Apr 24, 2012

जनाब वसीम बरेलवी जी की एक ग़ज़ल पेश है

अपने हर लफ़्ज़ का ख़ुद आईना हो जाऊँगा
उसको छोटा कह के मैं कैसे बड़ा हो जाऊँगा

तुम गिराने में लगे थे तुम ने सोचा भी नहीं
मैं गिरा तो मसअला बनकर खड़ा हो जाऊँगा

मुझ को चलने दो अकेला है अभी मेरा सफ़र
रास्ता रोका गया तो क़ाफ़िला हो जाऊँगा

सारी दुनिया की नज़र में है मेरी अह्द-ए-वफ़ा
इक तेरे कहने से क्या मैं बेवफ़ा हो जाऊँगा

-वसीम बरेलवी

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