May 2, 2010

दुःख सबको माँजता है ...

मुझे यह स्वीकारने में कोई संकोच नहीं कि अज्ञेय जी के हिंदी साहित्य से मैं सर्वाधिक प्रभावित रहा हूँ । चाहे उनके उपन्यास -'शेखर एक जीवनी, नदी के द्वीप, अपने-अपने अजनबी' हों या उनका 'अरे यायावर रहेगा याद...या फिर उनका काव्य हर छोटी-बड़ी कविता...सांप...चिड़िया...दूरवासी मीत मेरे... तुझ में सामर्थ्य रहे....पूछ लूँ मैं नाम तेरा...' उनकी कहानियां आदि-इत्यादि...उनकी जीवन शैली, चिंतन, व्यवहार...उनकी हर बात ने मुझे प्रभावित किया ...
इतना सब कुछ होते हुए भी मेरे व्यक्तित्व में उनके जैसा कुछ भी नहीं है। न मुझमें उनके जैसी परिपक्वता है, न जुझारूपन, न कवि मन , न चिंतन में वह गहराई, न लेखन... न कुछ और ...
शायद उनके उपन्यास में उद्धृत ये पंक्तियाँ '... दुःख सबको माँजता है..और जिनको माँजता है उन्हें यह सीख भी देता है कि औरों को मुक्त रखें...' इस बात का का जवाब हो सकती हैं कि क्यों उनसे हर तरह से प्रभावित होने के बावजूद भी कोई उनके विराट व्यक्तित्व का अनुकरण करने से मुक्त रहता है...!!

1 comment:

  1. मुझे आ0 अज्ञेय जी का तीन दिनी सानिध्य 1984 मे रस व्युत्पत्ति विषयक सेमिनार मे प्राप्त हुआ ।
    अप्रतिम । शव्दो से परे । आपका कथ्य प्रशंसनीय ।

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