एक मित्र ने संदेश भेजा - 'कवि सम्मेलन में कविता पाठ करना है, शाम साढ़े पाँच बजे।' मैंने कई बार अपने गंजे सिर पर हाथ फेरा, इधर-उधर देखा, चश्में को उतारकर आँखों पर हथेलियों का दबाव डालकर इस बात का पता लगाने की कोशिश की कि आखिर किस कोण से मेरे जैसा त्रिकोण कवि लग सकता है? कुछ समझ में नहीं आया। फिर सोचा चलिए, मित्रवर की पारखी निगाहों से देखने से शायद कुछ नज़र आ जाए... इस जाँच-पड़ताल में एक लाल बत्ती पर स्कूटर रोककर खड़े-खड़े कुछ पंक्तियाँ लिखने की कोशिश की। बस फिर क्या
था - अगले चौराहे तक पहुँचने से पहले फुस्स से पिछले टायर की हवा निकल गई। पिछले शुक्रवार को भी यही किस्सा हुआ था मगर तब कविता का कोई चक्कर नहीं था। नई ट्यूब डलवाई थी। आज कविता के ख्याल भर से हवा निकल गई। जो पंक्तियाँ लिखकर कवि बनने की खुशफहमी पालने की कोशिश की गई थी, वे नीचे दे रहा हूँ -
था - अगले चौराहे तक पहुँचने से पहले फुस्स से पिछले टायर की हवा निकल गई। पिछले शुक्रवार को भी यही किस्सा हुआ था मगर तब कविता का कोई चक्कर नहीं था। नई ट्यूब डलवाई थी। आज कविता के ख्याल भर से हवा निकल गई। जो पंक्तियाँ लिखकर कवि बनने की खुशफहमी पालने की कोशिश की गई थी, वे नीचे दे रहा हूँ -
जाने कितने आज
कल, परसों हुए।
कविता से बिछुड़े हुए
बरसों हुए ।
मित्रवर से यही निवेदन किया कि बंधु , और जो चाहे बना दें पर मुझे कवि होने की गफलत में न फंसाएँ वरना जो टूटा-फूटा सा कुछ खंडहर जैसा बचा है वह भी धड़ाम से गिर जाएगा। वैसे ही बहुत सारे हिन्दी के बड़े-बड़े लेखक जूते-चप्पल लिए दो चार जमाने की फिराक में हैं। अगर कविता के भी चक्कर में पड़ गया तो हिन्दी कविता का तो कुछ भला नहीं ही होगा पर मुझ भटके हुए प्राणी का कोई ठौर-ठिकाना नहीं बचेगा।
आज हिंदी दिवस पर "हैप्पी हिंदी डे" जैसे कई ख्याल आए। कुछ जगह से "हैप्पी हिंदी डे सेलिब्रेट" करने की भी सूचना मिली। मित्रो, यहाँ भी इस अकवि, कविताहीन, दीन-हीन प्राणी ने काव्य रस में सराबोर होने का दौरा सा महसूस हुआ। इस मिरगी से भी भयानक दौरे से निष्कर्ष स्वरूप जो पंक्तियाँ निकलीं वे थीं-
मैं
हिंदी था
और तू
हिंदी का बड़ा हमदर्द था
अफसोस
जमीं थी ही नहीं
और जो समंदर था
वो ठिठुरा था
बड़ा ही सर्द था
और तू
हिंदी का बड़ा हमदर्द था
अफसोस
जमीं थी ही नहीं
और जो समंदर था
वो ठिठुरा था
बड़ा ही सर्द था
बस इसके बाद इस संबंध में कुछ न कहना ही उचित रहेगा। पर कुछ तो विचित्र मेरे साथ होता ही रहता है। पिछले शनिवार शायद फेसबुक पर शनि महाराज को खफा कर बैठा था और नतीजतन जो दस थैली दूध की लाया था उनमें से एक-एक कर सात थैलियों का दूध फटता चला गया पर दो कप चाय न बन सकी। आ बैल मुझे मार की तर्ज़ पर एक मित्र के लिए तीसरी पीढ़ी के i५ प्रोसेसर और एक उच्च कोटि के मदरबोर्ड के साथ कंप्यूटर बनाने का वादा कर बैठा। चेन्नई में रिची स्ट्रीट से सारा सामान लाया - नई ५०० जीबी की पौने चार हज़ार रुपए की हार्ड डिस्क (कठोर चकरी), १५ हज़ार अधिकतम खुदरा मूल्य का प्रोसेसर, ८ हज़ार का मदरबोर्ड, २ हज़ार की केबिनेट, १६०० मेगाहार्ट्ज स्पीड का डीडीआर ३ राम... और बाकी सारा सामान...
मित्रो, विधि का विधान देखिए कि बिना कुछ किए सिर्फ विंडोज़ स्थापना के वक़्त अचानक सब शांत हो गया... वारंटी थी और जला-फूंका कुछ था नहीं इसलिए सब उठाकर भागा-भागा फिर रिची स्ट्रीट पहुंचा... दुकानदार ने हैरानी से माथा पकड़ लिया। एक-एक कर सब सामान परखा तो मदरबोर्ड, प्रोसेसर, हार्ड डिस्क और एसएमपीएस (विद्युत आपूर्ति एकक) सब खराब... क्या खराबी आई और किस वजह से आई, इसका कुछ पता नहीं चल सका। खैर, सब कुछ बदलकर नया मिल गया...
