जितना चाहते थे उसका दस प्रतिशत भी इन तीन वर्षों में नहीं दिया जा सका। बहुत सारा काम पुन: संपादन के लिए शेष है। कुछ ऐसे बहाने हैं जिनका सहारा लेकर कम लिखने या कम पोस्ट करने का तर्क दिया जा सकता है। ... लेकिन जिंदगी में यदि झंझट नहीं होंगे तो फिर इसे जिंदगी ही कौन कहेगा! हमें गर्दन और पीठ की परवाह न करते हुए, पीठ पर पड़ने वाले कोडों की संख्या में हुई वृद्धि के अनुपात में और अधिक घंटे काम करना चाहिए था जो नहीं किया जा सका।
ज्यादा समय कोडों की चिंता और पीठ के दर्द को सहलाने में नष्ट हुआ जिसकी भरपाई मुश्किल है।
मगर असफलताओं के बीच जीने भर के लिए आक्सीजन की कमी तो नहीं है। एक रूखे से ब्लॉग को पिछले 3 वर्षों के दौरान औसतन 70 पाठकों ने प्रतिदिन देखा... हमारे लिए इतना भी चलते जाने के लिए कम तो नहीं है। इस स्नेह के लिए विनम्र आभार।
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