Feb 25, 2012

Ace अनुवादक के बाद अनुवादकों के अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न

अब आपसे क्या छुपाना , इस पोस्ट के बाद बहुत सारे मित्र कोसेंगे मगर क्या करूँ बात ही कुछ ऐसी है कि चुप रह ही नहीं सकता। आज कई घंटों से Ace अनुवादक सॉफ्टवेयर के परीक्षण संस्करण पर लगा हूँ और इस छोटे से सॉफ्टवेयर का कायल सा हो गया हूँ।  इसका आकार मात्र 2.09 एम बी है और जनाब काम ऐसा कि अनुवादकों की नौकरी पर प्रश्न चिह्न लगा जाए । मैं जानता हूँ इसके बाद अनुवाद करनेवाले, अनुवाद सिखाने वाले और अनुवाद का व्यापार चलाने वाले मुझे नहीं छोड़ेंगे...
आज मुझे कई तरह के शकों ने भी घेर लिया है... आखिर क्या वजह है कि मंत्र राजभाषा अपनी पूर्णता यानी पर्फ़ेक्सन तक नहीं पहुँच पाया... क्या यह 80-90 प्रतिशत पर्फ़ेक्सन नहीं पा सकता था? यह इन्स्टालेशन  की जटिलताओं में क्यों घिर कर रह गया? गूगल ट्रांसलेट क्यों तेजी से बढ़ा...
बहरहाल एक वरिष्ठ एवं अनुभवी अधिकारी से आज मिलने का सौभाग्य मिला और उन्होंने जो बताया, उस पर एक बार तो यकीन ही नहीं आया...
उन्होंने कहा -पीडीएफ तक का अनुवाद कर देता है...
हालांकि AceTranslator के परीक्षण संस्करण से पीडीएफ का अनुवाद तो संभव नहीं हो सका मगर जनाब हिंदी से अङ्ग्रेज़ी, अँग्रेजीसे हिंदी, हिंदी से तमिल, कन्नड़, तेलुगू, बांग्ला, गुजराती भाषाओं और इन भाषाओं से हिंदी, अँग्रेजी और विश्व की अन्य अनेक भाषाओं में जो अनुवाद इस सॉफ्टवेयर ने किया वह बस थोड़ा सा ही सुधार चाहता है। कहना तो यही चाहता हूँ कि अब तक जितने अनुवाद सॉफ्टवेयर देखे या आजमाए उनमें सबसे बेहतरीन मैंने AceTranslator को पाया...
लिंक नीचे दे रहा हूँ जो भी चाहे, डाउन लोड कर आजमाए-


  
-अजय मलिक

Feb 23, 2012

केंद्रीय हिंदी प्रशिक्षण संस्थान/ केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो / क्षेत्रीय कार्यान्वयन कार्यालय में कार्यरत अधिकारियों/कर्मचारियों की स्थानतारण नीति (15-02-2012)



इक बार कहो तुम मेरी हो - इब्ने इंशा


इक बार कहो तुम मेरी हो  

-इब्ने इंशा

हम घूम चुके बस्ती-बन में
इक आस का फाँस लिए मन में
कोई साजन हो, कोई प्यारा हो
कोई दीपक हो, कोई तारा हो
जब जीवन-रात अंधेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो

जब सावन-बादल छाए हों
जब फागुन फूल खिलाए हों
जब चंदा रूप लुटाता हो
जब सूरज धूप नहाता हो
या शाम ने बस्ती घेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो

हाँ दिल का दामन फैला है
क्यों गोरी का दिल मैला है
हम कब तक पीत के धोखे में
तुम कब तक दूर झरोखे में
कब दीद से दिल की सेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो

क्या झगड़ा सूद-ख़सारे का
ये काज नहीं बंजारे का
सब सोना रूपा ले जाए
सब दुनिया, दुनिया ले जाए
तुम एक मुझे बहुतेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो


दीद=दर्शन; सेरी=तॄप्ति; सूद-ख़सारे=लाभ-हानि

(कविताकोश के सौजन्य से)

नर हो, न निराश करो मन को - मैथिलीशरण गुप्त


मेरे  बहुत  सारे  मित्र  निराश, उदास, बदहवास से लग रहे हैं. उन सब के लिए  मैथिलीशरण गुप्त जी की बचपन में पढ़ी यह कविता प्रस्तुत है -  


नर हो, न निराश करो मन को

कुछ काम करो, कुछ काम करो
जग में रह कर कुछ नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो, न निराश करो मन को


संभलों कि सुयोग न जाय चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलंबन को
नर हो,
न निराश करो मन को

जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ
फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो
उठके अमरत्व विधान करो
दवरूप रहो भव कानन को
नर हो न निराश करो मन को


निज़ गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे
मरणोंत्‍तर गुंजित गान रहे
सब जाय अभी पर मान रहे
कुछ हो न तज़ो निज साधन को
नर हो, न निराश करो मन को