हाय रे किस्मत, तेरा भी जवाब नहीं। इससे पहले भी एक मदरबोर्ड ने झटका दिया था। एचडीएमआई पोर्ट युक्त मदर बोर्ड से टीवी जोड़कर फिल्म देखने की ललक का नतीजा यह निकाला कि दस-पंद्रह दिन बाद अचानक फुस्स की आवाज़ आई और टीवी बंद...पूरी एचडीएमआई केबिल जलकर राख़ हो गई... मदरबोर्ड का एचडीएमआई पोर्ट भी जल गया। इंटेल वालों के पास ले गया तो उन्होंने "फिजिकल डैमेज" के कारण वारंटी खत्म हो जाने का जवाब दे दिया।
हैरानी की बात ये है कि वह जला हुआ मदरबोर्ड, जलने के बाद भी पिछले एक साल से दिन में १८ घंटे चलाया जा रहा और वह मुस्कराते हुए बेखौफ काम कर रहा है। उसी से यह पोस्ट भी तैयार की जा रही है। इस सबके बाद भी अगर जापान में आई सुनामी का आरोप मुझपर लगता है तो इसमें हैरानी जैसी कोई बात नहीं है।
मेरे ऐसे अनेक मित्र हैं जो हर अच्छी (कम) बुरी (ज्यादा) का श्रेय मुझे देते रहते हैं। यदि कहीं बाढ़ आती है तो वह मेरे कारण आई और मेरे द्वारा बुलाई गई, बताई जाती है। भूकंप के अधिकांश मामलों में मेरा हाथ देखा जाता है। सूखा पड़ने के लिए भी मुझे जिम्मेदार बताया जाता है। यदि कोई हवाई उड़ान रद्द होती है, कोई रेलगाड़ी विलंब से आती है, कोई बस दुर्घटना हो जाती है, किसी की चप्पल टूट जाती है या साइकिल का पैड़ल जाम हो जाता है तो इन सबके लिए भी बेझिझक एक मात्र जिम्मेदार मुझे ठहरा दिया जाता है। पिछले १५ दिनों से तबीयत बेहद खराब है मगर फिर भी मुझसे अधिक जिम्मेदार कहीं कोई नहीं है। बाहर बहुत तेज़ बिजली कडक रही है... इससे पूर्व की कोई और मुझे इसके लिए जिम्मेदार ठहराए मैं स्वयं ज़िम्मेदारी लिए लेता हूँ।
मेरे ऐसे अनेक मित्र हैं जो हर अच्छी (कम) बुरी (ज्यादा) का श्रेय मुझे देते रहते हैं। यदि कहीं बाढ़ आती है तो वह मेरे कारण आई और मेरे द्वारा बुलाई गई, बताई जाती है। भूकंप के अधिकांश मामलों में मेरा हाथ देखा जाता है। सूखा पड़ने के लिए भी मुझे जिम्मेदार बताया जाता है। यदि कोई हवाई उड़ान रद्द होती है, कोई रेलगाड़ी विलंब से आती है, कोई बस दुर्घटना हो जाती है, किसी की चप्पल टूट जाती है या साइकिल का पैड़ल जाम हो जाता है तो इन सबके लिए भी बेझिझक एक मात्र जिम्मेदार मुझे ठहरा दिया जाता है। पिछले १५ दिनों से तबीयत बेहद खराब है मगर फिर भी मुझसे अधिक जिम्मेदार कहीं कोई नहीं है। बाहर बहुत तेज़ बिजली कडक रही है... इससे पूर्व की कोई और मुझे इसके लिए जिम्मेदार ठहराए मैं स्वयं ज़िम्मेदारी लिए लेता हूँ।
शर्मा जी ने जिम्मेदार व्यक्ति का विवरण कुछ इस तरह दिया-
वीकेएस (एक अति जिम्मेदार व्यक्ति का संक्षिप्त नाम) एक जगह साक्षात्कार के लिए गए।साक्षात्कार लेने वालों ने कहा - इस पद के लिए हमें एक जिम्मेदार अधिकारी की जरूरत है। वीकेएस ने कहा- फिर तो मुझसे अधिक योग्य व्यक्ति आपको मिलने से रहा! मैं इससे पहले तीन कंपनियों में काम कर चुका हूँ और सभी ने मुझे जिम्मेदार होने का प्रमाण-पत्र, प्रशस्ति-पत्र दिया है। साक्षात्कार लेने वालों ने पूछा- फिर आपने उन कम्पनियों को क्यों छोड़ दिया? वीकेएस ने कहा- "जनाब, वे तीनों कंपनियाँ बंद हो गईं और बंद होने के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार मुझे ठहराया गया।"
इति सिद्धम।
हिंदी दिवस पर एक बार फिर से हैप्पी हिंदी डे मनाने वालों को साष्टांग प्रणाम। मैं आज बहुत कुछ बताना चाहता था मगर शायद अभी समय नहीं आया है।
- अजय मलिक
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