(जनाब वसीम बरेलवी की एक ग़ज़ल कविताकोश से साभार)
उड़ान वालो उड़ानों पे वक़्त भारी है
परों की अब के नहीं हौसलों की बारी है
मैं क़तरा होके तूफानों से जंग लड़ता हूँ
मुझे बचाना समंदर की जिम्मेदारी है
कोई बताये ये उसके गुरूर-ए-बेजा को
वो जंग हमने लड़ी ही नहीं जो हारी है
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत
ये एक चराग़ कई आँधियों पे भारी है
परों की अब के नहीं हौसलों की बारी है
मैं क़तरा होके तूफानों से जंग लड़ता हूँ
मुझे बचाना समंदर की जिम्मेदारी है
कोई बताये ये उसके गुरूर-ए-बेजा को
वो जंग हमने लड़ी ही नहीं जो हारी है
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत
ये एक चराग़ कई आँधियों पे भारी है
-वसीम बरेलवी
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