Jun 15, 2010

भूतनाथ का भूत

अगर मुझे सही से याद है तो देवकी नंदन खत्री जी के विश्व प्रसिद्द उपन्यास चन्द्रकान्ता संतति में भूतनाथ नाम का पात्र सम्पूर्ण उपन्यास में हर जगह नज़र आता है और अंत तक वह संसार के सबसे दुष्ट खलनायक की तरह पाठक की नफ़रत का पात्र बना रहता है। अंत में जब भेद खुलता है तो पता चलता है कि वह तो हर कदम पर सबकी मदद करने की कोशिश करता था मगर उसकी नियति ही कुछ ऐसी थी कि बेदाग़ चरित्र होते हुए भी परिस्थितियां उसी को हर कदम पर संदेह के घेरे में लाकर खड़ा कर देती थीं। अंत में वह पाठक की सहानुभूति तो पाता है मगर ऐसी सहानुभूति का क्या किया जाए जो किसी भले आदमी का जीना मुहाल करने के बाद मिले। यह कहानी सिर्फ काल्पनिक भूतनाथ की ही नहीं है आपको ऐसे अनेक लोग मिल जाएंगे जो नेकी कर और कुँए में डाल के चक्कर में खुद गटर में गिरकर बरबाद हो जाते हैं। वे जितना सच के करीब होते हैं उतने ही झूठ से सराबोर साबित कर दिए जाते हैं। जब तक उनकी सही पहचान लोगों की समझ में आती है तब तक न वे बचते हैं न ही गटर में और जगह बचती है। कुछ लोग जो किसी खुली किताब की तरह होते हैं उन्हें लोग बेहद संदेह की दृष्टि से देखते हैं। जो गुरु घंटाल होते हैं, वे विश्वसनीय माने जाते हैं, जब तक कि चिड़िया खेत पूरी तरह न चुग जाए तब तक उनकी तूती बोलती है और उसके बाद जब खेत खुद ही खाली हो गया तो वह किसी का करेगा भी तो क्या?
दुनिया चलती ही शायद इसी तरह है या फिर प्रकृति ही लोगों को किसी न किसी बहाने चलाती-घुमाती रहती है। कोई भूखा मरता है तो कोई अपच के कारण भूखा रहता है। कोई ज्यादा खाने से बीमार है तो कोई खाने के बहाने से परेशान है, कोई खाने वाले के खाने से अपना हाजमा बिगाड़े बैठा है तो कोई इसी से आहत है कि कोई उसके खाने पर नज़रे जमाए है। हर एक का अपना तर्क है और हर एक की अपनी नज़र में वह तर्क ही सबसे बड़ा सत्य है। सार्वभौमिक सत्य तो शायद यही है कि सत्य से भागते रहिए जब तक बन पड़े... जैसे बन पड़े... सत्य को देखने मत दीजिए और भूतनाथ भगवान शिव को भी कहा जाता है इसे लोगों को जानने -समझने से वंचित रखने के लिए जैसे भी बन पड़े भूतनाथ को सदैव भूत बनाए रखिए। भूत के भय से वर्तमान को भयानक... और भयानक यानी भयानकतर बनाकर अपनी पवित्रता का परचम फहराते रहिए।
-अजय

No comments:

Post a Comment