यह विचित्र सी ही बात है कि उत्तर-प्रदेश का निवासी होते हुए
भी मैं सबसे ज्यादा अपरिचित उत्तर-प्रदेश और उत्तर भारत से ही हूँ। इसी बात से
अनुमान लगाया जा सकता गाँव के इस ठेठ देहाती की अनभिज्ञता और फूहड़पन का। शायद यही
वजह है कि मैं सही मायनों में "आरआई" भी नहीं हूँ, "एनआरआई"
होना तो बड़ी दूर की बात है बशर्ते कि सिलीगुड़ी के पास नेपाल की सीमा से गुजरने
या एक घंटे के लिए पानी की टंकी के पास से नेपाल में घूम आने को इसमें शामिल न
किया जाए। मेरे कई परिचित आज एनआरआई हो गए हैं। वे हिंदी के साथ दक्षिण अफ्रीका
में जोहांसबर्ग गए हैं और अढ़ाई दिन बाद लौट आएंगे। कुछ मित्र ऐसे भी हैं जिन्हें
जोहांसबर्ग हिंदी को ले जाने का अवसर बस मिलते-मिलते रह गया। मैं एक घंटे वाला
नेपाल रिटर्न इंडियन हिंदी के नाम पर चेन्नई में पड़ा हूँ। मैं हिंदी को ढोने
योग्य भी नहीं बचा हूँ, अब शायद हिंदी ही मुझे ढो या धो रही है। बहुत सारे लोग हैं
जिन्हें हिंदी ढो रही है। मैं भी ढुलाई वाले ट्रक या गाड़ी में लदा हूँ और ढोए
जाने के अजीब से चक्र का हिस्सा बना हुआ हूँ। जो थोड़ी-बहुत हिंदी जानता था वह
अङ्ग्रेज़ी की भेट चढ़वा दी गई और अँग्रेजी इस भारतीय को न तो अंग्रेज़ बना पाई और
न ही हिंदी वाला रहने दिया। एक अजीब सा कुछ-कुछ दलिया जैसा बनकर रह गया हूँ। यदि
खिचड़ी भी बन गया होता तो भी कुछ संतोष होता।
बहरहाल जो मित्र कल यानी 22 सितंबर से शुरू होने वाले नवें
विश्व हिन्दी सम्मेलन में भाग लेने या दौड़ लगाने गए हैं और 24 सितंबर, 2012
को जोहान्सबर्ग, दक्षिण
अफ्रीका की दौड़ पूरी कर लौटेंगे उनके अनुभव सुनने की अभिलाषा तो रहेगी ही और जो
नहीं जा सके या मेरे जैसे ढुलाई योग्य बनकर इधर उधर डंप हुए पड़े हैं उनके लिए इस
सम्मेलन से जुड़ी सूचनाएँ नीचे दिए लिंक पर उपलब्ध हैं-
विश्व हिंदी सम्मेलनों का
इतिहास जनवरी 1975 को नागपूर में हुए प्रथम सम्मेलन से शुरू होकर वाया पोर्ट लुई, मॉरीशस (द्वितीय), नई
दिल्ली, भारत (तृतीय), पोर्ट
लुई, मॉरीशस (चतुर्थ), पोर्ट
ऑफ स्पेन, ट्रिनिडाड एण्ड टोबेगो
(पाँचवाँ), लंदन, यू. के. (छठा), पारामारिबो, सूरीनाम (सातवाँ), न्यूयार्क, अमरीका (आठवाँ) और अब नवें के
रूप में जोहान्सबर्ग, दक्षिण
अफ्रीका तक पहुँच गया है। दसवां अगर चेन्नई यानी मद्रास में हो तो शायद मुझे भी
दूर से देखने और सुनने या सुनकर आत्मसात करने का अवसर मिल सके। बात सिर्फ इतनी सी
है कि संसार में कहीं भी हिंदी को पहुँचने से कोई नहीं रोक सकता और यह प्रक्रिया
इतने सहज और आत्मविश्वास के साथ चल रही है कि हिंदी द्वारा ढोए जा रहे मेरे जैसे
