Nov 7, 2012

चकल्लस-2 : सच ही संकट का सबब है।


शायद आपको भी बचपन में सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की कहानी सुनाई गई होगी और तब आपने भी बिना आगा-पीछा सोचे सत्य के मार्ग पर चलने की हामी भर ली होगीये भी हो सकता है कि मन से न भी भरी हो, बस ऊपर से ही कह दिया हो कि हाँ-हाँ, बन जाऊंगा मैं भी, सत्यवादी हरिश्चंद!
मुझे भी बचपन में ऐसा ही कुछ सुनने-गुनने को मिला था। सही से तो याद नहीं उस वक्त मैंने क्या कहा होगा मगर मेरा हर उल्टी बात को भी आजमा कर देखने का पागलपन इसी निष्कर्ष पर पहुंचाता है कि बचपन में ही मुझपर भी इस पागलपन का कुछ तो असर जरूर पड़ गया होगा और तभी से बात-बेबात सत्य को आजमा कर देखने का सनकीपन सवार हो गया होगा।
अब क्या हुआ था और क्या नहीं हुआ था, इस प्रश्न का समाधान ढूंढने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है। चलिए, सीधे असल बात पर आते हैं कि झूठ जिसे संसदीय भाषा में असत्य कहने पर बल दिया जाता है, कितना संबल देता है और सत्य नामक रोग कितने काल्पनिक नमक के दरोगा बनाता है। राजा हरिश्चंद्र की ही बात लीजिए। उन्होंने जितने भी संकट झेले सब असत्य को अस्वीकार करने के कारण ही झेले। यदि वे सत्य के झंझट में न पड़ते तो कोई उनकी परीक्षा लेने के चक्कर में क्यूँ पड़ता?झूठ की तो कोई परीक्षा लेता है नहीं। झूठ तो झूठ है, सर्वव्यापी है,सदाबहार है।
न्यायालय में भी सत्य साबित करना होता है,झूठ को साबित करने की जरूरत ही नहीं पड़ती। कोई झूठ बोल रहा है,झूठे सबूत दे रहा है, इस सत्य को साबित करना होता है। अभी सुबह-सुबह सूरज निकाल रहा है। यह एक सत्य है मगर मुझे इस सत्य को साबित करना होगा। सबको दिखाई दे रहा है कि सूरज निकाल रहा है मगर इस सत्य को साबित किए बिना राजा हरिश्चंद्र नहीं बना जा सकता। अगर कोई झूठ कह रहा है कि इस समय सूरज नहीं निकल रहा है तो लोग हँसकर टाल जाएंगे मगर इसे साबित करने के लिए आग्रह नहीं करेंगे।
राजा हरिश्चंद की कहानी से यह शिक्षा भी मिलती है कि सत्य एक कठिन चीज़ है, जिसके लिए आग्रह करने पर संकट आ सकता है और जीवन भर के लिए आ सकता है। इस संकट को आप लगातार बढ़ाते जाएंगे क्योंकि आप झूठ को स्वीकार नहीं करेंगे और आपका अड़ियल रुख आपको स्वर्ग पहुंचाकर ही दम लेगा। यानी सत्य की मांग स्वर्ग में ज्यादा है और जमीन पर सत्य की सिर्फ परख की जाती है जिसके लिए अनेक संकट सृजित किए जाते हैं। यदि आप सत्य पर चलना चाह रहे हैं तो जीवन भर लड़ते रहने के लिए तैयार हो जाइए। लड़ना बंद करते ही या तो आप हार जाएंगे और झूठ की राह पर चल पड़ेंगे या फिर सत्यवादी हरिश्चंद्र सिद्ध होते ही आपको सीधे स्वर्ग जाना पड़ेगा। पृथ्वी के कंद-मूल भोग करने के लिए आपमें झूठ को पचा लेने लायक पाचन शक्ति चाहिए। अत: सत्य यह भी है कि सच ही संकट का सबब है।
सत्य सिर्फ पृथ्वी रूपी प्रयोगशाला में परखने की चीज़ है जिससे स्वर्गवासी होने में सहायता मिलती है और झूठ जीवन का मूल है जिससे पृथ्वी के नरक-अरक़ भोगने के लिए सहयोग, समर्थन और संबल मिलता है। यह मान्यता है कि एक झूठ से अगर किसी की जान बचती है तो वह झूठ नहीं है बल्कि तथाकथित व्यावहारिकता है। जब एक झूठ एक जान बचा सकता है तो अनेक झूठ अनेक जान बचा सकते हैं। वैसे यह तो पहले ही सिद्ध हो चुका है कि सत्य से जान नहीं बचती, पृथ्वी पर रहना  नसीब नहीं हो सकता पर स्वर्ग निश्चित रूप से मिलता है। कहावत है कि मरे बिन कभी किसी को स्वर्ग नहीं मिलता यानी सत्य मरने में सहायक है। सत्य से शरीर नहीं बचता क्योंकि शरीर भी सत्य नहीं है। सत्य से केवल आत्मा बचती है जो कि सदा से अजर-अमर मानी जाती रही है। अत: ठेठ सरकारी अंदाज़ में अनुरोध है कि माया-मोह तथा इस नश्वर शरीर से अगर तंग आ चुके हैं तो आत्मा तथा स्वर्ग की प्राप्ति के लिए सत्य का आश्रय लें।    
- अजय मलिक 
(... जारी )

