Sep 29, 2011

कराहटों सी करवटें


कराहटों सी करवटें
जख्मों के जश्न से
बदल रही हैं बार-बार

आर-पार, वार-पार
धूम मची द्वार-द्वार
तार-तार दामन में
दिल भी हुए तार-तार

यह धरा भी धरी धरी
धड़कती है धार-धार
जीत रहा जुल्म जहां
हार रहे वीर वार

ये फिरंगी आग आज
फ़ैल गई बाज-बाज़
हिंद में ही सिंध धसी
सभी फंसे द्वार पार


रूठ गया कंठ सुन
जालिमों की अंट संट
डंठल से दंश डसें
स्याम से न सधे कंस

रावण का राग सुन
सुर भी जपें सरगम

रोज इस झन झन से
झेंप रहें सद जन


काठ के कुम्हार
अवे, ढूढ़ रहे कुल्हड़
कराहटों सी करवटें...

-अजय मलिक

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