प्रभु ने तुमको दान किए
सब वांछित वस्तु विधान किए
तुम प्राप्‍त करो उनको न अहो
फिर है यह किसका दोष कहो
समझो न अलभ्य किसी धन को
नर हो, न निराश करो मन को


किस गौरव के तुम योग्य नहीं
कब कौन तुम्हें सुख भोग्य नहीं
जान हो तुम भी जगदीश्वर के
सब है जिसके अपने घर के
फिर दुर्लभ क्या उसके जन को
नर हो, न निराश करो मन को


करके विधि वाद न खेद करो
निज़ लक्ष्य निरन्तर भेद करो
बनता बस उद्‌यम ही विधि है
मिलती जिससे सुख की निधि है
समझो धिक् निष्क्रिय जीवन को
नर हो, न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो 



(कविताकोश के सौजन्य से )

Feb 4, 2012

दिल्लीवालों की लू उतार दी आशा भोंसले व तीजन बाई ने

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
ये दोनों देवियाँ 'लिम्का बुक ऑफ रेकार्ड' के कार्यक्रम में दिल्ली आई थीं. संगीत संबंधी यह कार्यक्रम पूरी तरह अंग्रेजी में चल रहा था. यह कोई अपवाद नहीं था. आजकल दिल्ली में कोई भी कार्यक्रम यदि किसी पांच-सितारा होटल या इंडिया इंटरनेशनल सेंटर जैसी जगहों पर होता है तो वहां हिंदी या किसी अन्य भारतीय भाषा के इस्तेमाल का प्रश्न ही नहीं उठता. इस कार्यक्रम में भी सभी वक्तागण एक के बाद एक अंग्रेजी झाड़ रहे थे. मंच संचालक भी अंग्रेजी बोल रहा था.
जब तीजनबाई के बोलने की बारी आई तो उन्होंने कहा कि यहां का माहौल देखकर मैं तो डर गई हूं
आप लोग क्या-क्या बोलते रहे, मेरे पल्ले कुछ नहीं पड़ा. मैं तो अंग्रेजी बिल्कुल भी नहीं जानती
तीजनबाई को सम्मानित करने के लिए बुलाया गया था लेकिन जो कुछ वहां हो रहा था, वह उनका अपमान ही था लेकिन श्रोताओं में से कोई भी उठकर कुछ नहीं बोला. तीजनबाई के बोलने के बावजूद कार्यक्रम बड़ी बेशर्मी से अंग्रेजी में ही चलता रहा. इस पर आशा भोंसले झल्ला गईं.

उन्होंने कहा कि मुझे पहली बार पता चला कि दिल्ली में सिर्फ अंग्रेजी बोली जाती है.  लोग अपनी भाषाओं में बात करने में भी शर्म महसूस करते हैं. उन्होंने कहा मैं अभी लंदन से ही लौटी हूं. वहां लोग अंग्रेजी में बोले तो बात समझ में आती है लेकिन दिल्ली का यह माजरा देखकर मैं दंग हूं.
उन्होंने श्रोताओं से फिर पूछा कि आप हिंदी नहीं बोलते, यह ठीक है लेकिन आशा है, मैं जो बोल रही हूं, उसे समझते तो होंगे? दिल्लीवालों पर इससे बड़ी लानत क्या मारी जा सकती थी?

इसके बावजूद जब मंच-संचालक ने अंग्रेजी में ही आशाजी से आग्रह किया कि वे कोई गीत सुनाएँ तो उन्होंने क्या करारा तमाचा जमाया? उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम कोका कोला कंपनी ने आयोजित किया है. आपकी ही कंपनी की कोक मैंने अभी-अभी पी है. मेरा गला खराब हो गया है,
मैं गा नहीं सकती.

क्या हमारे देश के नकलची और गुलाम बुद्घिजीवी आशा भोंसले और तीजनबाई से कोई सबक लेंगे? ये वे लोग हैं, जो मौलिक है और प्रथम श्रेणी के हैं जबकि सड़ी-गली अंग्रेजी झाड़नेवाले हमारे तथाकथित बुद्घिजीवियों को पश्चिमी समाज नकलची और दोयम दर्जे का मानता है. वह उन्हें नोबेल और बुकर आदि पुरस्कार इसलिए भी दे देता है कि वे अपने-अपने देशों में अंग्रेजी के सांस्कृतिक साम्राज्यवाद के मुखर चौकीदार की भूमिका निभाते रहें. उनकी जड़ें अपनी जमीन में नीचे नहीं होतीं, ऊपर होती हैं. वे चमगादड़ों की तरह सिर के बल उल्टे लटके होते हैं. आशा भोंसले ने दिल्लीवालों के बहाने उन्हीं की खबर ली है.

(दा भास्कर' से साभार  )