अशिष्ट जी की कहानी का पात्र निरोगीलाल हिन्दी के प्यार में सब कुछ भूल गया। यहाँ तक कि अकबरे आजम को भी जो अनारकली के दुश्मन तो नहीं मगर अपने अँग्रेजी उसूलों के गुलाम अवश्य थे। अब गुलाम तो गुलाम ठहरा वह चाहे उसूलों का ही क्यों न हो।
बड़ी बेचैनी के साथ ही सही, निरोगीलाल की हिन्दी के प्रति बेपनाह मुहब्बत को सबने कबूला और सर्वश्रेष्ठ हिन्दी अधिकारी का प्रमाण-पत्र देकर उन्हें सम्मानित भी किया मगर तरक्की के मामले में उन्हे हिन्दी के प्यार में आकंठ डूबे हुए सलीम को बागी का दर्जा देते हुए ज़िंदा दीवार में दफन करने के लिए दरोगा जिंदान को सौंप दिया गया। उनसे कनिष्ठ कई लोगों को जो अनारकली और सलीम की प्यार की पींगों से परेशान रहते थे, तोफ़ा-ए-तरक्की मिली।
No comments:
Post a Comment