Jul 27, 2012

श्रुतलेखन पर कुछ छींटे और कुछ बौछारें

श्रुतलेखन पर श्री रवि रतलामी जी की राय बदली है। राजभाषा विभाग द्वारा सीडैक से तैयार कराए गए कम से कम दो सॉफ्टवेयर्स ऐसे हैं जो उपयोगी और प्रशंसनीय हैं। पहला लीला हिंदी प्रबोध (पुराना पाठ्यक्रम) और दूसरा श्रुतलेखन। रवि जी ने कुछ दिन पूर्व कुछ छींटे मारे थे श्रुतलेखन पर मगर अब निर्मल बौछारों से उन्हें धो-पौंछ दिया है। जब रवि जैसे अनुभवी कंप्यूटर विशेषज्ञ को प्रथम प्रयास में परेशानी हो सकती है तो सामान्य प्रयोगकर्ता का क्या हाल होगा इसे आसानी से समझा जा सकता है। मुझे श्रुतलेखन ने जनवरी 2007 से अब तक बहुत बार थकाया है और बहुत बार अद्वितीय परिणाम दिए हैं। मैं रवि जी के आलेख का लिंक नीचे दे रहा हूँ जिसे श्री विजय प्रभाकर नागरकर जी ने भेजा है। रवि जी के छींटे और बौछारें श्रुतलेखन के प्रयोक्ताओं को बहुत मदद करेंगी, इसी आशा के साथ नीचे लिंक दिया जा रहा है, जरूर पढ़ें-
   http://raviratlami.blogspot.in/2012/07/blog-post_27.html
कृपया ध्यान दें- 
श्रुतलेखन इंस्टालेशन से पूर्व एंटी वायरस सोफ्टवेयर निष्क्रिय कर दें। चिंता न करें, इंस्टालेशन के बाद जब कम्प्युटर रिस्टार्ट होगा तो एंटी वायरस स्वत: पुन: सक्रिय हो जाएगा। यदि वायरस आक्रमण का डर है तो इंस्टालेशन के समय इंटरनेट भी बंद रख सकते हैं।

Jul 26, 2012

हिन्दी सबके लिए का 3 वर्ष का सफर

जितना चाहते थे उसका दस प्रतिशत भी इन तीन वर्षों में नहीं दिया जा सका। बहुत सारा काम पुन: संपादन के लिए शेष है। कुछ ऐसे बहाने हैं जिनका सहारा लेकर कम लिखने या कम पोस्ट करने का तर्क दिया जा सकता है। ... लेकिन जिंदगी में यदि झंझट नहीं होंगे तो फिर इसे जिंदगी ही कौन कहेगा! हमें गर्दन और पीठ की परवाह न करते हुए, पीठ पर पड़ने वाले कोडों की संख्या में हुई वृद्धि के अनुपात में और अधिक घंटे काम करना चाहिए था जो नहीं किया जा सका।

ज्यादा समय कोडों की चिंता और पीठ के दर्द को सहलाने में नष्ट हुआ जिसकी भरपाई मुश्किल है। 

मगर असफलताओं के बीच जीने भर के लिए आक्सीजन की कमी तो नहीं है। एक रूखे से ब्लॉग को पिछले 3 वर्षों के दौरान औसतन 70 पाठकों ने प्रतिदिन देखा... हमारे लिए इतना भी चलते जाने के लिए कम तो नहीं है। इस स्नेह के लिए विनम्र आभार।   

आपका मनचाहा कुंजीपटल ... संपादित

आपका मनचाहा कुंजीपटल ... आलेख कुछ नई जानकारियों को जोड़ते हुए पुन: संपादित कर दिया गया है। माइक्रोसॉफ्ट इंडिक लैड्ग्वेज इनपुट टूल अब भाषा इंडिया डॉट कॉम के मुख पृष्ठ पर स्थानांतरित हो गया है जिसका लिंक नीचे दिया जा रहा है-
http://www.bhashaindia.com/_layouts/ilit/Hindi.aspx


