरी
धड़कती है धार-धार
जीत रहा जुल्म जहां
हार रहे वीर वार

ये फिरंगी आग आज
फ़ैल गई बाज-बाज़
हिंद में ही सिंध धसी
सभी फंसे द्वार पार


रूठ गया कंठ सुन
जालिमों की अंट संट
डंठल से दंश डसें
स्याम से न सधे कंस

रावण का राग सुन
सुर भी जपें सरगम

रोज इस झन झन से
झेंप रहें सद जन


काठ के कुम्हार
अवे, ढूढ़ रहे कुल्हड़
कराहटों सी करवटें...

-अजय मलिक

Sep 23, 2011

हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग

पेश हैं चार गज़ले कविताकोश के सौजन्य से।

शायर हैं दुष्यंत कुमार, मुनव्वर राना और सर्वत एम जमाल


एक:

खँडहर बचे हुए हैं, इमारत नहीं रही
अच्छा हुआ कि सर पे कोई छत नहीं रही

हिन्दी व्याकरण से संबंधित दो बहुपयोगी लिंक

भारतकोश पर उपलब्ध है ज्ञान का भंडार। हिन्दी भाषा एवं अन्य भारतीय भाषाओं के संबंध में इतने सरल और गंभीर रूप में जानकारी मिलना बहुत कठिन है। हिन्दी व्याकरण से संबंधित दो बहुपयोगी लिंक यहाँ भारतकोश से जुडने के लिए दिए जा रहे हैं-

हिन्दी व्याकरण



(सौजन्य : भारतकोश)

Sep 22, 2011

अजी भाई साहब जी, सुनो तो जी...

अंधेरा ... इस घनघोर अंधेरे में खड़ा हुआ मैं, उजाले में चलते-फिरते, गुलाटियाँ लगाते, गिलोरियाँ खेलते, गोटियाँ बिठाते कई तरह के चेहरों को, बड़ी आसानी से देख पाता हूँ। मुझे अंधेरे में गुम हो गया मान लिया गया है। मैं शायद ब्रह्मांड का हिस्सा बन गया हूँ... ब्लैक होल में समाकर सब ऊर्जाएँ सबसे बड़ी ऊर्जा का हिस्सा बन जाती हैं। अंधेरा जो सबसे बड़ी ऊर्जा है। अंधेरे से सब उजाले में जाना चाहते हैं ... उजाले से कोई भी अंधेरे में नहीं आना चाहता, मगर आना तो पड़ता है। ऐसा कोई नहीं जो अंधेरे में समाने से बच सके। घर का अंधेरा सब मिटाना चाहते हैं; बाकी किसी जगह बिखरे अंधेरे को कोई देखना तक नहीं चाहता। इस अंधेरे में छुपे रहस्यों को क्यों कोई जानना-समझना-छूना-पहचानना नहीं चाहता।

Sep 20, 2011

दो नंबरी तीन हों तो क्या हो...

लगभग 18 वर्ष पूर्व एक लेख लिखा था और शायद राष्ट्रीय सहारा में छपा था। लेख का शीर्षक था- "अधिकांश सुपर स्टारों का खास रिश्ता है दो के अंक से।" पाँच-छह साल पहले एक टी वी चैनल पर इसी विषय पर एक कार्यक्रम भी आया था।
संजय मासूम ने आज भट्ट साहब को जन्मदिन की बधाई दी है फेसबुक के माध्यम से। भट्ट साहब को मेरी ओर से भी बधाई। मैं उनसे कभी मिला तो नहीं मगर बंबई के मुंबई में बदलने के दौर में जब शक्ति सामंत सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष हुआ करते थे तब एक बार फोन पर उनसे जरूर बातचीत हुई थी। 