लोगों को भी धोने-पुछने और चमकने का अवसर सुपर रिन की पूरी चमकार के साथ मिल जाता
है।
मेरा छोटा भाई लंदन में जाकर बस गया। वह हर हफ्ते लंदन घूम
जाने की गुहार लगाता है। मैंने भी 18-19 साल पहले पासपोर्ट बनवाने के लिए अनापत्ति
प्रमाण-पत्र पा लिया था मगर पासपोर्ट का फार्म न जाने कितनी बार आया और घिस-पिट कर
न जाने कहाँ गुम होता गया पर क्या मजाल है कि उसे भरकर पासपोर्ट दफ्तर तक पहुंचा
दिया जाए। अभी भी पत्नी ने 8 माह से पासपोर्ट के चार फॉर्म लाकर रखे हैं मगर न मैं उन्हें भर पाया हूँ न जमा कराने की सोच पाया हूँ। अब किसी
अनापत्ति प्रमाण-पत्र की भी जरूरत नहीं है फिर भी... शायद यहाँ भी बात हिंदी से ही
जुड़ी है... फॉर्म हिंदी में नहीं है...फॉर्म में हिंदी में भरने की अनुमति नहीं
है... पता नहीं हिंदी को जोहान्स्बर्ग ले जाने वालों में से कितनों ने पासपोर्ट और
वीज़ा के फॉर्म हिंदी में भी देखे होंगे, फॉर्म हिंदी में भरने की बात
में नहीं कर रहा हूँ। एक गुरु-मित्र ने कुछ दिन पहले पूछा था- विश्वहिंदी सम्मेलन
के लिए कार्यसूची यानी अजेंडा सुझाएं। मैं भला क्या सुझा पाता...
आज तो मैं बस यही कहूँगा कि जोहांसबर्ग से लौटकर सभी गणमान्य हिन्दी सेवी हिंदी के साथ हिंदुस्तान के कौने-कौने तक जाएँ, कम से कम अगले एक माह तक जहां भी अपना नाम लिखें, हिंदी में भी लिखें और मुझे भी अनुगृहीत करें पासपोर्ट और वीज़ा के फॉर्म हिंदी में भी भरे जाने का अवसर दिलवाकर ताकि मैं भी अंग्रेज़ी की हीन भावना से निकल कर एक भारतीय होने के भरपूर एहसास के साथ भविष्य में कभी चेन्नई में होने वाले किसी विश्व हिंदी सम्मेलन के ख्यालों के साथ इस जीवन की सार्थकता को पा सकूँ। तब तक जरा आप हिन्दी के साथ जोहांसबर्ग हो आइए।
आज तो मैं बस यही कहूँगा कि जोहांसबर्ग से लौटकर सभी गणमान्य हिन्दी सेवी हिंदी के साथ हिंदुस्तान के कौने-कौने तक जाएँ, कम से कम अगले एक माह तक जहां भी अपना नाम लिखें, हिंदी में भी लिखें और मुझे भी अनुगृहीत करें पासपोर्ट और वीज़ा के फॉर्म हिंदी में भी भरे जाने का अवसर दिलवाकर ताकि मैं भी अंग्रेज़ी की हीन भावना से निकल कर एक भारतीय होने के भरपूर एहसास के साथ भविष्य में कभी चेन्नई में होने वाले किसी विश्व हिंदी सम्मेलन के ख्यालों के साथ इस जीवन की सार्थकता को पा सकूँ। तब तक जरा आप हिन्दी के साथ जोहांसबर्ग हो आइए।
पिछली बार एक मित्र श्री शमशेर अहमद खान न्यूयार्क गए थे और इस बार वे जोहांसबर्ग
भी जरूर जाते।
पर वे दिवंगत हो गए ...
भगवान उनकी आत्मा को शांति दे।
पर वे दिवंगत हो गए ...
भगवान उनकी आत्मा को शांति दे।
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