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Sep 15, 2019
Sep 12, 2019
हिन्दी दिवस, 2019 के अवसर पर जारी भारत के माननीय गृह मंत्री श्री अमित शाह जी का संदेश
Posted by:AM/PM
हिंदी सबके लिए : प्रतिभा मलिक (Hindi for All by Prathibha Malik)
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9/12/2019 05:26:00 PM
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Aug 29, 2019
मित्रों की मांग पर "राजभाषा अधिनियम 1963 मूल रूप में "
Posted by:AM/PM
हिंदी सबके लिए : प्रतिभा मलिक (Hindi for All by Prathibha Malik)
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8/29/2019 08:31:00 PM
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Aug 26, 2019
हारा नहीं...हारने वालो...और कभी न...मैं हारूँगा...तुम हारोगे।
हारा नहीं
हारने वालो
और कभी न
मैं हारूँगा
तुम हारोगे
घर में घुसकर
ग़द्दारों को
फिर मारूँगा
बस थोड़ा सा
थका हुआ हूँ
भारत भर में
जल नभ थल में
जन जन के
दिल ओ दिमाग़ में
हर सीने के
हर इक राग में
पलकों तक में
बसा हुआ हूँ
शांत नही, बस
चुप बैठा हूँ
बिके हुए
कायर गुर्गों से
लेशमात्र
आक्रांत नहीं हूँ
शांत नहीं हूँ
पल भर का
विश्राम मात्र है
फिर मेरी
हुंकार देखना
दुष्टों का
संहार देखना
गला फाड़ कर
और चार दिन
चोर चोर का
शोर मचा लो
हो हा कर लो
हंस लो गा लो
खा लो पी लो
और चार दिन
बाँग लगालो
बरसाती मेंढक
की मानिंद
टर टर कर लो
फिर शिवाजी
संग्राम देखना
राणा की
तलवार देखना
नहीं मात्र नर
मैं नरेंद्र हूँ
दामोदर हूँ
माँ भारती का
मैं चाकर
मैं सुरेंद्र हूँ
मैं योगी हूँ
लाल कृष्ण हूँ
सदा अटल हूँ
गोलवलकर हूँ
मैं सावरकर
भगत सिंह हूँ
सुखदेव हूँ
मैं बिस्मिल हूँ
गंगा माँ का
राजदुलारा
भारत के
जन जन का
प्यारा, कभी न हारा
मैं शतरंज का
बादशाह हूँ
तुम प्यादों को
पता नहीं है
मैं पटेल हूँ
निर्विवाद हूँ
आज़ाद हूँ
जयहिंद का
मैं सुभाष हूँ
तुम लोदी के
वंशज भर हो
जन जन
दुख की
गाज गिराती
एक ढीली सी
गठरी भर हो
भेड़ चाल हो
बकरी भर हो
सच को समझो
पहचान लो
‘पाक’ साफ़ है
यह जान लो
आज इसी पल
हार मान लो
भारत माँ के
चरणों में नत
मैं बोधी हूँ
सपने में भी
भूल न जाना
मैं ...दी हूँ
-अजय
19/05/2019
प्रात: 10.30
हारने वालो
और कभी न
मैं हारूँगा
तुम हारोगे
घर में घुसकर
ग़द्दारों को
फिर मारूँगा
बस थोड़ा सा
थका हुआ हूँ
भारत भर में
जल नभ थल में
जन जन के
दिल ओ दिमाग़ में
हर सीने के
हर इक राग में
पलकों तक में
बसा हुआ हूँ
शांत नही, बस
चुप बैठा हूँ
बिके हुए
कायर गुर्गों से
लेशमात्र
आक्रांत नहीं हूँ
शांत नहीं हूँ
पल भर का
विश्राम मात्र है
फिर मेरी
हुंकार देखना
दुष्टों का
संहार देखना
गला फाड़ कर
और चार दिन
चोर चोर का
शोर मचा लो
हो हा कर लो
हंस लो गा लो
खा लो पी लो
और चार दिन
बाँग लगालो
बरसाती मेंढक
की मानिंद
टर टर कर लो
फिर शिवाजी
संग्राम देखना
राणा की
तलवार देखना
नहीं मात्र नर
मैं नरेंद्र हूँ
दामोदर हूँ
माँ भारती का
मैं चाकर
मैं सुरेंद्र हूँ
मैं योगी हूँ
लाल कृष्ण हूँ
सदा अटल हूँ
गोलवलकर हूँ
मैं सावरकर
भगत सिंह हूँ
सुखदेव हूँ
मैं बिस्मिल हूँ
गंगा माँ का
राजदुलारा
भारत के
जन जन का
प्यारा, कभी न हारा
मैं शतरंज का
बादशाह हूँ
तुम प्यादों को
पता नहीं है
मैं पटेल हूँ
निर्विवाद हूँ
आज़ाद हूँ
जयहिंद का
मैं सुभाष हूँ
तुम लोदी के
वंशज भर हो
जन जन
दुख की
गाज गिराती
एक ढीली सी
गठरी भर हो
भेड़ चाल हो
बकरी भर हो
सच को समझो
पहचान लो
‘पाक’ साफ़ है
यह जान लो
आज इसी पल
हार मान लो
भारत माँ के
चरणों में नत
मैं बोधी हूँ
सपने में भी
भूल न जाना
मैं ...दी हूँ
-अजय
19/05/2019
प्रात: 10.30
Posted by:AM/PM
हिंदी सबके लिए : प्रतिभा मलिक (Hindi for All by Prathibha Malik)
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8/26/2019 08:48:00 AM
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बुरे या बुरे से लगते लोग ...कैसे अच्छे लोगों तक पहुँचने का मार्ग प्रशस्त कर देते हैं ...
