Jun 25, 2011

कितने शहरों तक गाँव चले

किसी गीत की छांव तले
कितने शहरों तक गाँव चले

सब छूट गए पीपल पीछे
जब हाँफे-हारे पाँव चले

पनघट पनचक्की पतनाले
सब खेत गए लालावाले

न पछुवा चली न पुरवाई
झूले से रूठी अंगड़ाई

ओसारे का छप्पर छूटा
घर लुटा द्वार टूटा फूटा

बाबा की वह टूटी खटिया
जाने किसने लूटी बछिया

जिसने जो देखा छीन लिया
टूटा-फूटा तक बीन लिया

सब बदल गए इंसान भले
कितने शहरों तक गाँव चले

-अजय मलिक (c)

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