हिन्दी आसान ट्यूटर की जानकारी तथा डाउनलोड लिंक तो पहले ही दिया जा चुका है। अब भाषा इंडिया डॉट कॉम पर भी 12 भारतीय भाषाओं केलिए Indic Inscript Tutor सॉफ्टवेयर दिए गए हैं। हिन्दी का लिंक नीचे दिया जा रहा है-


    
(सौजन्य भाषा इंडिया डॉट कॉम)

Jul 25, 2012

दो अखबारों की एक ख़बर

 'हिन्दी सबके लिए' का कल से चौथा वर्ष शुरू हो रहा है। इस पूर्व संध्या पर चेन्नई के दो स्थानीय समाचार पत्रों में छपी एक ख़बर के लिंक नीचे दिए जा रहे हैं। ये लिंक्स मैंने 18 जगह भेजे और प्रत्योत्तर में माननीय अग्रवाल साहब एक संदेश मिला। एक परम मित्र ने फोन पर लंबी बात की। उनसे लगभग रोज ही बात होती है और अगले दिन तक विदा लेने से पूर्व डबल्यूडबल्यूएफ़ और हिन्दी में समानता पर चर्चा होती है। ये लिंक यहाँ इसलिए दिए जा रहे हैं क्योंकि कुछ लोग अभी भी नहीं मानते कि हिन्दी सबके लिए है। मित्रो, अपनी माँ और मौसी को अपना मानें या न मानें, सच्चाई तो बदली नहीं जा सकती...   
http://www.deccanchronicle.com/channels/cities/chennai/why-should-lic-staff-sign-hindi-asks-mk-392

http://www.thehindu.com/news/states/tamil-nadu/article3663329.ece

Jul 20, 2012

धक्-धक्, धक्-धक् ओ मेरे दिल! - अज्ञेय


(अज्ञेय जी की यह कविता मुझे अत्यधिक पसंद है। कल नेट पर यह कविता मुझे मिल गई। जहाँ से मिली वहाँ भी श्रद्धेय अज्ञेय जी के एक परम भक्त के प्रयासों से ही डाली गई होगी। मुझे अब तक अपने जीवन में अज्ञेय जी के प्रति मुझसे अधिक श्रद्धावान दो ही महानुभाव मिले - एक मुंबई में और एक कोचिन में। इसका यह मतलब नहीं कि अज्ञेय जी के प्रति श्रद्धा रखने वालों की कमी है, बस उनके प्रति समर्पित लोग मौन ज्यादा रहते हैं और अपने मन के किसी भी कोने में कोई झरोखा तक नहीं छोड़ते किसी के झाँकने के लिए।  अज्ञेय जी की इस कविता से मैं स्वर्गीय राजेश खन्ना यानी काका को श्रद्धांजलि दे रहा हूँ.........  -अजय मलिक

(1)

धक्-धक्, धक्-धक् ओ मेरे दिल!
तुझ में सामर्थ्य रहे जब तक तू ऐसे सदा तड़पता चल!

जब ईसा को दे कर सूली जनता न समाती थी फूली,
हँसती थी अपने भाई की तिकटी पर देख देह झूली,
ताने दे-दे कर कहते थे सैनिक उस को बेबस पा कर :
''
ले अब पुकार उस ईश्वर को-बेटे को मुक्त करे आ कर!''

जब तख्ते पर कर-बद्ध टँगे, नरवर के कपड़े खून-रँगे,
पाँसे के दाँव लगा कर वे सब आपस में थे बाँट रहे,
तब जिस ने करुणा से भर कर उस जगत्पिता से आग्रह कर
माँगा था, ''मुझे यही वर दे : इन के अपराध क्षमा कर दे!''

वह अन्त समय विश्वास-भरी जग से घिर कर संन्यास-भरी
अपनी पीड़ा की तड़पन में भी पर-पीड़ा से त्रास-भरी
ईसा की सब सहने वाली चिर-जागरुक रहने वाली
यातना तुझे आदर्श बने कटु सुन मीठा कहने वाली!