एक और लंबे अंतराल के बाद ...किसी दूसरे और भी अधिक लंबे अंतराल के लिए । क्या लिखूँ ... यादें , जिनकी कोई थाह ही नहीं है! जीवन के 58 साल ... लगते जरूर हैं कि यूं ही बीत गए ... सच तो बिलकुल ही अलग है, यूं ही बीतते लगते हुए भी काफी लंबे-लंबे दिनों, बड़ी-बड़ी घुप अंधेरी रातों के साथ बीते। अभी भी सब कुछ सरल नहीं है, पर अब आदत पड़ गई है। ...खुद को व्यस्त रखना और समय को गुजार देना याकि समय का अपने सतत प्रवाह के साथ खुद ही गुजर जाना !
लोगों के कितने रूप...अपने आप से शायद वे भी तो सवाल करते होंगे ! शायद जीने के लिए एक दूसरे से बेपरवाह होकर निज स्वार्थ तक सीमित हो जाना ही दुनिया का चलन होगा ! जिन्हें हम मित्र मानते हैं, वे हमें कितना और क्या मानते हैं, ये सोचने की आवश्यकता ही क्यूँ होनी चाहिए भला !
अपने कर्तव्य का ...नौकरी से जुड़े हुए याकि एक नागरिक के नाते या फिर सिर्फ एक इंसान ...आदमी के नाते, अपनी आत्मा या विवेक के सहारे जिसमें दूसरे के अहित से बचने का भाव शामिल हो, मन मलिन महसूस न करे.... पूरी निष्ठा के साथ निर्वाह करते जाना और जीवन जी लेना, इतना कुछ कम तो नहीं !
जीवन के बाद क्या है? कुछ है भी कि नहीं? हो भी तो क्या? इस सब का कोई अर्थ कहीं नज़र नहीं आता। बड़ा अजीब है आदमी... क्या और क्यूँ करता है, कुछ पता नहीं चलता , लेकिन हर बात के लिए तर्क देते चले जाना उसकी फितरत है शायद....
आरोप जैसे कुछ थे 1997 में, आरोप थे और सिर्फ आरोपित भर थे। फिर ये ही क्रम 2007 में दोहराया गया। आरोप बस आरोपित ही साबित होकर रह गए। आगे फिर लगे और मैं फिर लड़ा...फिर आरोप लगाने वाले बेशर्मी से हों हों कर हंस दिए... इतना ही था उनका जीवन ...
ईश्वर की कृपा का कोई अंत नहीं। वह जीने का संबल हमेशा देता है। गिरने से पहले संभाल कर, फिर से प्रवाह में धकेलता है और मुस्करा कर गायब हो जाता है, अगले गिराव के पड़ाव तक...मैं निराश होकर जब फिर चकराने लगता हूँ तो फिर किसी न किसी रूप में प्रकट हो जाता है ... संभाल लेता है।
कुछ लोगों की नकारात्मक सोच हमें कितना सकारात्मक साबित कर जाती है, इसका प्रमाण हैं- पिछले 5-6 वर्ष। बुरे या बुरे से लगते लोग ...कैसे अच्छे लोगों तक पहुँचने का मार्ग प्रशस्त कर देते हैं ...यह भी एक रहस्य सा ही है...
Posted by:AM/PM
हिंदी सबके लिए : प्रतिभा मलिक (Hindi for All by Prathibha Malik)
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8/26/2019 08:36:00 AM
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