Sep 18, 2020

बरसों पहले

बरसों पहले 

जाने कब ये 

चुपके से आया?

जाने कैसे ये 

बंद पलकों से घुसा 

और पुतलियों में 

छुपकर बस गया !

दिखता है, मगर 

पकड़ नहीं आता । 

आँसू बह बह कर

हलकान हो चुके हैं,

पलकों के सब पेंच 

बेजान हो चुके हैं ।

आँखें, न खुलती हैं 

न बंद हो पाती हैं!

कैसे आँखों से

निकालूँ इसको ?

जीने की तमन्ना 

और जद्दोजहद 

अभी बाकी है । 

-अजय मलिक 




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