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"I wanted to post it on your blog but could not done so pasted here : ये मृग मरीचिका है, सत्य को असत्य बनाने का गुण सीखना होगा अगर हिंदुस्तान मे सुख से जीना है क्योकि "जाकी उतार गई लोई, उसका क्या करेगा कोई", शर्म उसको आती है जिसको जीवन और आत्मा का महत्व समझ आता हो॰ बाकी बेशर्म को गाली दो, डंडा मारो, जूता मारो क्या फर्क पड़ता है, उसे न तो आने वाले पीढ़ी को कुछ देकर जाना है और न ही किसी दूसरे के दुख दर्द का अहसास है, आज के money driven समय मे वही सफल है जो दाम दंड भेद कोई भी अनीति अपनाकर अपना काम निकाल लेता है, मैंने साम का जिक्र यहाँ नहीं किया है क्योकि अपने हिंदुस्तान मे साम का अर्थ बदल गया है, आजकल साम का अर्थ है "प्यार से धमकाना" "कि सुधर जाओ नहीं तो हम सुधार देंगे" जोकि दंड का रूप है और अगर इतिहास पढे तो सच्चे, गुणी और सुशील इंसान हमेशा ही दुष्टो के सहज शिकार बनते रहे है, आज भी बन रहे है॰ और ईश्वर ने तो इंसान की सारी जरूरते प्राकृतिक रूप से उपलब्ध कराई है परंतु इंसान ने अपनी अनावश्यक जरूरते इतनी बढ़ा ली कि किसी उपाय पूरी नहीं हो रही है, तो जो मानसिक तनाव है वो घर से लेकर कार्यालय तक बढ़ता ही जा रहा है और वो दूसरे सुखी को दुखी करके संतोष पाने की तलाश मे ज्यादा दुखी होता जा रहा है, और ये दुख व निराशा लोगों को भ्रष्ट बना रहा है, और ऐसे को समझाने की कोशिश कीचड़ मे पत्थर मारने जैसा है॰ जैसा की प्रदीप जी ने कहा है उम्मीद रखिए, पर खुद को इस भीड़ का हिस्सा बनने से बचाने की कोशिश भी॰ पंकज"
(07-11-2012, 11.50 pm)
 

1 comment:

  1. सच के लिए गैलीलियो को फांसी का हुक्म सुनाया गया ,ईसा को सूली पर लटकाया गया सुकरात को जहर पिलाया गया अब आपके लिए कोई नया तरीका खोजना होगा ये अपने आप मे आपने बड़ी समस्या पैदा करदी है और भाईजान न्यायालय मे सच को साबित नहीं करना होता झूठ को सच साबित करना होता है और करने वाला इतना अंजान कि कहता है ---मुकर जाने का ज़ालिम ने निराला ढंग निकाला है
    हर इक से पूछता है इसको किसने मार डाला है
    इसलिए आपसे इतना ही कहूँगा
    मियां देखा मज़ा सच बोलने का
    जिधर तुम हो उधर कोई नहीं है
    इसीलिए देश में शेर कम और कुत्ते ज्यादा है और अब आलम ये है कि सरकार शेरों को बचा रही है और कुत्तों को मार रही है एक दिन सच्चों का भी आएगा -----और ये सच है

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