कराहटों सी करवटें
जख्मों के जश्न से
बदल रही हैं बार-बार
आर-पार, वार-पार
धूम मची द्वार-द्वार
तार-तार दामन में
दिल भी हुए तार-तार
यह धरा भी धरी धरी
धड़कती है धार-धार
जीत रहा जुल्म जहां
हार रहे वीर वार
ये फिरंगी आग आज
फ़ैल गई बाज-बाज़
हिंद में ही सिंध धसी
सभी फंसे द्वार पार
रूठ गया कंठ सुन
जालिमों की अंट संट
डंठल से दंश डसें
स्याम से न सधे कंस
रावण का राग सुन
सुर भी जपें सरगम
रोज इस झन झन से
झेंप रहें सद जन
काठ के कुम्हार
अवे, ढूढ़ रहे कुल्हड़
कराहटों सी करवटें...
-अजय मलिक
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