तुझ में सामर्थ्य रहे जब तक तू ऐसे सदा तड़पता चल-
धक्-धक्, धक्-धक् ओ मेरे दिल!

(2)

धक्-धक् धक्-धक् ओ मेरे दिल!
तुझ में सामर्थ्य रहे जब तक तू ऐसे सदा तड़पता चल!

बोधी तरु की छाया नीचे जिज्ञासु बने-आँखें मीचे-
थे नेत्र खुल गये गौतम के जब प्रज्ञा के तारे चमके;
सिद्धार्थ हुआ, जब बुद्ध बना, जगती ने यह सन्देश सुना-
''
तू संघबद्ध हो जा मानव! अब शरण धर्म की आ, मानव!''

जिस आत्मदान से तड़प रही गोपा ने थी वह बात कही-
जिस साहस से निज द्वार खड़े उस ने प्रियतम की भीख सही-
''तू अन्धकार में मेरा था, आलोक देख कर चला गया;
वह साधन तेरे गौरव का गौरव द्वारा ही छला गया-

पर मैं अबला हूँ  इसीलिए, कहती हूँ, प्रणत प्रणाम किये,
मैं तो उस मोह-निशा में भी ओ मेरे राजा! तेरी थी;
अब तुझ से पा कर ज्ञान नया यह एकनिष्ठ मन जान गया
मैं महाश्रमण की चेरी हूँ-ओ मेरे भिक्षुक! तेरी हूँ!''

वह मर्माहत, वह चिर-कातर, पर आत्मदान को चिर-तत्पर,
युग-युग से सदा पुकार रहा औदार्य-भरा नारी का उर!
तुझ में सामर्थ्य रहे जब तक तू ऐसे सदा तड़पता चल-
धक्-धक्, धक्-धक् ओ मेरे दिल!

(3)

धक्-धक्, धक्-धक् ओ मेरे दिल!
तुझ में सामर्थ्य रहे जब तक तू ऐसे सदा तड़पता चल!

बीते युग में जब किसी दिवस प्रेयसि के आग्रह से बेबस,
उस आदिम आदम ने पागल, चख लिया ज्ञान का वर्जित फल,
अपमानित विधि हुंकार उठी, हो वज्रहस्त फुफकार उठी,
अनिवार्य शाप के अंकुश से धरती में एक पुकार उठी :

''
तू मुक्त न होगा जीने से, भव का कड़वा रस पीने से-
तू अपना नरक बनावेगा अपने ही खून-पसीने से!''
तब तुझ में जो दु:सह स्पन्दन कर उठा एक व्याकुल क्रन्दन :
''
हम नन्दन से निर्वासित हैं, ईश्वर-आश्रय से वंचित हैं;

पर मैं तो हूँ पर तुम तो हो-हम साथी हैं, फिर हो सो हो!
गौरव विधि का होगा क्योंकर मेरी-तेरी पूजा खो कर?''
उस स्पन्दन ही से मान-भरे, ओ उर मेरे अरमान-भरे,
ओ मानस मेरे मतवाले-ओ पौरुष के अभिमान-भरे!

तुझ में सामर्थ्य रहे जब तक तू ऐसे सदा तड़पता चल,
धक्-धक्, धक्-धक् ओ मेरे दिल!

- सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन 'अज्ञेय' 

Jul 12, 2012

राष्ट्रभाषा : मनन, मंथन, मंतव्य

यहाँ विकिबुक्स के एक लेख, जिसे अनेक लेखों का संकलन कहा जा सकता है, लिंक दिया जा रहा है-


http://hi.wikibooks.org/wiki/AF


समय हो तो जरूर पढ़ें, समय न हो तो अवश्य पढ़ें

(सौजन्य विकिबुक्स)

लीला गहन प्राज्ञ पाठ्यक्रम ऑनलाइन परीक्षा की लिखित भाग की परीक्षा के लिए नमूना प्रश्न पत्र