Sep 18, 2011

रचना जो प्रस्तावना में ही खो गई

कल किसने देखा है? न आने वाला कल आता है न जाने वाला ही कभी लौटता है। आने वाले की आशा तो की जा सकती है मगर चले जाने वाले की तो बस कल्पना ही की जा सकती है। बीते कल में आने वाले कल की जो उम्मीदें थीं वे एक और बीते हुए कल में समा गईं। एक मुस्कराते हुए सौम्य चेहरे से खिलखिलाहट और किलकारियों की आशा में चमकते दो गौरवान्वित चेहरों पर अचानक ढेर सारी झुर्रियां छा गईं और रचना प्रस्तावना में ही खो गई।
एक रचना जो सैंकड़ों, हजारों और शायद लाखों ज़िंदगियों की उम्मीद और मुस्कान बनने को आतुर थी, वह अचानक उपसंहार तक पहुँचते-पहुंचते स्वत: मिट गई। कल शाम से मैं उसी रचना के बारे में सोच रहा हूँ... वह रचना जो अब नहीं है, वह रचना जिसे हम बहुत दूर तक असीमित संभावनाओं के साथ आगे जाता देख रहे थे...जिसके उपचार के भरोसे बुढ़ापे के दस सालों को बारह-पंद्रह तक बढ़ा लेने के सपने हम बहुत सारे लोग देख रहे थे। वह रचना अचानक न जाने कैसे मिट गई। सिर्फ साढ़े तीन महीने पहले जिस रचना के साथ हम लोग बहुत लंबी चौड़ी हांक रहे थे। जो हमें हाँकता देख हँस रही थी, हमारे साथ अपनी संपूर्णता के साथ थी, जिसे सुबह जल्दबाज़ी में हम उठाए बिना ही चले आए थे, वह हमारी रचना, कल से भी पहले कल न जाने क्यों हम सब से रूठकर कहीं खो गई। 
ऐसा भी कभी हो सकता है क्या? विश्वास नहीं हो रहा... मगर करना तो पड़ेगा क्योंकि बीता हुआ कल कभी भी नहीं आता। उस दिव्य आत्मा को जो दिवंगत हो गई, प्रणाम और ईश्वर से प्रार्थना है कि उसे शांति दे... और संबल, साहस और शक्ति दे उन रचनाकारों को जिनकी रचना अब नहीं रही।                 

Sep 15, 2011

पुरस्कृत होकर एक साल तक अपना नाम सिर्फ हिंदी में लिखेंगे

कितने सारे पुरस्कार!
       हिंदी में श्रेष्ठ या उत्कृष्ट काम करने के लिए या सिर्फ हिंदी में काम करने के लिए राष्ट्रीय स्तर से लेकर छोटे-छोटे कार्यालयों के स्तर पर पुरस्कार ग्रहण करने वाले हिंदी सेवियों को हार्दिक बधाई। उनके सत्प्रयत्नों से राजभाषा हिंदी को जो मान-सम्मान मिला है उसके लिए सचमुच वे बधाई के पात्र हैं, अनुकरणीय हैं। उनसे तथा हिंदी से जुड़े पुरस्कारों से प्रेरित होकर अनेक लोग हिंदी से जुड़ेंगे, हिंदी में कामकाज करेंगे, हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए हर संभव प्रयास करेंगे। प्रेरणा, प्रोत्साहन और सद्भावना ये ही तो मूल मंत्र हैं सरकार की राजभाषा नीति के।

Sep 14, 2011

हिंदी दिवस समारोह का सीधा प्रसारण (लाइव वैबकास्ट) राजभाषा विभाग की वेबसाइट के माध्यम से

आज प्रात: 11.30 बजे से विज्ञान भवन, नई दिल्ली में आयोजित हिंदी दिवस समारोह का सीधा प्रसारण दूरदर्शन के साथ-साथ राष्ट्रीय सूचना-विज्ञान केन्द्र भवन, नई दिल्ली से लाइव वैबकास्ट के जरिए देखा जा सकेगा। इसके लिए राजभाषा विभाग की वेबसाइट http://www.rajbhaasha.gov.in/  पर भी लिंक उपलब्ध है-


http://webcast.gov.in/hindi-diwas/


हिंदी दिवस मनाएँ, हिंदी को हर दिल की मंजिल बनाएँ 

हम हिन्दुस्तानी हैं, हिंदी हमारे स्वाभिमान का प्रतीक है  

भारत का कोई भी नागरिक हिंदी से अपरिचित नहीं है



  

Sep 11, 2011

हिंदी सबके लिए की ओर से हिंदी दिवस 14 सितंबर 2011 के अवसर पर शुभकामनाएँ

अद्भुत है हिंदी दिवस का ऐसा कलात्मक स्वागत

राजभाषा विभाग की वेबसाइट पर इस बार अद्भुत कलात्मक ढंग से हिंदी दिवस का स्वागत किया गया है। एक बार जरूर लॉग इन करें- http://www.rajbhasha.gov.in/ पर


राजभाषा विभाग की वेबसाइट से साभार

Sep 8, 2011

हिंदी दिवस पर माननीय गृह मंत्री जी का संदेश


राजभाषा विभाग गृह मंत्रालय की वेबसाइट http://www.rajbhasha.nic.in/ के सौजन्य से

Sep 4, 2011

मेरे गुरु...और गुरुजनों को प्रणाम

मन की उदासी या उदास मन, आवारा फिल्म का वह संवाद “दिल और कानून... कानून और दिल; कानून किसी दिल को नहीं मानता... और दिल भी किसी कानून को नहीं मानता...”  स्वर्गीय डॉ0 के पी अग्रवाल की बहुत याद आती है... विशेषकर सितंबर का महीना शुरू होने पर... ऐसे गुरु, शुभचिंतक और जिगरी दोस्त के बिना उदास मन की उदासी और अधिक बढ़ जाती है।

Sep 1, 2011

यूँ तुझे नमन है गजानन