यह इस वर्ष की अंतिम पोस्ट है। अपनी भाषाओं की चिंता करते हुए काफी घबराहट के साथ मैं भी कोलावरी डी' का आनंद ले रहा हूँ। लगातार यही विचार मन में आता है कि इस गाने में तमिल अथवा हिंदी के कितने शब्द हैं? वर्ष 1991 तथा 2001 की जनगणना के आँकड़ों के अनुसार हमारे देश में तमिल बोलने वालों का प्रतिशत 6.32 से घटकर 5.91 पर आ गया। वर्ष 2011 की जनगणना के पूरे आँकड़े अभी नहीं मिल पाए हैं। प्रश्न यही है कि हम कहाँ जा रहे हैं और क्यों जा रहे हैं? तमिल फिल्मों के सितारे और पूरा देश एक ऐसे गाने को तमिल का गाना मानकर वह-वाह कर रहे हैं जिसमें तमिल का शायद ही कोई शब्द है। तमिल का लहजा ज़रूर मौजूद कहा जा सकता है। इस गीत की धुन में नयापन है, पकड़ है, माधुर्य है मगर अपनी कोई भी भाषा या उसका कोई शब्द ... शायद नहीं है। आने वाले नए वर्ष 2012 में इस बारे में चिंतन जरूर किया जाना चाहिए कि क्या ऐसे गानों से हम जाने-अंजाने अपनी भाषाओं को तो भुलाने के दुष्चक्र में नहीं फँसते जा रहे हैं। मुझे ऐसी एक भी आवाज़ सुनाई नहीं पड़ी, जिसमें इस गाने की भाषा पर चिंता व्यक्त की गई हो। हो सकता है कुछ लोग सहमत न हों परंतु यह मेरा व्यक्तिगत विचार है कि तमिल भाषा का विकास, हिंदी के विकास के लिए सर्वाधिक जरूरी है। तमिल को मजबूत बनाने से हिंदी भी स्वत: मजबूत होती है क्योंकि इससे अंग्रेज़ी की गति में ठहराव आता है।
नव वर्ष 2012 की शुभकामनाओं के साथ, मैं एक हिंदी भाषी भारतीय, अपनी सभी भाषाओं के उत्तरोत्तर विकास की कामना करते हुए आग्रह करना चाहता हूँ कि कोलावरी डी' पर आप भी सोचिए... संगीत को सहज स्वीकारिये मगर अपनी भाषाओं के सुर, लय, ताल को ताक पर मत रखिए।
नववर्ष 2012 हमारी सभी भाषाओं के लिए भी शुभ हो।
-अजय मलिक