(१)
अजनबी देश है यह, जी यहाँ घबराता है
कोई आता है यहाँ पर न कोई जाता है
जागिए तो यहाँ मिलती नहीं आहट कोई,
नींद में जैसे कोई लौट-लौट जाता है
होश अपने का भी रहता नहीं मुझे जिस वक्त
द्वार मेरा कोई उस वक्त खटखटाता है
शोर उठता है कहीं दूर क़ाफिलों का-सा
कोई सहमी हुई आवाज़ में बुलाता है
देखिए तो वही बहकी हुई हवाएँ हैं,
फिर वही रात है, फिर-फिर वही सन्नाटा है
हम कहीं और चले जाते हैं अपनी धुन में
रास्ता है कि कहीं और चला जाता है
दिल को नासेह की ज़रूरत है न चारागर की
आप ही रोता है औ आप ही समझाता है ।
तो होते कहां दिल लगाने के क़ाबिल !
वो वादा तुम्हारा , भरोसा हमारा ,
लगे कब हमें टूट जाने के क़ाबिल !
बसी है जो आंखों में तस्वीर तेरी ,
नहीं आंसुयों से मिटाने के क़ाबिल !
अँधेरे जुदाई के कुछ कम तो होते ,
जो होते तेरे ख़त जलाने के क़ाबिल !
मुहब्बत की शायद हक़ीक़त यही है ,
कि शै है ये सपने सजाने के क़ाबिल !
सनम मुझ को मंज़ूर मरना ख़ुशी से ,
बने मौत लेकिन फ़साने के क़ाबिल !
-मधुभूषण शर्मा 'मधुर'
अजनबी देश है यह, जी यहाँ घबराता है
कोई आता है यहाँ पर न कोई जाता है
जागिए तो यहाँ मिलती नहीं आहट कोई,
नींद में जैसे कोई लौट-लौट जाता है
होश अपने का भी रहता नहीं मुझे जिस वक्त
द्वार मेरा कोई उस वक्त खटखटाता है
शोर उठता है कहीं दूर क़ाफिलों का-सा
कोई सहमी हुई आवाज़ में बुलाता है
देखिए तो वही बहकी हुई हवाएँ हैं,
फिर वही रात है, फिर-फिर वही सन्नाटा है
हम कहीं और चले जाते हैं अपनी धुन में
रास्ता है कि कहीं और चला जाता है
दिल को नासेह की ज़रूरत है न चारागर की
आप ही रोता है औ आप ही समझाता है ।
-सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
(२)
अगर आप होते भुलाने के क़ाबिल,तो होते कहां दिल लगाने के क़ाबिल !
वो वादा तुम्हारा , भरोसा हमारा ,
लगे कब हमें टूट जाने के क़ाबिल !
बसी है जो आंखों में तस्वीर तेरी ,
नहीं आंसुयों से मिटाने के क़ाबिल !
अँधेरे जुदाई के कुछ कम तो होते ,
जो होते तेरे ख़त जलाने के क़ाबिल !
मुहब्बत की शायद हक़ीक़त यही है ,
कि शै है ये सपने सजाने के क़ाबिल !
सनम मुझ को मंज़ूर मरना ख़ुशी से ,
बने मौत लेकिन फ़साने के क़ाबिल !
-मधुभूषण शर्मा 'मधुर'
(कविता कोश के सौजन्य से)
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