Jul 5, 2013

गिराऊ संगठन जिंदाबाद...

वह चलते-चलते अचानक गिर पड़ा था। कुछ चक्कर सा आया था और फिर जो समझ में आया वह अस्पताल के सघन चिकित्सा कक्ष में आक्सीज़न मास्क का खुरदरापन भर था। दो दिन पहले ही डाक्टर ने उसे चेताया था कि लगातार तनाव में रहने के कारण उसके दिमाग की नसें कमजोर हो चली हैं और उसे लंबे अवकाश और नियमित इलाज़ की जरूरत है। सघन चिकित्सा कक्ष के वातानुकूलित और जीवाणुरहित माहौल में अभी वह सही से साँसे संभालने की कोशिश कर ही रहा था कि दरवाजा हल्का सा खुला और उससे बाहर मच रहा हंगामा उसके कानों में झनझनाने लगा।

बाहर हंगामा करने वालों की चिल्लाहट में उनकी बेबसी और छटपटाहट साफ झलक रही थी। उनका कहना था – “ आखिर ये गिर कैसे सकता है ये ही क्यों गिरा ? हम क्यों नहीं गिरे? यह आदमी गिरने में भी हमसे बाजी मार लेना चाहता है। ये हो ही नहीं सकता कि यह हमसे अधिक गिर जाए। हम सदाबहार गिराकु हैं। हम इस हद तक गिरे हुए हैं कि हमने और अधिक नीचे गिरने के लिए गहराई नाम की चीज़ ही नहीं छोड़ी है। हम पैदायशी गिरे हुए हैं और जन्म से आज तक लगातार गिरते आ रहे हैं। गिरने का ऐसा कोई दाव-पेंच नहीं है जिसका वृहद ज्ञान और अभ्यास हमें न हो। गिरने की किसी भी प्रतियोगिता में आज तक हमसे अधिक गिर कर हमें कोई नहीं हरा सका है। गिरने में हमने सबको हजारों मील पीछे छोड़ा है। फिर भी हमें कभी किसी ने आक्सीजन नहीं दिलवाई, हमें कोई अस्पताल नहीं लाया। एक ये है कि साला चुपके से हमारे गिराऊ और गिरावट भरे क्षेत्र पर भी कब्जा जमा लेना चाहता है। हमने इसकी हर बात बर्दाश्त की है। हमने इसे गिराने की भी हर संभव कोशिश की पर यह नहीं गिरा। हमने लगड़ी, टँगड़ी सब लगाई पर ये चिकना घड़ा नहीं गिरा। और आज चुपचाप गिर गया। गिरना था तो हमारे गिराने से गिरता, हमारे तरीके और सलीके से गिरता... मगर नहीं जनाब, हमें बताना या गिरने में हमसे मदद मांगना तो दूर, दुष्ट ने किसी को कानों-कान खबर तक नहीं होने दी, चुपके से गिर गया। इसे हर काम अपने आप करना है, ये हमें नीचा दिखाना चाहता है। ... पर गिरने के मामले में हम अपने संगठन का नाम बदनाम करने की किसी भी जानी-अनजानी कोशिश को कामयाब नहीं होने देंगे। इसे वातानुकूलित गहन चिकित्सा कक्ष से बाहर निकलवाकर ही दम लेंगे। एक बार बाहर आ जाए तो इसे बताएं कि गिरने वाले कैसे और क्या होते हैं”।
गिरा हुआ आदमी मुर्दाबाद...
गिराऊ संगठन... जिंदाबाद
गिराऊ एकता... ज़िन्दाबाद 
चुप-चुप गिरना
नहीं चलेगा... नहीं चलेगा...
हमारी गिरावट अमर रहे...अमर रहे 
गिरावट को चुनौती
नहीं चलेगी... नहीं चलेगी... नहीं चलेगी
इसके बाद तेज़ होते हुए नारों के शोर में उसकी चेतना धूमिल हो गई।  
   

-अजय मलिक (c)

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