[ मित्रो,
"हिंदी सबके लिए" को कल चार वर्ष हो गए। अपनी भाषाओं के लिए हम बस हाथ-पैर मारने की कोशिश करने का बहाना सा करते रहे। यदि कुछ कर पाते तो मन में संतोष होता, नहीं कर पाए तो निराशा न भी सही मन उदासी से छलक-छलक जा रहा है। इस जुलाई में कुछ भी नहीं लिखा जा सका। बस जिस एक भारतीय इंसान के बारे में सोचता रहा उसी से इस पांचवें वर्ष की शुरुआत करना चाहता हूँ। मैं सोचता रहा कि "हम भारत के लोग" जिनके लिए विधान यानी हमारा संविधान बना क्या उनमें श्याम रुद्र पाठक नाम का विशुद्ध भारतीय इंसान शामिल नहीं है? मेरे पास कोई जवाब नहीं है। कई बार मन में यह विचार आया कि मुझे भी श्याम रुद्र पाठक होना चाहिए मगर इतनी हिम्मत, इतनी समझ, इतना धैर्य, इतनी शक्ति मुझमें नहीं है। कई बार नौकरी छोड़कर श्यामरुद्र पाठक के साथ जाकर खड़े होने का मन भी हुआ ...
श्यामरुद्र पाठक से मिले शायद दो दशक बीत गए... फेसबुक पर वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव ने श्यामरुद्र पाठक के बारे में बहुत सारी जानकारी और बहुत सारे चित्र दिए हैं। हिंदी सबके लिए के मित्रों तक पहुंचाने के उद्देश्य से उपर्युक्त समस्त सामग्री यहाँ साभार दी जा रही है।]
चित्र क्रमश: 1. अदालत में दंडाधिकारी के सामने अपने वकीलों के साथ अपनी बात रखते पाठक जी। 2.
लगभग 250 दिनों बाद मिले पति से बतियातीं मंजू जी। 3. श्यामरुद्र पाठक जी
(सभी चित्र राहुल देव जी के फेसबुक पृष्ठ से साभार )
सौ करोड़ से ज्यादा भारतीयों के अपनी भाषा में न्याय पाने, होते देखने, उस प्रक्रिया में शामिल होने और उससे अवगत होने के बुनियादी अधिकार के लिए ऐतिहासिक और अभूतपूर्व लड़ाई लड़ने वाले श्यामरूद्र पाठक को गलत, झूठे, मनगढंत आरोप लगा कर तिहाड़ जेल में भेजे जाने, वहां सामान्य अपराधियों के साथ रखकर शारीरिक और मानसिक यंत्रणा दिए जाने, फिर एक सप्ताह के बाद परसों 24 जुलाई को पहली बार अदालत में पेश किए जाने तक के समय में सारी भाषाओं तो क्या हिन्दी के अधिकांश अखबारों, चैनलों, लेखकों, विद्वानों, दुकानदारों, मठाधीशों को उनकी सुध लेने की जरूरत़ महसूस नहीं हुई।
जिस दिल्ली में रोज कम से कम आधा दर्जन साहित्यिक गोष्ठियां, कविता-कहानी पाठ, लोकार्पण, सम्मान आदि के कार्यक्रम अकेली हिन्दी में ही होते हैं, दर्जनों सरकारी-गैरसरकारी हिन्दी और अन्य भाषाओं की अकादमियां, संस्थाएं हैं, हजारों लेखक हैं, एक करोड़ से ज्यादा भारतीय भाषाभाषी हैं, चंद हजार हिन्दी शिक्षक हैं, छात्र हैं - उसमें उसका हाल पूछने, उसका साथ देने, उसकी गैरकानूनी गिरफ्तारी का विरोध करने मुश्किल से डेढ़ सौ लोग रहे।
सौ करोड़ से ज्यादा भारतीयों के अपनी भाषा में न्याय पाने, होते देखने, उस प्रक्रिया में शामिल होने और उससे अवगत होने के बुनियादी अधिकार के लिए ऐतिहासिक और अभूतपूर्व लड़ाई लड़ने वाले श्यामरूद्र पाठक को गलत, झूठे, मनगढंत आरोप लगा कर तिहाड़ जेल में भेजे जाने, वहां सामान्य अपराधियों के साथ रखकर शारीरिक और मानसिक यंत्रणा दिए जाने, फिर एक सप्ताह के बाद परसों 24 जुलाई को पहली बार अदालत में पेश किए जाने तक के समय में सारी भाषाओं तो क्या हिन्दी के अधिकांश अखबारों, चैनलों, लेखकों, विद्वानों, दुकानदारों, मठाधीशों को उनकी सुध लेने की जरूरत़ महसूस नहीं हुई।
जिस दिल्ली में रोज कम से कम आधा दर्जन साहित्यिक गोष्ठियां, कविता-कहानी पाठ, लोकार्पण, सम्मान आदि के कार्यक्रम अकेली हिन्दी में ही होते हैं, दर्जनों सरकारी-गैरसरकारी हिन्दी और अन्य भाषाओं की अकादमियां, संस्थाएं हैं, हजारों लेखक हैं, एक करोड़ से ज्यादा भारतीय भाषाभाषी हैं, चंद हजार हिन्दी शिक्षक हैं, छात्र हैं - उसमें उसका हाल पूछने, उसका साथ देने, उसकी गैरकानूनी गिरफ्तारी का विरोध करने मुश्किल से डेढ़ सौ लोग रहे।