सच्चे का सच
साँच को आँच
झूठ को सहारा.
छल को सौ छत
आदमी की आफत
कपट से गुजारा.
बोले से बवाल,
न बोले सवाल.
चीखने से शौहरत
सुनने को लानत
सबकी मजम्मत.
किस्से पे किस्सा
न सिर न पैर.
साहब की खिदमत
खाविन्द से खार
बाकी सब यार.
कैसा नज़ारा
कितना बेचारा.
सच्चे के सच ने
बड़ी सहजता से
सच्चे को मारा.
Jul 29, 2009
अजय मलिक की एक कविता
Posted by:AM/PM
हिंदी सबके लिए : प्रतिभा मलिक (Hindi for All by Prathibha Malik)
at
7/29/2009 09:13:00 PM
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